Tuesday, July 5, 2011

बदल सकता है हाउसिंग फाइनैंस का फ्यूचर- Navbharat Times

बदल सकता है हाउसिंग फाइनैंस का फ्यूचर- Navbharat Times

निर्भय कुमार।।
आने वाले समय में अगर मास्टर प्लान अप्रूव्ड एरिया और लो इनकम हाउसिंग प्रॉजेक्ट्स के लिए बैंकों से लोन मिलने लगे तो हैरत की बात नहीं। नरेडको ने इस दिशा में कवायद शुरू कर दी है। नरेडको के मुताबिक देश में 210 लाख लो इनकम शहरी परिवार ऐसे हैं जिन्हें लोन की जरूरत है और इसका मार्केट साइज 6 लाख करोड़ रुपए का है। बैंक मोरगेज के जरिए इन लोगों को लोन की सुविधा देने के लिए आरबीआई को अलग कैटिगरी बनानी चाहिए। पिछले दिनों नरेडको की एक कांफ्रेस में इसकी वकालत ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) के चेयरमैन समेत तमाम लोगों ने की। चेयरमैन नागेश पायदह ने यह भी कहा कि बैंकों को उन टाउनिशप प्रॉजेक्ट्स की भी फंडिंग करनी चाहिए जिनमें सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर यानी स्कूल, हॉस्पिटल, कमर्शल सेंटर, रिक्रिएशन सेंटर के साथ साथ लो और मिडिल इनकम ग्रुप के लिए जगह हो।

उन्होंने कहा कि भारत में हाउजिंग लोन काफी तेजी से बढ़ रहा है। इसमें 2010 से ज्यादा तेजी आई है। इस तेजी का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2001 में 191 बिलियन का लोन दिया गया था जो 2009 में बढ़ कर 2632 बिलियन हो गया। यह देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 7 प्रतिशत बैठता है। उन्होंने रीयल एस्टेट सेक्टर में बेहतर ट्रांसपेरेंसी पर भी जोर दिया ताकि क्रेडिट फ्लो बढ़ सके। इसके लिए क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के द्वारा प्रॉजेक्ट्स की रेटिंग किए जाने की भी बात कही ताकि बैंक या हाउसिंग फाइनैंस से संबंधित दूसरी एजेंसियों का न सिर्फ रिस्क कम हो सके बल्कि मेरिट के आधार पर बिना किसी गड़बड़ी के जल्दी फंडिंग हो सके।

नरेडको के मुताबिक देश में सिर्फ बने-बनाए घरों के लिए लोन के साथ साथ जमीन के लिए लोन दिए जाने की जरूरत इसलिए है कि जमीन घर का सबसे अहम हिस्सा है। कुल कीमत में इसकी को रेशो सबसे ज्यादा होता है। इसिलए आज लो इनकम ग्रुप के लिए 3 से 7 लाख के बैंड में लोन दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए किस प्रकार के सरकारी सब्सिडी की भी जरूरत नहीं है। जरूरत है तो सिर्फ बैंक और हाउसिंग फाइनैंस एजेंसियों के अप्रोच में बदलाव की। बैंकों द्वारा ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि इस सेगमेंट के लोगों की जरूरतें पूरी हो सकें।

जमीन के लिए कम से कम उन जगहों पर लोन दिया जाए जो मास्टर प्लान में अप्रूव्ड हैं या जहां जमीन किसी डिवेलपमेंट अथार्टी से खरीदी जा रही है। बैंकों द्वारा इस बात को अपने गाइड लाइन में शामिल कर लिए जाने से डिवेलपर्स की फंडिंग संबंधी कमियां दूर हो जाएंगी और लो इनकम हाउसिंग में इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा। इस संबंध में राज्य सरकारों को अपनी ओर से सिर्फ इतना करना होगा कि वे मास्टर प्लान में शामिल इलाकों में रोड, सीवेज, पानी और बिजली जैसी सर्विस के साथ जमीन मुहैया कराएं।

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