नीतू सिंह ॥ नई दिल्ली
एमसीडी ने फ्लोर वाइज नक्शे पास करने और इनके नियमितीकरण के नए नियम जल्द लाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह प्रस्ताव पास करना आसान नहीं होगा। बिना अन्य संबंधित एजेंसियों की मंजूरी के इसे पास नहीं किया जा सकता और अगर यह पास हो भी गया तो पड़ोसियों की अनुमति के बिना निर्माण करना जमीनी स्तर पर संभव नहीं हो पाएगा।
इंजीनियरिंग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ज्यादातर विवाद ऊपर, नीचे के फ्लोर पर अलग-अलग मालिकाना हक होने पर रहता है। मान लीजिए नीचे के फ्लोर पर बालकनी नहीं है और ऊपर वाले ने आगे की तरफ बालकनी निकालने का प्लान कर लिया तो उसके हिसाब से नीचे वाले घर की छत तो आगे बढ़ाई नहीं जा सकती। इसी तरह अगर नीचे के फ्लोर वाले ने बालकनी का 60 पर्सेंट हिस्सा कवर कर रखा है तो ऊपर वाला 100 पर्सेंट कैसे कवर कर लेगा। इस सबके लिए नीचे वाले फ्लोर के स्ट्रक्चर में बदलाव की जरूरत पड़ेगी और उसके लिए पड़ोसी की सहमति जरूरी होगी। इस नियम का सबसे ज्यादा असर डीडीए के फ्लैटों में पड़ेगा, जहां पहले से ही आपसी सहमति से बदलाव करने की अनुमति है। एक अन्य अधिकारी का कहना है कि दिल्ली में पहले से बिल्डिंग के सेफ्टी स्ट्रक्चर को लेकर गंभीरता कम है। ऐसे में अगर नया प्रस्ताव लागू होता है तो लोग इसे कमाई का नया जरिया बना लेंगे। नकली सर्टिफिकेट बनवाकर ऐसे घरों के ऊपर भी फ्लोर बनाकर बेचना शुरू कर देंगे जिनकी नींव अतिरिक्त भार झेलने के काबिल नहीं होगी। इससे दिक्कतें और बढ़ सकती हैं।
एमसीडी की स्थायी समिति के एक सदस्य का कहना है कि एमसीडी अकेले इस प्रस्ताव को पास नहीं कर सकती। बिल्डिंग बाई लॉज में डीडीए और अर्बन डिवेलपमेंट मिनिस्ट्री की भूमिका अहम है। ऐसे में अगर तीनों विभागों की सहमति नहीं हुई तो प्रस्ताव पास नहीं हो पाएगा। अगर डीडीए ने सहमति दे भी दी तो यह जरूरी नहीं कि उपराज्यपाल इसकी अनुमति दे दें। एक अन्य अधिकारी का कहना है कि एमसीडी में पहले भी यह प्रस्ताव लाया गया था, मगर इस पर कई विवाद शुरू हो गए। मामला उपराज्यपाल तक पहुंचा था। वहां मीटिंग भी हुई थी मगर बात आगे नहीं बढ़ सकी।
एमसीडी ने फ्लोर वाइज नक्शे पास करने और इनके नियमितीकरण के नए नियम जल्द लाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह प्रस्ताव पास करना आसान नहीं होगा। बिना अन्य संबंधित एजेंसियों की मंजूरी के इसे पास नहीं किया जा सकता और अगर यह पास हो भी गया तो पड़ोसियों की अनुमति के बिना निर्माण करना जमीनी स्तर पर संभव नहीं हो पाएगा।
इंजीनियरिंग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि ज्यादातर विवाद ऊपर, नीचे के फ्लोर पर अलग-अलग मालिकाना हक होने पर रहता है। मान लीजिए नीचे के फ्लोर पर बालकनी नहीं है और ऊपर वाले ने आगे की तरफ बालकनी निकालने का प्लान कर लिया तो उसके हिसाब से नीचे वाले घर की छत तो आगे बढ़ाई नहीं जा सकती। इसी तरह अगर नीचे के फ्लोर वाले ने बालकनी का 60 पर्सेंट हिस्सा कवर कर रखा है तो ऊपर वाला 100 पर्सेंट कैसे कवर कर लेगा। इस सबके लिए नीचे वाले फ्लोर के स्ट्रक्चर में बदलाव की जरूरत पड़ेगी और उसके लिए पड़ोसी की सहमति जरूरी होगी। इस नियम का सबसे ज्यादा असर डीडीए के फ्लैटों में पड़ेगा, जहां पहले से ही आपसी सहमति से बदलाव करने की अनुमति है। एक अन्य अधिकारी का कहना है कि दिल्ली में पहले से बिल्डिंग के सेफ्टी स्ट्रक्चर को लेकर गंभीरता कम है। ऐसे में अगर नया प्रस्ताव लागू होता है तो लोग इसे कमाई का नया जरिया बना लेंगे। नकली सर्टिफिकेट बनवाकर ऐसे घरों के ऊपर भी फ्लोर बनाकर बेचना शुरू कर देंगे जिनकी नींव अतिरिक्त भार झेलने के काबिल नहीं होगी। इससे दिक्कतें और बढ़ सकती हैं।
एमसीडी की स्थायी समिति के एक सदस्य का कहना है कि एमसीडी अकेले इस प्रस्ताव को पास नहीं कर सकती। बिल्डिंग बाई लॉज में डीडीए और अर्बन डिवेलपमेंट मिनिस्ट्री की भूमिका अहम है। ऐसे में अगर तीनों विभागों की सहमति नहीं हुई तो प्रस्ताव पास नहीं हो पाएगा। अगर डीडीए ने सहमति दे भी दी तो यह जरूरी नहीं कि उपराज्यपाल इसकी अनुमति दे दें। एक अन्य अधिकारी का कहना है कि एमसीडी में पहले भी यह प्रस्ताव लाया गया था, मगर इस पर कई विवाद शुरू हो गए। मामला उपराज्यपाल तक पहुंचा था। वहां मीटिंग भी हुई थी मगर बात आगे नहीं बढ़ सकी।
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