Tuesday, July 5, 2011

प्रॉपर्टी बेचनी हो तो बारगेनिंग का मौका न दें- Navbharat Times

प्रॉपर्टी बेचनी हो तो बारगेनिंग का मौका न दें- Navbharat Times

प्रॉपर्टी बेचते वक्त भी हमें कई चीजों पर ध्यान रखना होता है। सबसे पहले तो यह कि आपके कागजात अप-टु-डेट हों। यानी हाउस टैक्स, लोन या फिर किसी और तरह का बकाया जैसे बिजली-पानी वगैरह पेड हो। इन चीजों के उलझे रहने की स्थिति में सबसे ज्यादा खामियाजा इस बात का होता है कि खरीददार को बारगेन करने का बेवजह मौका मिल जाता है।

वेस्ट दिल्ली के एक प्रॉपर्टी कारोबारी पवन सिंघल कहते हैं, 'आजकल खरीददार घर खरीदते किसी तरह की टेंशन नहीं लेना चाहता। वह पूरी तरह से मेंटल पीस चाहता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इन वजहों के आधार पर बारगेन में लग जाता है। सिंघल के मुताबिक दोनों ही स्थितियों में नुकसान बेचने वाले का होता है। उसे इन छोटी बातों से जो रेट मिलना चाहिए नहीं मिल पाता है।

फ्री या लीज होल्ड
कागजात की बात करें तो प्रॉपर्टी ट्रांसफर में ओनरशिप का रोल भी अहम हो जाता है। यानी अगर प्रॉपर्टी डीडीए या किसी अन्य एजेंसी की हो, तो बेचने वाले को लीज होल्ड से फ्री होल्ड करा ही लेना चाहिए। इससे उसकी प्रॉपर्टी की कीमत काफी बढ़ जाती है। वेस्ट दिल्ली के ही प्रॉपर्टी एक्सपर्ट विकास की मानें लीज होल्ड से फ्री होल्ड कराने में कुछ समय और कुछ हजार का खर्च जरूर लगता है, लेकिन इसका फायदा कहीं उससे ज्यादा होता है। इसलिए कुछ हजार का मोह सेलर न हीं करें तो अच्छा रहेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि फ्री होल्ड प्रॉपर्टी पर खरीददार लोन ले लेता है।

हड़बड़ी न करें
आज कल ज्यादातर सौदे चूंकि लोन पर ही हो रहे हैं, इसलिए सेलर के लिए इमरजेंसी न हो, तो नॉर्मल से ज्यादा समय देने का ऑप्शन भी रखना चाहिए। हड़बड़ाहट में नुकसान उठाने का कोई मतलब नहीं बनता। और, ज्यादा समय के साथ साथ पेमेंट का फ्लेक्सी मोड भी चलन में है। यानी अगर खरीददार कुछ चेक से और कुछ कैश का ऑप्शन दे तो मार्केट हालात को देखते हुए स्वीकार कर लें। लोन की स्थिति में ज्यादातर ऐसे ही मामले बनते हैं। मना कर आप अपने ऑप्शन ही कम करते हैं। हां, सेलर को टैक्स आदि का डर रहता है। लेकिन यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सर्किल रेट अब पहले जैसे नहीं है कि आप ज्यादा फायदा उठा सकें।

प्रॉपर्टी वैल्यूएशन
अब आखिर में बात यह आती है कि अपनी प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन कैसे करें? इसका सामान्य तरीका जो प्रचलन में है वह तो यही है कि आप आसपास की प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से पता कर सकते हैं कि आपकी प्रॉपर्टी का क्या रेट मिलेगा? लेकिन दिल्ली में एक घर से दूसरे घर का रेट लाखों में अंतर खा जाता है। इसकी कई वजहें हैं। एक तो यह कि प्रॉपर्टी कितनी पुरानी है? यानी खरीददार को इसे लेते ही तोड़ कर बनाना तो नहीं पड़ेगा या फिलहाल रहने लायक है या फिर एकदम नए अंदाज में बनी नई प्रॉपर्टी है?

No comments: