पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंचकूला के एक मामले में महिला की याचिका को खारिज करते हुए अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि ससुर की बनाई प्रॉपर्टी पर बहू हक नहीं जमा सकती है।
अदालत ने यह भी कहा है कि हिंदू अडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट महज पति की प्रॉपर्टी पर लागू होता है, ससुर की प्रॉपर्टी पर नहीं। मामला पंचकूला निवासी एक रिटायर नेवी ऑफिसर के घर से जुड़ा है।
याचिका दाखिल करते हुए महिला ने कहा था कि उसके ससुर की याचिका पर निचली अदालत ने उसे दो माह में घर खाली करने के आदेश दिए थे। यह आदेश सही नहीं हैं, क्योंकि जब उसकी शादी हुई थी तब से लेकर अब तक वह उसी मकान में रह रही थी। इसके साथ ही इसी मकान में उसने अपनी बेटी को जन्म भी दिया।
ऐसे में यह घर हिंदू संयुक्त परिवार की परिभाषा में आता है। वहीं महिला के ससुर ने दलील दी कि मकान उन्होंने खुद अपनी कमाई से खरीदा है। ऐसे में मकान पर उनका बेटा और बहू हक नहीं जता सकते। ससुर की ओर से बताया गया कि उनके बेटे की शादी के बाद से ही बेटे और बहू के बीच विवाद शुरू हो गया था।
इसके बाद वह अपने मायके चली गई थी। बाद में वह वापस आई। फिर भी विवाद जारी रहा। विवाद से परेशान होकर उन्होंने बहू और बेटे को मकान खाली करने के लिए कहा।
बेटे ने मकान खाली कर दिया था और किराए का मकान लेकर रहने लगा था, लेकिन बहू ने घर खाली करने से इनकार कर दिया। याची के ससुर ने बताया कि बहू की इस जिद पर उन्होंने घर खाली करवाने के लिए कोर्ट की शरण ली।
निचली कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाते हुए नवंबर 2015 को आदेश दिया कि बहू दो माह के अंदर घर खाली करे। दूसरी ओर याची (महिला) की ओर से कहा गया कि ससुर के घर को भी संयुक्त हिंदू परिवार के तौर पर देखा जाए, क्योंकि इसकी रेनोवेशन पर खर्च याची द्वारा किया गया था।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले में दाखिल बहू की अर्जी को खारिज कर दिया। फैसला सुनाते हुए जस्टिस राजमोहन सिंह ने कहा कि ब्याह कर आई महिला की पूरी जिम्मेदारी उसके पति की होती है, न की सास-ससुर की।
यदि सास ससुर ने अपनी कमाई से प्रॉपर्टी तैयार की है, तो ऐसे में बहू उस प्रॉपर्टी पर हिंदू संयुक्त परिवार के आधीन हक नहीं जता सकती।
अदालत ने यह भी कहा है कि हिंदू अडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट महज पति की प्रॉपर्टी पर लागू होता है, ससुर की प्रॉपर्टी पर नहीं। मामला पंचकूला निवासी एक रिटायर नेवी ऑफिसर के घर से जुड़ा है।
याचिका दाखिल करते हुए महिला ने कहा था कि उसके ससुर की याचिका पर निचली अदालत ने उसे दो माह में घर खाली करने के आदेश दिए थे। यह आदेश सही नहीं हैं, क्योंकि जब उसकी शादी हुई थी तब से लेकर अब तक वह उसी मकान में रह रही थी। इसके साथ ही इसी मकान में उसने अपनी बेटी को जन्म भी दिया।
ऐसे में यह घर हिंदू संयुक्त परिवार की परिभाषा में आता है। वहीं महिला के ससुर ने दलील दी कि मकान उन्होंने खुद अपनी कमाई से खरीदा है। ऐसे में मकान पर उनका बेटा और बहू हक नहीं जता सकते। ससुर की ओर से बताया गया कि उनके बेटे की शादी के बाद से ही बेटे और बहू के बीच विवाद शुरू हो गया था।
इसके बाद वह अपने मायके चली गई थी। बाद में वह वापस आई। फिर भी विवाद जारी रहा। विवाद से परेशान होकर उन्होंने बहू और बेटे को मकान खाली करने के लिए कहा।
बेटे ने मकान खाली कर दिया था और किराए का मकान लेकर रहने लगा था, लेकिन बहू ने घर खाली करने से इनकार कर दिया। याची के ससुर ने बताया कि बहू की इस जिद पर उन्होंने घर खाली करवाने के लिए कोर्ट की शरण ली।
निचली कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाते हुए नवंबर 2015 को आदेश दिया कि बहू दो माह के अंदर घर खाली करे। दूसरी ओर याची (महिला) की ओर से कहा गया कि ससुर के घर को भी संयुक्त हिंदू परिवार के तौर पर देखा जाए, क्योंकि इसकी रेनोवेशन पर खर्च याची द्वारा किया गया था।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मामले में दाखिल बहू की अर्जी को खारिज कर दिया। फैसला सुनाते हुए जस्टिस राजमोहन सिंह ने कहा कि ब्याह कर आई महिला की पूरी जिम्मेदारी उसके पति की होती है, न की सास-ससुर की।
यदि सास ससुर ने अपनी कमाई से प्रॉपर्टी तैयार की है, तो ऐसे में बहू उस प्रॉपर्टी पर हिंदू संयुक्त परिवार के आधीन हक नहीं जता सकती।
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