जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि लंबे समय तक किसी संपत्ति पर काबिज रहने से कब्जेदार का उस संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं बन जाता। केयर टेकर, चौकीदार या नौकर चाहें जितने लंबे समय तक संपत्ति पर क्यों न काबिज रहें, उनका कभी संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं बनता। यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी, न्यायमूर्ति एचएल दत्तू व न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देश की अदालतों में लंबित अचल संपत्तियों के मालिकाना हक के मुकदमों पर गहरा असर पड़ेगा। कोर्ट ने संपत्ति पर मालिकाना हक और कब्जे से जुड़ी कानूनी और व्यवहारिक समस्याओं का विश्लेषण किया है और लंबे समय तक अदालत में मुकदमा लटके रहने से पक्षकारों को होने वाले नफा-नुकसान पर भी चिंता जताई है। पीठ ने गोवा की मारिया मािर्ग्रडा सिक्वेरिया फर्नाडीस के हक में फैसला सुनाते हुए दिवंगत पूर्व सांसद इरासमो जैक डि सिक्वेरिया के वारिसों को संपत्ति पर कब्जा वापस करने का आदेश दिया है। सांसद इरासमो करीब दो दशक तक अपनी ही बहन मारिया की संपत्ति पर काबिज रहे और मुकदमा लड़ते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ऐसे मामलों में पांच सिद्धांत तय किए हैं। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई अनावश्यक रूप से लंबे समय या दशकों तक किसी संपत्ति पर काबिज रहता है तो भी उसका उस संपत्ति पर कोई मालिकाना हक नहीं बनता। केयर टेकर, चौकीदार या नौकर का कभी संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं होता चाहें वह कितने भी लंबे समय तक उस पर काबिज क्यों न रहा हो। केयर टेकर या नौकर को मांगे जाने पर तत्काल संपत्ति का कब्जा देना होता है। अदालतों का ऐसे लोगों को संरक्षण देना न्यायोचित नहीं है, जिन्हें केयर टेकर, नौकर, चौकीदार, रिश्तेदार अथवा दोस्त की हैसियत से कुछ समय के लिए संपत्ति पर रहने की अनुमति दी गई थी। अदालतें सिर्फ उन्हीं लोगों के कब्जे को संरक्षण दे सकती हैं जिनके पास किरायेदारी, पट्टेदारी या लाइसेंस का वैध करारनामा हो। कोर्ट ने कहा है कि केयरटेकर, या एजेंट मालिक के लिए संपत्ति धारण करता है। वह अपने हक या हित में संपत्ति धारण नहीं करता चाहें वह जितने भी लंबे समय तक उस पर काबिज क्यों न रहा हो। फैसले में जमीन जायदाद के मुकदमों से जुड़े पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गयी है और ऐसे मुकदमों को निपटाने के लिए ध्यान देने वाली बातों और सुझावों का भी जिक्र किया गया है। ताकि लंबे समय तक वास्तविक मालिक अदालतों के चक्कर न काटता रहे और दूसरा पक्षकार मुकदमे की आड़ या रोक आदेश का सहारा लेकर फायदा न उठाता रहे।
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