Saturday, July 23, 2011

लोन लेना है तो फ्री होल्ड कराएं- Navbharat Times

लोन लेना है तो फ्री होल्ड कराएं- Navbharat Times

निर्भय कुमार
आप अगर डीडीए , एमसीडी या लैंड एंड डेवलपमेंट ऑफिस (एल एंड डीओ) की कोई लीज होल्ड प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं, तो लोन लेने के लिए उसे फ्री होल्ड कराना जरूरी है। याद रखें कि सिर्फ एलॉटी को ही लोन मिलता है, वह भी फ्लैटों पर। अगर आपके पास कोई प्लॉट है तो उस पर घर बनाने तक के लिए न तो एलॉटी को लोन मिलेगा और न ही जीपीए (जनरल पॉवर ऑफ एटॉर्नी) होल्डर को। दिल्ली में जो इलाके डीडीए या अन्य एजेंसियों के हैं, वहां पुरानी संपत्तियां लीज पर ही हैं। इसलिए मालिक बनने (टायटल अपने नाम करने) के लिए लीज होल्ड प्रॉपर्टी को फ्री होल्ड करवाना अहम हो जाता है।

किसी भी प्रॉपर्टी के लिए लीज होल्ड और फ्री होल्ड शब्द काफी अहमियत रखते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जब तक आपकी संपत्ति लीज पर रहती है, आप उसके मालिक नहीं होते, सिर्फ इस्तेमाल करने के अधिकारी होते हैं। संपत्ति के फ्री होल्ड होने के बाद ही आप उसके मालिक बनते हैं। दोनों शब्द प्रॉपर्टी के टाइटल से जुड़े हैं। खाली प्लॉट, उस पर बनी बिल्डिंग, अथॉरिटी के फ्लैट, ग्रुप हाउजिंग सोसाइटी फ्लैट या फिर इंडिपेंडेंट फ्लोर, ये सभी प्रॉपर्टी लीज या फ्री होल्ड हो सकती हैं।


लीज होल्ड प्रॉपर्टी
जब हम किसी प्रॉपर्टी के लिए लीज होल्ड शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो उसका मतलब यह होता है कि प्रॉपर्टीका मालिकाना हक आपको नहीं दिया गया। आप सिर्फ कांट्रैक्ट में निर्धारित समय के लिए उसका उपयोग करनेका हक रखते हैं। इसमें मालिकाना हक के ट्रांसफर किए जाने जैसी कोई बात नहीं होती। लीज की अवधि समाप्तहोने के बाद आप उस प्रॉपर्टी पर तभी काबिज रह सकते हैं जब आप लीज का रिन्यूअल कराएंगे। समय पूरा होनेके बाद मालिकाना हक दोबारा पहले पक्ष के पास चला जाता है। इस तरह की प्रॉपर्टी का टाइटल आपके पक्ष मेंकभी नहीं कहा जा सकता।

ट्रांसफर : कानून के मुताबिक आप वहीं संपत्ति बेच सकते हैं , जिसके आप मालिक हैं। चूंकि लीज होने के कारणआप मालिक नहीं होते , इसलिए लीज होल्ड प्रॉपर्टी को तीसरे पक्ष को सीधे बेचा नहीं जा सकता। इसके लिएपहले पक्ष यानी जिसने आपके पक्ष में लीज किया है , उसकी अनुमति लेनी पड़ती है। हालांकि डीडीए , एमसीडीया एल एंड डीओ की संपत्तियों के संबंध में इसकी जरूरत के बराबर रह गई है।

जो चलन है , उसके तहत लीज होल्ड प्रॉपर्टी के ट्रांसफर के लिए विल , एग्रीमेंट टु सेल और जीपीए ( जनरलपॉवर ऑफ एटॉर्नी ) आदि का सहारा लिया जाता है। इनमें से विल और जीपीए को रजिस्टर्ड कराना जरूरी नहींहोता। डीडीए , एल एंड डीओ और एमसीडी की संपत्तियों के लिए बनाए गए एग्रीमेंट टु सेल पर उसी प्रकारस्टांप ड्यूटी चुकानी होती है जैसे आप सेल डीड पर चुकाते हैं। 2001 में हुए नोटिफिकेशन के बाद से एग्रीमेंट टुसेल विद कंसिडरेशन को स्टांप ड्यूटी के मामले में सेल डीड के बराबर कर दिया गया।


याद रखें
- किसी भी लीज होल्ड प्रॉपर्टी के ट्रांसफर के संबंध में आप एग्रीमेंट टु सेल के साथ जीपीए बनवाना भूलें।प्रॉपर्टी मामलों के जानकार वकील दीपक कुमार सिंह का कहना है कि दोनों डॉक्यूमेंट एक दूसरे के पूरक हैं। आपजब डीडीए में प्रॉपर्टी ट्रांसफर कराने जाते हैं तो प्रॉपर्टी उसी के नाम में ट्रांसफर की जाती है , जिसके नामएग्रीमेंट टु सेल होता है। लेकिन अटॉनी होल्डर की भी जरूरत पड़ती है। सिंह के मुताबिक एग्रीमेंट टु सेल औरजीपीए दोनों दस्तावेज दो व्यक्तियों के नाम भी हो सकते हैं। ब्लड रिलेशन में आप लीज होल्ड से फ्री होल्डकरवाने के लिए स्पेशल पॉवर ऑफ एटॉर्नी का भी सहारा ले सकते हैं।

- लीज होल्ड प्रॉपर्टी के संबंध में आपको जिस एक और बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है , वह यह किआप इसे अपने परिवार तक में गिफ्ट नहीं कर सकते। आप जब भी इसे किसी के नाम ट्रांसफर करना चाहेंगे , तबकंसिडरेशन दिखा कर ही यानी स्टांप ड्यूटी पे कर ट्रांसफर कर सकेंगे।

- आप किसी इमरजेंसी में लीज होल्ड प्रॉपर्टी को फ्लोर के हिसाब से नहीं बेच सकते। हालांकि दिल्ली में फ्लोर याप्लॉट को टुकड़े में बेचने का काम धड़ल्ले से जारी है , लेकिन याद रहे यह डीडीए के लीज एग्रीमेंट के खिलाफ है।

- सबसे अहम बात तो यह कि आप स्टांप ड्यूटी चुकाने के बाद भी उस प्रॉपर्टी के मालिक नहीं बनते। बेचने वालेद्वारा आपके साथ सिर्फ फ्यूचर सेल का एग्रीमेंट होता है। लेकिन प्रॉपर्टी के फ्री होल्ड कराते आप मालिक बन जातेहैं। एग्रीमेंट टु सेल के आधार पर आप डीडीए से फ्री होल्ड करा सकते हैं।

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