प्रॉपर्टी की खरीदारी से जुड़े कई कागजों का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होता है। इस बारे में दिशा-निर्देश देने के लिए 'इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1902' बनाया गया है। इसमें स्पष्ट है कि किन कागजात को रजिस्टर्ड कराना जरूरी है और किन्हें नहीं। इस ऐक्ट के अलावा कुछ कागजात का रजिस्ट्रेशन 'दि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी ऐक्ट 1882' के अनुसार भी किया जाता है।
- ' इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1902' के सेक्शन 17 के अनुसार हर मूल्य की प्रॉपर्टी की गिफ्ट डीड रजिस्टर्ड कराना जरूरी है।
- इसी सेक्शन के अनुसार, गैर-वसीयत वाले ऐसे कागजात भी रजिस्टर्ड होने चाहिए, जिनसे अचल संपत्ति में अधिकार, दावा या रुचि साबित हो, इनका हनन हो या इनके संबंध में किसी लेनदेन के बारे में बताया जाए।
- ज्यादातर मॉर्गेज डीड को भी रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है।
- 100 रुपये से कम कीमत में प्रॉपर्टी बेचने पर सेल डीड को रजिस्टर्ड कराने से छूट दी गई है। वास्तव में, यह संभव नहीं होता।
- एक साल से ज्यादा समय की लीज या सालाना किराया तय करने पर इसके कागजात रजिस्टर्ड कराने की बाध्यता है। सालाना किराया तय करने से मतलब जब पूरे साल के लिए किराया तो तय हो जाए, लेकिन लीज का समय निर्धारित न हो।
- ' ईयर टू ईयर' लीज डॉक्यूमेंट के रजिस्ट्रेशन से यह मतलब है कि लीज खुद-ब-खुद एक से अगले साल में प्रवेश कर जाएगी। इस स्थिति में मकान मालिक के पास यह अधिकार नहीं होता कि साल के अंत में बिना नोटिस दिए लीज खत्म कर सके। अगर वह मकान पर फिर अपना कब्जा चाहता है, तो इसके लिए उसे किराएदार को लीज खत्म करने का नोटिस देना होगा। इस तरह के रजिस्ट्रेशन में जरूरी है कि लीज का समय एक साल से ज्यादा हो। यानी अगर कोई लीज एक साल से ज्यादा समय के लिए कराई जाए, तो इसे बाकायदा रजिस्टर्ड कराना जरूरी है।
- ' इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1902' के सेक्शन 49 के अनुसार, रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी कागजात में से अगर किसी को रजिस्टर्ड नहीं कराया जाता है, तो उससे जुड़ी डील कानूनन मान्य नहीं होगी।
- ' दि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी ऐक्ट 1882' के सेक्शन 53 ए के अनुसार दि स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के अंतर्गत बताए गए खास मामलों में गैर पंजीकृत कागजात को भी सुबूत माना जा सकता है
- ' इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1902' के सेक्शन 17 के अनुसार हर मूल्य की प्रॉपर्टी की गिफ्ट डीड रजिस्टर्ड कराना जरूरी है।
- इसी सेक्शन के अनुसार, गैर-वसीयत वाले ऐसे कागजात भी रजिस्टर्ड होने चाहिए, जिनसे अचल संपत्ति में अधिकार, दावा या रुचि साबित हो, इनका हनन हो या इनके संबंध में किसी लेनदेन के बारे में बताया जाए।
- ज्यादातर मॉर्गेज डीड को भी रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है।
- 100 रुपये से कम कीमत में प्रॉपर्टी बेचने पर सेल डीड को रजिस्टर्ड कराने से छूट दी गई है। वास्तव में, यह संभव नहीं होता।
- एक साल से ज्यादा समय की लीज या सालाना किराया तय करने पर इसके कागजात रजिस्टर्ड कराने की बाध्यता है। सालाना किराया तय करने से मतलब जब पूरे साल के लिए किराया तो तय हो जाए, लेकिन लीज का समय निर्धारित न हो।
- ' ईयर टू ईयर' लीज डॉक्यूमेंट के रजिस्ट्रेशन से यह मतलब है कि लीज खुद-ब-खुद एक से अगले साल में प्रवेश कर जाएगी। इस स्थिति में मकान मालिक के पास यह अधिकार नहीं होता कि साल के अंत में बिना नोटिस दिए लीज खत्म कर सके। अगर वह मकान पर फिर अपना कब्जा चाहता है, तो इसके लिए उसे किराएदार को लीज खत्म करने का नोटिस देना होगा। इस तरह के रजिस्ट्रेशन में जरूरी है कि लीज का समय एक साल से ज्यादा हो। यानी अगर कोई लीज एक साल से ज्यादा समय के लिए कराई जाए, तो इसे बाकायदा रजिस्टर्ड कराना जरूरी है।
- ' इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1902' के सेक्शन 49 के अनुसार, रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी कागजात में से अगर किसी को रजिस्टर्ड नहीं कराया जाता है, तो उससे जुड़ी डील कानूनन मान्य नहीं होगी।
- ' दि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी ऐक्ट 1882' के सेक्शन 53 ए के अनुसार दि स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के अंतर्गत बताए गए खास मामलों में गैर पंजीकृत कागजात को भी सुबूत माना जा सकता है
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