जिगर साइया
पार्टनर एमजेडएस ऐंड असोसिएट्स
कोई भी मकान खरीदने या बेचने से पहले उस पर लागू होने वाले टैक्स के बारे में जानना समझदारी होगी। हम यहां किसी मकान की खरीदारी पर लगने वाले टैक्स/फायदे और उसे बेचने पर होने वाली आमदनी पर लगने वाले कर के बारे में चर्चा करेंगे।
मकान पर मालिकाना हक
भारतीय आयकर कानून 1961 (आईटी एक्ट) में आवासीय मकान को आमदनी का जरिया माना गया है। आयकर कानून के तहत 'हाउस प्रॉपर्टी से इनकम' मद के तहत मकान से होने वाली आमदनी पर मकान की सालाना वैल्यू के हिसाब से टैक्स लगता है। घर से होने वाली आमदनी या वाजिब किराए (उसी इलाके में समान साइज की प्रॉपर्टी के लिए अनुमानित सामान्य किराया) में से जो अधिक हो, उसे मकान की सालाना वैल्यू माना जाता है। मतलब अगर घर को किराए पर लगाया जाए, तो स्टैंडर्ड रूप से उससे जो कमाई हो सकती है, वह घर की सालाना वैल्यू होती है।
ऐसे घर में जहां, मकान मालिक खुद रहता है, वहां प्रॉपर्टी की सालाना वैल्यू शून्य हो जाती है। हालांकि, अगर एक से ज्यादा प्रॉपर्टी हो, तो सिर्फ एक ही प्रॉपर्टी को शून्य वैल्यू का माना जाता है, जिसमें मालिक खुद रहता हो। दूसरी हाउस प्रॉपर्टी से मिलने वाली आमदनी या वाजिब किराए को उस घर की सालाना वैल्यू माना जाता है। प्रॉपर्टी की सालाना वैल्यू से प्रॉपर्टी टैक्स, जल कर जैसे सार्वजनिक कर घटाए जाते हैं। इस शुद्ध सालाना वैल्यू का 30 फीसदी किराए की आमदनी से स्टैंडर्ड डिडक्शन होता है।
हाउसिंग लोन के मामले में कर्ज के लिए चुकाए जाने वाले ब्याज पर अतिरिक्त कर छूट मिलती है। हालांकि, आप खुद जिस प्रॉपर्टी में रह रहे हों, उस प्रॉपर्टी की सालाना वैल्यू शून्य मानी जाती है और उस मामले में कर छूट अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक मिलती है। अन्य मामलों में ब्याज के लिए डिडक्शन पर ऐसी कोई रोक नहीं है। अगर ब्याज पर छूट शुद्ध सालाना वैल्यू से ज्यादा हो, तो अतिरिक्त ब्याज को घाटे के तौर पर देखा जाता है। ऐसे घाटे को किसी दूसरी हाउस प्रॉपर्टी की इनकम से या उसी साल में व्यक्ति की किसी दूसरी आमदनी से एडजस्ट किया जा सकता है। पर्याप्त आमदनी न होने पर, इस घाटे को अगले साल हाउस प्रॉपर्टी से इनकम की मद में समायोजित किया जा सकता है। हालांकि, ऐसे घाटे को आठ साल से ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। फिलहाल स्टैंडर्ड डिडक्शन 30 फीसदी है, जिसे डीटीसी में 20 फीसदी करने का प्रस्ताव है।
घर बेचने पर कर प्रावधान
आईटी एक्ट के तहत रेजिडेंशल प्रॉपर्टी को बेचने या ट्रांसफर करने पर होने वाले किसी मुनाफे या घाटे को कैपिटल गेन या लॉस के तौर पर देखा जाता है। अगर कोई घर मालिक के पास तीन साल या इससे ज्यादा समय तक रहता है, तो इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट माना जाएगा और इसकी बिक्री या हस्तांतरण से होने वाले मुनाफे पर इसी हिसाब से 20 फीसदी की दर से टैक्स लगेगा। अगर होल्डिंग पीरियड तीन साल से कम हो, तो हाउस प्रॉपर्टी को शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट के तौर पर देखा जाता है और इसकी बिक्री या ट्रांसफर पर सामान्य दर (जो करदाता पर लागू हो) से टैक्स लगता है।
