प्रॉपर्टी को किराए पर दें, नियमित आमदनी लें- Navbharat Times:
कई लोगों के लिए घर किराए पर देना भावुक मामला होता है। अक्सर लोग किराएदारों को लेकर चिंतित रहते हैं। किराएदार प्रॉपर्टी का कितना ख्याल रखेंगे, इस बात को लेकर भी कई मकान मालिक आशंकित होते हैं। हालांकि, कुछ लोग मकान को बंद रखने के बजाए किराए पर देने का फैसला करते हैं। घर बंद रखने का कोई वित्तीय फायदा भी नहीं होता। फिर, खाली मकान में कई तरह के नुकसान होने लगते हैं।
रियल एस्टेट विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह के लोग अपनी प्रॉपर्टी कंपनियों के नाम लीज करने पर दे सकते हैं। यह उन लोगों के लिए बेहतर विकल्प है, जो अपने अपार्टमेंट से दूर रहते हैं या फिर विदेश में रहते हैं। कई बहुराष्ट्रीय और बड़ी कंपनियां विदेशी और भारतीय कर्मचारियों के लिए अपार्टमेंट की तलाश में रहती हैं।
अगर किसी कर्मचारी की पोस्टिंग 2-3 साल के लिए किसी प्रोजेक्ट पर हुई है, तब कंपनियां कॉरपोरेट लीज पर मकान लेना पसंद करती हैं। कंपनी लीज एकॉमडेशन (सीएलए) से मकान मालिकों को चिंता नहीं रहती। दरअसल, इस तरह के एग्रीमेंट से कंपनी ही किसी भी डिफॉल्ट, नुकसान या शर्तों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार होती है।
व्यक्तिगत बनाम कॉरपोरेट लीज
जोंस लैंग लसाल इंडिया के सीईओ (रेजिडेंशियल सर्विसेस) ओम आहूजा का कहना है, 'सुरक्षा के लिहाज से व्यक्तिगत लीज की तुलना में कॉरपोरेट लीज बेहतर होती है। कॉरपोरेट लीज में किसी तरह की धोखाधड़ी की आशंका बहुत कम रहती है। दरअसल, इस तरह की लीज में कंपनी ही किराएदार की पूरी जिम्मेदारी लेती है। किराया समय पर मिलता है। लीज अवधि खत्म होने के तुरंत बाद ही उसी कंपनी से दोबारा एग्रीमेंट होने की संभावना बनी रहती है।'
कॉरपोरेट लीज में आमतौर पर साल दर साल किराया 10 फीसदी तक बढ़ता है। हालांकि, इसमें मकान मालिक के पास बाजार के अनुसार किराया लेने की ज्यादा गुंजाइश नहीं होती। कुशमैन एंड वेकफील्ड इंडिया की डायरेक्टर (रेजिडेंशियल सर्विस) श्वेता जैन ने बताया, 'जिन मकानों को व्यक्तिगत लीज पर दिया जाता है, वहां पर कब्जा करने और लीज अवधि से अधिक समय तक मकान खाली नहीं करने की आशंका बनी रहती है। इन समस्याओं से निपटना आसान नहीं होता है। लेकिन कॉरपोरेट लीज में कंपनियां इस तरह के विवाद से दूर ही रहती हैं। आमतौर पर कंपनियां अपनी इमेज को लेकर बहुत सतर्क रहती हैं।'
प्रक्रिया
आमतौर पर कॉरपोरेट लीज के लिए कंपनियां अच्छी क्वालिटी और लोकेशन वाली प्रॉपटीर् को किराए पर लेना पसंद करती हैं। जैन के मुताबिक, 'अधिकतर कंपनियां प्रॉपर्टी कंसल्टंट के जरिए प्रॉपर्टी के लिए बातचीत करती हैं। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप अपनी प्रॉपर्टी को रियल एस्टेट सर्विस प्रोवाइडर के यहां रजिस्टर कराएं।' हालांकि, आपके पास प्रॉपर्टीवेब पोर्टल, अखबार जैसे नियमित विज्ञापन विकल्प भी मौजूद होते हैं।
अधिकतर कंपनियां पूरी प्रक्रिया को अपनाती हैं। किसी भी प्रॉपटीर् को अंतिम रूप देने से पहले कंपनी के अधिकारी कई बार जांच-पड़ताल के लिए आते हैं। वह आपसे कुछ खास फिटिंग और टीवी-फ्रिज सहित दूसरे कंज्यूमर गुड्स की मांग कर सकते हैं। हालांकि, इन सुविधाओं से आप अधिक किराए के हकदार भी होते हैं।
