क्लियर टाइटल या कानूनी विवाद, सर्च रिपोर्ट से पाएं जवाब- Navbharat Times:
निर्भय कुमार॥
किसी भी प्रॉपर्टी के टाइटल के बारे में जानने के लिएआपको सर्च रिपोर्ट की जरूरत पड़ती है। इससे टाइटल कीक्लीयरिटी के साथ साथ आपको और भी ढेरों जानकारियांमिलती हैं। मसलन , प्रॉपर्टी पर किसी प्रकार का लोन तोनहीं है या फिर प्रॉपर्टी किसी कानूनी विवाद में तो नहीं है।दरअसल , सब रजिस्ट्रार दफ्तरों में रजिस्टर्ड ( सेल डीडद्वारा ) प्रॉपर्टी से संबंधित सारे रिकॉर्ड रखे जाते हैं। इसलिएआप कभी भी कोई प्रॉपर्टी खरीदने से पहले उसके भूत औरवर्तमान की सारी जानकारियां ले सकते हैं।
बुक -1 के तहत रजिस्टर्ड होने सेल डीड के संबंध में सब -रजिस्ट्रार दफ्तर से कोई भी व्यक्ति जानकारी हासिल करसकता है। इसके लिए एक प्रक्रिया बनी हुई है जिसे फॉलोकरना होता है। जिस किसी को भी किसी प्रॉपर्टी के संबंध मेंविस्तृत जानकारी की जरूरत होते है , उसे एक आवेदन सब- रजिस्ट्रार दफ्तर में देना होता है। उस आवेदन पत्र में छानबीन की जाने वाली प्रॉपर्टी के ब्यौरे के साथ - साथयह भी बताना होता है कि आप अमुक प्रॉपर्टी के बारे में कब से कब तक के रिकॉर्ड देखना चाहते हैं।
कितने साल का रिकॉर्ड
अमूमन लोग 25 से 30 साल का रिकॉर्ड ही देखते हैं। बैंक आदि में इतने साल तक के रिकॉर्ड की ही मांग की जातीहै। वैसे , अगर आप इससे ज्यादा समय का रिकॉर्ड देखना चाहते हैं , तो इस पर कोई रोक नहीं है। लेकिन ज्यादासमय का रिकॉर्ड देख पाना आसान नहीं रह जाता है।
साल के हिसाब से फीस
दिल्ली की बात करें तो तो यहां छानबीन के लिए दिए गए आवेदन के साथ साल के हिसाब से 100 रुपए की फीसदेनी पड़ती है। यानी अगर आप 30 साल का रिकॉर्ड देखना चाहते हैं तो आपको 3000 रुपये की फीस भरनीपड़ेगी। प्रॉपर्टी मामलों से जुड़े एडवोकेट अजिताभ ने बताया कि आवेदन पत्र और फीस की रसीद के साथ व्यक्तिको अपना पहचान पत्र की फोटो कॉपी भी लगाने की जरूरत होती है। ये सारी औपचतारिकताएं पूरी कर व्यक्तिअपने जरूरत की प्रॉपर्टी का इतिहास पता कर सकता है।
कैसे और क्या देखें
आप जब छानबीन करने जाएं तो सिर्फ बुक ( रजिस्टर ) में चिपकाए गए दस्तावेज को देख कर ही तसल्ली न करलें। वैसे तो आजकल कंप्यूटराइजेशन के कारण आपको टाइटल संबंधी जानकारी कंप्यूटर से ही मिल जाती है ,लेकिन कानूनी अड़चनों और बैंक आदि के लोन वगैरह की जानकारी अब भी सब - रजिस्ट्रार दफ्तरों में कागजीकार्रवाई के कारण अलग से रखी जाती है। एडवोकेट ए के धर्मराज ने बताया कि जिस किसी को छानबीन करनीहो , उन्हें सप्लीमेंट्री रजिस्ट्रर जरूर देखना चाहिए। सप्लीमेंट्री रजिस्टर के जरिये ही लोन और कानूनी पंगे कापता चल पाता है।
सर्च रिपोर्ट के फायदे
इस रिपोर्ट के कई फायदे हैं। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि जिस प्रॉपर्टी के संबंध में छानबीन की गई है ,उसके किसी पुराने मामले को लेकर खरीदार को कभी कोई परेशानी नहीं झेलनी पड़ेगी। पुराना बिल नहीं चुकानापड़ेगा और किसी कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना होगा। इसी तरह , हाउसिंग लोन देने वाले बैंक को सर्च रिपोर्ट केमाध्यम से यह संतुष्टि रहती है कि वह सही प्रॉपर्टी के लिए लोन दे रहा है। जाहिर है कि बैंक किसी भी विवादितया पहले से गिरवी रखी या बकाये वाली प्रॉपर्टी के लिए लोन नहीं देते। उन्हें रिकवरी करनी होती है और ऐसीकोई बात होने से उनका रिस्क बढ़ जाता है।
सर्च रिपोर्ट के लिए आप चाहें तो वकील की भी मदद ले सकते हैं , लेकिन अगर आपको प्रॉपर्टी मामलों की थोड़ीभी समझ है तो आप खुद छानबीन कर सकते हैं। लेकिन यहां एक बात यह भी ध्यान में रखें कि सर्च रिपोर्ट मेंआपको उन्हीं बातों को जानकारियां मिल सकती हैं , जो सब - रजिस्ट्रार दफ्तर में उपलब्ध होंगी। अगर किसीव्यक्ति ने किसी प्रॉपर्टी के संबंध में कुछ छुपा लिया है या किसी अन्य कारण से सब रजिस्ट्रार दफ्तर में कोईजानकारी उपलब्ध न हो , तो वे जानकारियां आपको नहीं मिल पाएंगी।
जीपीए की नहीं छानबीन
यहां याद रखने वाली एक अहम बात यह है कि अगर आप वैसी कोई प्रॉपर्टी खरीद रहें हैं , जिसकी कभी सेल डीडहुई ही नहीं , तो उसके संबंध में आप छानबीन सब - रिजस्ट्रार दफ्तर से नहीं कर पाएंगे। जीपीए आदि के संबंधमें व्यवस्था यह है कि छानबीन सिर्फ सेलर या परचेजर ही कर सकते हैं। यानी छानबीन का आधिकार सिर्फ पुरानेएटॉर्नी धारक ( प्रचलन में पुराने दस्तावेज के हिसाब से खरीददार ) या उसके पक्ष में जिस व्यक्ति ने जीपीए कियाथा , दोनों को ही होता है। अत : भावी खरीदार के नाते आप छानबीन नहीं कर सकते और आपको जिस व्यक्तिद्वारा आपके पक्ष में एटॉर्नी की जा रही है , उसकी बातों पर यकीन करना होगा।
जब हो सिर्फ जीपीए चेन
अगर किसी प्रॉपर्टी की कभी सेल डीड हुई ही नहीं हो , तो उसके संबंध में जानकारी लेने के लिए तहसीलदार केदफ्तर से फर्द निकलवा कर जानकारी ली जा सकती है।
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