प्रॉपर्टी बेचने से होने वाले कैपिटल गेन की गणना के लिए बिक्री से होने वाली कमाई से प्रॉपर्टी खरीदने में हुए खर्च को घटाया जाता है। संबंधित राज्य के स्टांप एक्ट के तहत अगर प्रॉपर्टी की वैल्यू इसे बेचने से हुई कमाई से ज्यादा है, तो कैपिटल गेन जोड़ते समय स्टांप एक्ट के हिसाब से आंकी वैल्यू मान्य होती है। तीन साल या इससे ज्यादा समय तक रखी गई प्रॉपर्टी बेचने पर उस प्रॉपर्टी की खरीद वैल्यू को कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स के हिसाब से बढ़ाकर आंका जाता है। डीटीसी के अंतर्गत शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म में कोई अंतर नहीं रखा गया है। दोनों पर सामान्य दरों से टैक्स लगेगा। हालांकि, खरीद वैल्यू में कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स के हिसाब से समानुपातिक बढ़ोतरी का फायदा एक साल के बाद ही मिल जाएगा।
स्टांप ड्यूटी
प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री पर स्टांप ड्यूटी चुकाने का प्रावधान है। हर राज्य के स्टांप एक्ट के तहत इससे संबंधित शर्तें तय हैं। राज्य का कानून न होने पर इंडियन स्टांप एक्ट 1899 के तहत स्टांप ड्यूटी लगती है। अगर प्रॉपर्टी खरीदने वाला स्टांप ड्यूटी चुकाता है, तो जब वह उस प्रॉपर्टी को आगे बेचेगा तो इसे खरीद वैल्यू में जोड़ा जाएगा।
वेल्थ टैक्स
वेल्थ टैक्स एक्ट 1957 के प्रावधान के मुताबिक रेजिडेंशल या कमर्शल प्रॉपर्टी पर टैक्स का प्रावधान है। हालांकि, कुछ मामालों में छूट की भी व्यवस्था है। 30 लाख रुपए तक की प्रॉपर्टी पर एक फीसदी वेल्थ टैक्स लगता है। डीटीसी में इस सीमा को एक करोड़ रुपए तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
पार्टनर एमजेडएस ऐंड असोसिएट्स
कोई भी मकान खरीदने या बेचने से पहले उस पर लागू होने वाले टैक्स के बारे में जानना समझदारी होगी। हम यहां किसी मकान की खरीदारी पर लगने वाले टैक्स/फायदे और उसे बेचने पर होने वाली आमदनी पर लगने वाले कर के बारे में चर्चा करेंगे।
मकान पर मालिकाना हक
भारतीय आयकर कानून 1961 (आईटी एक्ट) में आवासीय मकान को आमदनी का जरिया माना गया है। आयकर कानून के तहत 'हाउस प्रॉपर्टी से इनकम' मद के तहत मकान से होने वाली आमदनी पर मकान की सालाना वैल्यू के हिसाब से टैक्स लगता है। घर से होने वाली आमदनी या वाजिब किराए (उसी इलाके में समान साइज की प्रॉपर्टी के लिए अनुमानित सामान्य किराया) में से जो अधिक हो, उसे मकान की सालाना वैल्यू माना जाता है। मतलब अगर घर को किराए पर लगाया जाए, तो स्टैंडर्ड रूप से उससे जो कमाई हो सकती है, वह घर की सालाना वैल्यू होती है।
ऐसे घर में जहां, मकान मालिक खुद रहता है, वहां प्रॉपर्टी की सालाना वैल्यू शून्य हो जाती है। हालांकि, अगर एक से ज्यादा प्रॉपर्टी हो, तो सिर्फ एक ही प्रॉपर्टी को शून्य वैल्यू का माना जाता है, जिसमें मालिक खुद रहता हो। दूसरी हाउस प्रॉपर्टी से मिलने वाली आमदनी या वाजिब किराए को उस घर की सालाना वैल्यू माना जाता है। प्रॉपर्टी की सालाना वैल्यू से प्रॉपर्टी टैक्स, जल कर जैसे सार्वजनिक कर घटाए जाते हैं। इस शुद्ध सालाना वैल्यू का 30 फीसदी किराए की आमदनी से स्टैंडर्ड डिडक्शन होता है।