अंत में, कानूनी अग्रीमेंट को भी प्रोफेशनल स्तर पर निपटाया जाता है। जैन कहते हैं, 'अगर इस समझौते को ट्रांजैक्शन सर्विस कंपनी के माध्यम से किया जाएगा, तब वह कंपनी के लीगल विभाग द्वारा निपटाया जाएगा। हालांकि, मकान मालिक अपने स्तर पर भी लीगल सर्विस प्रोफेशनल की मदद ले सकत हैं। इस तरह के मामले में आपको कंपनी की तरफ से नियुक्त किए गए वकील से सभी तरह की सूचनाओं को जुटाना होगा।'
प्रक्रिया के फायदे
जोंस लैंग लसाल इंडिया के आहूजा कहते हैं, 'कॉरपोरेट लीज एग्रीमेंट उन प्रॉपर्टी के मालिकों के लिए बहुत फायदेमंद है, जो अपनी प्रॉपर्टी और किराएदार को लेकर बहुत सशंकित रहते हैं। यह उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है, जो लंबी अवधि में नियमित समय पर कैश फ्लो की उम्मीद करते हैं। आमतौर पर कॉरपोरेट लीज 24-36 महीने के लिए की जाती है।'
किराया
अपनी प्रॉपर्टी को कॉरपोरेट लीज पर देने वाले मकान मालिक किराए में तेजी से बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं कर सकते। बाजार में किराया कभी भी बढ़ सकता है, लेकिन एक बार लीज पर देने के बाद आप नियमित तौर पर किराए में सालाना 10-12 फीसदी वृद्धि की ही उम्मीद कर सकते हैं। आमतौर पर कंपनियां 3-5 साल के लिए किराए पर प्रॉपर्टी लेती हैं। ऐसे में कंपनियां साल दर साल 10-12 फीसदी किराया बढ़ाती जाएंगी। हालांकि, अगर प्रॉपर्टीअधिक मांग वाली लोकेशन पर हो, तब किराया अधिक गति से भी बढ़ सकता है।
व्यक्तिगत लीज छोटी अवधि के लिए होती है। आमतौर पर व्यक्तिगत लीज 11 महीने के लिए ही होती है। इस तरह के समझौते में मकान मालिक को किराए को लेकर मोलभाव करने का अवसर मिलता है। अधिक मांग वाली जगहों पर किराया सामान्य से अधिक बढ़ता है।
किराया मासिक आधार पर तय किया जाता है। हालांकि, अलग-अलग कंपनी में भुगतान करने का तरीका भिन्न हो सकता है। कुछ कंपनियां पूरे साल के किराए का एकमुश्त भुगतान कर देती हैं, वहीं कुछ कंपनियां मासिक आधार पर भुगतान करती हैं।
प्रमुख पहलुओं पर ध्यान दें
लीज पर देने से पहले कुछ पहलुओं पर ध्यान दें। क्या आप कॉरपोरेट लीज देना चाहते हैं या व्यक्तिगत लीज पर। आपकी प्रॉपर्टी जिस लोकेशन पर है, वहां के औसत किराए की जानकारी हासिल करें। इससे आप अपनी प्रॉपर्टी के लिए किराया तय कर सकेंगे, जो न अंडरवैल्यू हो और न ही ओवरवैल्यू। समझौते में रीन्यूअल की शर्तों का उल्लेख करें। अगर संभव हो तो प्रॉपर्टी में मौजूद फनीर्चर और फिक्सचर के लिए किराया तय करें। सिक्योरिटी डिपॉजिट के बारे में उल्लेख करें। किराएदार प्रॉपर्टी छोड़ते समय इस रकम पर दावा करेगा।
रिपेयर और मेंटेनेंस की शर्तों को शामिल करें
आप समझौते में प्रॉपर्टी में होने वाली डैमेज के बारे में शर्तों को शामिल करें। सीएलए के तहत कंपनी बिना फर्निश्ड, सेमी और फुल-फर्निश्ड अपार्टमेंट लेती है। इसके मुताबिक आप एजेंट से सलाह लेकर किराया तय करें। सभी शर्तों और नियमों का उल्लेख समझौते में करें।
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