Thursday, February 2, 2012

राजनीति के 'अखाड़े' में पिसती सड़क- Navbharat Times

राजनीति के 'अखाड़े' में पिसती सड़क- Navbharat Times:

कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी कहने से कोई गुरेज नहीं कर रहा था। जो लोग इन गेम्स में करप्शन की बात करते हैं, उन्होंने भी दिल्ली की उजली तस्वीर से मुंह नहीं मोड़ा। अभी मुश्किल से एक साल भी नहीं बीता लेकिन इस दौरान दिल्ली की सड़कों की जो हालत बन गई है, उससे वर्ल्ड क्लास के दावे से मुंह चुराना पड़ता है। सड़कों की हालत बद से बदतर हो रही है। एक बार सड़क टूट गई तो फिर उसकी मरम्मत के लिए महीनों इंतजार करना पड़ रहा है।

पहले मॉनसून में सड़कों के बखिए उधड़ने और मॉनसून के बाद उन पर पैबंद लगाने की कसरत की जाती थी। अक्सर दीवाली तक दिल्ली की सड़कों को फिर से चमका दिया जाता था। अब वह रिवाज भी खत्म हो गया है। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने 3 महीने पहले 100 सड़कों की लिस्ट बनाकर नगर निगम, डीडीए, पीडब्ल्यूडी और एनएचएआई को भेजी थी।

साफ-साफ कहा गया था कि इन सड़कों की खराब हालत के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं, लेकिन इनकी मरम्मत की बजाय यह जवाब दिया गया कि पुलिस कानून और व्यवस्था का काम देखे, बाकी हम देख लेंगे। उन सड़कों में से शायद ही किसी की मरम्मत हो पाई हो। रिंग रोड, आउटर रिंग रोड, मथुरा रोड, आसफ अली रोड, नजफगढ़ रोड, वजीराबाद रोड, आईएसबीटी पुल रोड, तीस हजारी रोड के साथ-साथ सैकड़ों ऐसी सड़कें हैं, जिन पर चलना मुहाल हो जाता है।

इन खराब सड़कों के कारण सिर्फ वाहनों के चलने में ही परेशानी नहीं होती बल्कि उनके कारण वाहनों को भी नुकसान होता है, प्रदूषण फैलता है, ट्रैफिक जाम होता है और लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में अधिक समय लगता है। अब इसमें कितनी आर्थिक हानि होती है, इसका तो अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता।

यह नहीं कहा जा सकता कि किसी एक एजेंसी पर इसका दोष डाला जा सकता है क्योंकि राजधानी में सड़कों के 30 हजार किलोमीटर के जाल में भले ही एमसीडी का हिस्सा सबसे ज्यादा (27 हजार किमी.) हो लेकिन पीडब्ल्यूडी की 1800 किमी. की सड़कों की हालत भी बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है। एमसीडी हर साल करीब 200 करोड़ रुपये इन सड़कों की मरम्मत पर खर्च करने का दावा करती है लेकिन कितना खर्चा सड़क पर होता है और कितना कागजों पर, इसका कोई हिसाब नहीं है।

कहा जाता है कि डेंस कारपेट की सड़कों की उम्र कम से कम 5 साल होती है लेकिन ऐसी सड़कें एक साल में ही जवाब दे जाती हैं। अगर महीनों की मशक्कत के बाद किसी इलाके के लोग सड़क बनवाने में सफल भी होते हैं तो पता चलता है कि जल बोर्ड, प्राइवेट बिजली कंपनियां या टेलिफोन कंपनियां चंद दिनों में ही उन्हें फिर से खोदकर पहले वाली हालत में पहुंचा देती हैं। रोड कटिंग की मरम्मत हो पाना लगभग असंभव जैसा ही है। अब अगर यह टटोला जाए कि हमारे चुने हुए नुमाइंदे क्या कर रहे हैं तो उन्हें सड़कों को भी राजनीति का अखाड़ा बनाने में देर नहीं लगती।

एमसीडी सड़कों की मरम्मत नहीं करती तो फिर क्यों न उससे सड़कें ही ले ली जाएं। अब 30 मीटर से चौड़ी 500 किमी. सड़कें दिल्ली सरकार ने अपने अधीन कर ली हैं। सरकार की मंशा क्या है, यह तो वही जाने लेकिन नगर निगम में बीजेपी शासन के दौरान हुई इस कार्रवाई को राजनीतिक चश्मे से देखना गलत भी नहीं है। सड़कों की मरम्मत की बजाय यह राजनीतिक रस्साकशी ज्यादा है। इसका सबूत यह भी है कि एमसीडी इनकी खराब हालत के लिए जल बोर्ड को दोषी करार दे रही है और उसके खिलाफ एफआईआर कराने की धमकी भी दी है।

यानी सड़कों से गुजरने वाली आम जनता के दर्द को समझने की बजाय राजनेता अपना-अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी कहने पर आम जनता पर गर्व करती लेकिन उसके मन में यह सवाल तो बार-बार ही उठता है कि क्या वर्ल्ड क्लास सिटी की सड़कों की यही हालत होती है और क्या वहां के राजनेता भी ऐसे ही संवेदनहीन होते हैं।

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