हाउसिंग लोन के मामले में कर्ज के लिए चुकाए जाने वाले ब्याज पर अतिरिक्त कर छूट मिलती है। हालांकि, आप खुद जिस प्रॉपर्टी में रह रहे हों, उस प्रॉपर्टी की सालाना वैल्यू शून्य मानी जाती है और उस मामले में कर छूट अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक मिलती है। अन्य मामलों में ब्याज के लिए डिडक्शन पर ऐसी कोई रोक नहीं है। अगर ब्याज पर छूट शुद्ध सालाना वैल्यू से ज्यादा हो, तो अतिरिक्त ब्याज को घाटे के तौर पर देखा जाता है। ऐसे घाटे को किसी दूसरी हाउस प्रॉपर्टी की इनकम से या उसी साल में व्यक्ति की किसी दूसरी आमदनी से एडजस्ट किया जा सकता है। पर्याप्त आमदनी न होने पर, इस घाटे को अगले साल हाउस प्रॉपर्टी से इनकम की मद में समायोजित किया जा सकता है। हालांकि, ऐसे घाटे को आठ साल से ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। फिलहाल स्टैंडर्ड डिडक्शन 30 फीसदी है, जिसे डीटीसी में 20 फीसदी करने का प्रस्ताव है।
घर बेचने पर कर प्रावधान
आईटी एक्ट के तहत रेजिडेंशल प्रॉपर्टी को बेचने या ट्रांसफर करने पर होने वाले किसी मुनाफे या घाटे को कैपिटल गेन या लॉस के तौर पर देखा जाता है। अगर कोई घर मालिक के पास तीन साल या इससे ज्यादा समय तक रहता है, तो इसे लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट माना जाएगा और इसकी बिक्री या हस्तांतरण से होने वाले मुनाफे पर इसी हिसाब से 20 फीसदी की दर से टैक्स लगेगा। अगर होल्डिंग पीरियड तीन साल से कम हो, तो हाउस प्रॉपर्टी को शॉर्ट टर्म कैपिटल एसेट के तौर पर देखा जाता है और इसकी बिक्री या ट्रांसफर पर सामान्य दर (जो करदाता पर लागू हो) से टैक्स लगता है।
प्रॉपर्टी बेचने से होने वाले कैपिटल गेन की गणना के लिए बिक्री से होने वाली कमाई से प्रॉपर्टी खरीदने में हुए खर्च को घटाया जाता है। संबंधित राज्य के स्टांप एक्ट के तहत अगर प्रॉपर्टी की वैल्यू इसे बेचने से हुई कमाई से ज्यादा है, तो कैपिटल गेन जोड़ते समय स्टांप एक्ट के हिसाब से आंकी वैल्यू मान्य होती है। तीन साल या इससे ज्यादा समय तक रखी गई प्रॉपर्टी बेचने पर उस प्रॉपर्टी की खरीद वैल्यू को कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स के हिसाब से बढ़ाकर आंका जाता है। डीटीसी के अंतर्गत शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म में कोई अंतर नहीं रखा गया है। दोनों पर सामान्य दरों से टैक्स लगेगा। हालांकि, खरीद वैल्यू में कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स के हिसाब से समानुपातिक बढ़ोतरी का फायदा एक साल के बाद ही मिल जाएगा।
स्टांप ड्यूटी
प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री पर स्टांप ड्यूटी चुकाने का प्रावधान है। हर राज्य के स्टांप एक्ट के तहत इससे संबंधित शर्तें तय हैं। राज्य का कानून न होने पर इंडियन स्टांप एक्ट 1899 के तहत स्टांप ड्यूटी लगती है। अगर प्रॉपर्टी खरीदने वाला स्टांप ड्यूटी चुकाता है, तो जब वह उस प्रॉपर्टी को आगे बेचेगा तो इसे खरीद वैल्यू में जोड़ा जाएगा।
वेल्थ टैक्स
वेल्थ टैक्स एक्ट 1957 के प्रावधान के मुताबिक रेजिडेंशल या कमर्शल प्रॉपर्टी पर टैक्स का प्रावधान है। हालांकि, कुछ मामालों में छूट की भी व्यवस्था है। 30 लाख रुपए तक की प्रॉपर्टी पर एक फीसदी वेल्थ टैक्स लगता है। डीटीसी में इस सीमा को एक करोड़ रुपए तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
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