Thursday, March 1, 2012

Education loan defaults becoming a problem

Education loan defaults becoming a problem:

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। ईएमआइ के भारी बोझ तले दबे लोगों की मासिक किस्तों में अब कमी आएगी। दो वर्ष के लंबे अंतराल के बाद ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू हो गया लगता है। सरकारी क्षेत्र के तीन प्रमुख बैंकों ने होम लोन की दरों में कटौती की है तो देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक [एसबीआइ] ने शिक्षा कर्ज को सस्ता किया है। वैसे कर्ज की दरों में यह कटौती बहुत थोड़ी है, लेकिन जानकारों की मानें तो अन्य बैंक भी अगले कुछ दिनों के भीतर कर्ज सस्ता करने की राह पर जा सकते हैं।

सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने होम लोन की दरों में एक चौथाई फीसदी की कटौती करने का एलान किया है। साथ ही इन बैंकों ने यह भी कहा है कि वे कोई प्रोसेसिंग शुल्क भी अब होम लोन ग्राहकों से नहीं लेंगे। सेंट्रल बैंक से 30 लाख रुपये तक के होम लोन 25 वर्ष की परिपक्वता अवधि के लिए 10.75 फीसदी की दर पर लिए जा सकेंगे। बैंक ऑफ महाराष्ट्र पांच वर्ष के लिए 25 लाख रुपये तक के होम लोन 10.60 फीसदी की सालाना दर पर देगा। प्रोसेसिंग शुल्क खत्म होने से भी ग्राहकों को 10 हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक की बचत होगी। इसके पहले यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने भी होम लोन की दरों में मामूली कटौती की थी।

आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती की संभावना को मजबूत करते हुए एसबीआइ ने एजूकेशन लोन की दरों में एक फीसदी तक की कटौती करने का फैसला किया है। इसका एलान इस हफ्ते किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि बैंक चार लाख रुपये तक के एजूकेशन लोन पर ब्याज की दर चौथाई फीसदी कम करते हुए इसे 11.75 प्रतिशत कर देगा। चार से साढ़े सात लाख रुपये के लोन पर ब्याज की दर एक फीसदी तक घटाई गई है। एसबीआइ होम लोन की दरें भी घटाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है।

दरअसल इस साल जनवरी में केंद्रीय बैंक की तरफ से नकद आरक्षित अनुपात [सीआरआर] में कटौती करने के बाद से बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में फंड बच रहे हैं। बाजार में मांग नहीं होने से बैंकों को घाटा हो रहा है। इसलिए वे कर्ज की दरें घटाकर मांग बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। सीआरआर जमाओं का वह हिस्सा है, जिसे बैंकों को अनिवार्य रूप से आरबीआइ के पास रखना होता है।

औद्योगिक सुस्ती के गहराने की वजह से आरबीआइ पर ब्याज दरों को कम करने का दबाव बढ़ा है। माना जा रहा है कि मार्च, 2012 में जब केंद्रीय बैंक अंतिम मध्यावधि तिमाही समीक्षा पेश करेगा, तब सीआरआर में और कमी करेगा। अधिकांश बैंक उसके बाद ही ब्याज दरों में कमी का फैसला करेंगे। ग्लोबल निवेश सलाहकार सिटी बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2012 में आरबीआइ ब्याज दरों में एक फीसदी तक कमी कर सकता है। इसे अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के लिए जरूरी माना जा रहा है।

कैसे बने कमी के आसार

1. अर्थव्यवस्था की रफ्तार लगातार हो रही है सुस्त

2. औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर रसातल में आई

3. महंगा होने से होम लोन लेने वालों की संख्या घटी

4. बैंकों के पास पर्याप्त फंड, कर्ज देना हो गया जरूरी

5. थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर भी नरम पड़ी

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