एक्स्ट्रा कॉस्ट के लिए भी रखें रकम- Navbharat Times:
घर खरीदने की इच्छा रखने वालों को इसकी कीमत केसाथ एक्स्ट्रा खर्चों की व्यवस्था भी रखनी चाहिए। मसलन, स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस। अकेले इन दोनों सेप्रॉपर्टी की कीमत करीब पांच से 12.5 फीसदी तक ऊपरचली जाती है। ये शुल्क राज्यों के हिसाब से अलग - अलगहैं। साथ ही , अगर कोई शख्स ब्रोकर के जरिए मकानतलाश रहा है तो उसे प्रॉपर्टी की वैल्यू के दो फीसदी कीदर से ब्रोकरेज शुल्क भी देना पड़ता है। इन अनिवार्यशुल्कों के अलावा कुछ डिवेलपर आपसे दी जा रहीसुविधाओं के हिसाब से एक्स्ट्रा चार्ज की मांग कर सकतेहैं।
जोन्स लैंग लसाल इंडिया के सीओओ ( रेजिडेंशल सर्विसेज) मुहम्मद असलम कहते हैं : यह मानकर चलना चाहिएकि प्रॉपर्टी की वैल्यू की कम से कम 10 फीसदी के बराबररकम की जरूरत आपको अतिरिक्त खर्चों के लिए पड़ेगी। असलम के मुताबिक खरीदे जा रहे घर पर एक्स्ट्रा खर्चस्टैंप ड्यूटी , रजिस्ट्रेशन और इलेक्ट्रिक मीटर शुल्क आदि होते हैं। अगर कोई सोसायटी नहीं बनाई गई है , तोअमूमन दो साल के लिए मेनटिनेंस चार्ज एडवांस में चुकाना पड़ता है। इसके अलावा भविष्य में मरम्मत के कामोंके लिए भी पहले से ही फंड की मांग की जा सकती है। अगर प्रॉजेक्ट में क्लब हाउस है तो उसकी मेंबरशिप फीसभी लगेगी।
कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करने से पहले खरीददारों को सभी दरों और फीस के बारे में पूरा ब्यौरा लेना चाहिए। कईबार ग्राहक बुकिंग यह मानते हुए करवा सकते हैं कि उन्हें केवल जरूरी कीमत का ही भुगतान करना है। जबकिडिवेलपर उन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत होने के बाद इन शुल्कों के बारे में जानकारी दे सकता है। उस वक्त कॉन्ट्रैक्ट सेपीछे हटना काफी मुश्किल हो जाता है।
इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट
प्रॉपर्टी की ऑरिजनल कॉस्ट के साथ कई और शुल्क भी जुड़े हो सकते हैं। कई डिवेलपर तीन लाख रुपए से लेकरपांच लाख रुपये तक जिम या क्लब मेंबरशिप के तौर पर चार्ज करते हैं। अगर डिवेलपर ने सड़क बनाने पर पैसाखर्च किया है तो वह दो से चार लाख रुपये तक इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट फीस इस खर्च को रिकवर करने के लिएले सकता है।
कार पार्किंग
कुछ डिवेलपर ओपन कार पार्किंग जैसी सुविधाओं के लिए भी दो लाख से लेकर 10 लाख रुपये तक शुल्क लेसकते हैं। अगर आपके ऐग्रिमेंट में खर्च नहीं बढ़ने का कोई नियम है तो डिवेलपर कुछ सुविधाओं की कीमत मेंबढ़ोतरी के जरिए लागत निकालने की कोशिश कर सकता है।
रेट क्लॉज
इंडिया प्रॉपटी डॉट कॉम के वाइस प्रेसिडेंट गणेश वासुदेवन का कहना है कि आप ऐग्रिमेंट में हमेशा कीमत मेंबढ़ोतरी का नियम रखें। वासुदेवन के मुताबिक , ' मिसाल के तौर पर , एक व्यक्ति ने अंडर कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट मेंघर बुक कराया है और डिवेलपर ने उसे तीन साल के भीतर घर देने का वायदा किया है। अगर कंस्ट्रक्शन कीलागत तब तक 20 या 30 फीसदी बढ़ जाती है तो डिवेलपर अप्रत्यक्ष रूप से इस रकम को कस्टमर से वसूलने कीकोशिश कर सकता है और इसके लिए वह कुछ सेवाओं पर शुल्क लगा सकता है। '
वासुदेवन के मुताबिक , अगर किसी ग्राहक के सामने ऐग्रिमेंट पर दस्तखत करते वक्त सभी खर्चों को लेकर स्पष्टताहै , तो काफी दिक्कतों से बचा जा सकता है। वह कहते हैं , ' ग्राहक को यह चीज सुनिश्चित करनी चाहिए कि उसेऐग्रिमेंट में लिखे गए सभी खर्चों की पूरी जानकारी है। नहीं तो कब्जा लेते वक्त डिवेलपर अचानक कुछ खर्चों कीमांग कर सकते हैं और ग्राहक के पास इस एक्स्ट्रा कॉस्ट को देने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता है। '
प्रोसेसिंग फीस
ग्राहक को इस बात पर भी नजर डालनी चाहिए कि ऐग्रिमेंट में पजेशन देने का वक्त और देरी होने की दशा मेंजुर्माने का प्रावधान है या नहीं। अगर कोई शख्स बैंक से लोन ले रहा है , तो लोन की रकम के अलावा उसे लोनकी रकम का 0.5 फीसदी एक्स्ट्रा प्रोसेसिंग फीस के तौर पर भी देना पड़ सकता है। इसमें प्रॉपर्टी की सर्च औरवैल्यूएशन चार्ज जैसे एक्स्ट्रा चार्ज भी हो सकते हैं। इससे भी घर का बजट कुछ हजार रुपये बढ़ सकता है। अगरआपके पास पर्याप्त सिक्युरिटी नहीं है , तो बैंक आप पर उसके निवेश को सुरक्षित करने के लिए कोई बीमा उत्पादखरीदने के लिए भी दबाव डाल सकता है।
अमित शानबाग
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