Saturday, April 9, 2011

पुश्तैनी प्रॉपर्टी गिफ्ट में देना, यानी परेशानी-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

पुश्तैनी प्रॉपर्टी गिफ्ट में देना, यानी परेशानी-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times
क्या है पुश्तैनी ?
- चार पीढ़ियों तक प्रॉपर्टी का हस्तांतरण पुश्तैनी अधिकार कहा जाता है। इन पीढ़ियों के सदस्यों को जन्म के साथ ही ऐसी जॉइंट फैमिली प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी मिल जाती है। अन्य मामलों में प्रॉपर्टी के मालिक की मृत्यु के बाद ही प्रॉपर्टी में अधिकार किसी अन्य व्यक्ति के पास ट्रांसफर होते हैं।

- मां, नानी, चाचा और भाइयों से मिली प्रॉपर्टी को पुश्तैनी प्रॉपर्टी नहीं कहेंगे।
- वसीयत या उपहार में मिली प्रॉपर्टी भी पुश्तैनी प्रॉपर्टी नहीं कही जा सकती।

पुश्तैनी प्रॉपर्टी को गिफ्ट के रूप में दिया जाए, तो उसके क्या कानूनी नियम हैं और टैक्स वगैरह कितना लगेगा, यह प्रॉपर्टी किसे गिफ्ट की जा सकती है, जैसे मुद्दे लंबे समय से बहस की कड़ी रहे हैं।

कुछ समय पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि किसी पुश्तैनी प्रॉपर्टी का कोई भी हिस्सा गिफ्ट के रूप में किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। यह अहम फैसला एक ऐसे मामले में आया था, जिसमें पुश्तैनी प्रॉपर्टी का एक हिस्सा प्रेमवश भेंट में दिया गया था, लेकिन कोर्ट ने इससे जुड़े कागजात को अवैध करार दे दिया था।

कोर्ट का मानना था कि किसी पुश्तैनी प्रॉपर्टी में यदि एक से ज्यादा उत्तराधिकारी या हिस्सेदार हैं, तो केवल एक व्यक्ति को इसे किसी अन्य को भेंट करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह जॉइंट फैमिली प्रॉपर्टी के अंतर्गत आती है। फिर भले ही वह व्यक्ति छोटा-सा हिस्सा ही भेंट क्यों न करे और इसके लिए यह तर्क क्यों न दे कि उसने प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा ही उपहार में दिया है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह व्यवस्था दी है कि घर का मुखिया पुश्तैनी प्रॉपर्टी का कुछ हिस्सा अपनी बेटियों को शादी के समय या उसके बाद भी उपहार में दे सकता है। शर्त यह है कि इसके पीछे कुछ बातों से प्रभावित न हुआ जाए, जैसे- पारिवारिक स्तर, प्रॉपर्टी की कीमत और एरिया आदि। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार के गिफ्ट को देने या न देने को लेकर तयशुदा सीमारेखा नहीं खींची जा सकती। यह पूरी तरह परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है।

हिंदू उत्तराधिकार संबंधी भारतीय कानून को लागू करने के लिए मुख्य रूप से दो मान्यताओं को माना जाता है- पहला है दयाभाग स्कूल, जो बंगाल और असम में लागू है। दूसरा है मिताक्षरा, जो शेष भारत में मान्य है। मिताक्षरा के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से ही अपने पिता की जॉइंट फैमिली प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी हासिल हो जाती है, इसमें 2005 में कानून में हुए संशोधन के बाद लड़कियों को भी शामिल किया गया।

हालांकि दयाभाग की मान्यता के अनुसार पिता के जीवित रहने तक वह ही सभी तरह की प्रॉपर्टी का मालिक होता है, जिनमें पुश्तैनी और खुद की बनाई प्रॉपर्टी शामिल हैं। उक्त केस स्टडी वाले केस में कोर्ट ने कहा कि मिताक्षरा के अनुसार, कोई व्यक्ति परिवार की सुरक्षा जैसी विशेष परिस्थितियों में ही जॉइंट प्रॉपर्टी का कोई एक हिस्सा गिफ्ट कर सकता है।

पुश्तैनी प्रॉपर्टी में प्रत्येक पीढ़ी का हिस्सा तय होता है। हालांकि बेटियों को भी पुश्तैनी प्रॉपर्टी का अधिकार देने के लिए 2005 में कानून में हुए संशोधन के साथ ही नोशनल पार्टिशन यानी संकेतात्मक बंटवारे की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार, यदि किसी प्रॉपर्टी का पुरुष मालिक वसीयत किए बिना मरता है और उसके उत्तराधिकारियों में केवल महिलाएं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उनके बीच संकेतात्मक बंटवारा मान लिया जाता है, जबकि वास्तव में कोई बंटवारा हुआ नहीं होता।

उधर, अगर कोई व्यक्ति पुश्तैनी की बजाय स्वयं बनाई गई प्रॉपर्टी छोड़कर जाता है, तो उसके बेटे को उस प्रॉपर्टी पर अधिकार मिल जाता है, लेकिन उसके पोते-पोतियां उस प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकते, क्योंकि यह प्रॉपर्टी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के माध्यम से ट्रांसफर होगी। प्रॉपर्टी पर किस पीढ़ी का अधिकार होगा, यह तय करने के लिए इस बात पर विचार किया जाता है कि वह किस नियम से ट्रांसफर होगी- सेक्शन 8 (सक्सेशन), सेक्शन 6 (सर्वाइवरशिप) या टेस्टामेंट्री (विल) सक्सेशन।

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