Monday, May 16, 2011

पार्किंग की गाड़ी भी फंसी हुई है:दिल में है दिल्ली:दिलबर गोठीका ब्लॉग-नवभारत टाइम्स

पार्किंग की गाड़ी भी फंसी हुई है:दिल में है दिल्ली:दिलबर गोठीका ब्लॉग-नवभारत टाइम्स

पार्किंग की गाड़ी भी फंसी हुई है

दिलबर गोठी Sunday May 15, 2011

साउथ दिल्ली के एक साहब ने अपनी समस्या नेट पर डाली है और लोगों से जवाब मांगे हैं। समस्या यह है कि उनके घर के साथ की दो बिल्डिंगों में से एक में बिल्डर का ऑफिस है और दूसरी बिल्डिंग गिराकर दोबारा बनाई जा रही है। इन बिल्डिंगों में आने वाले अक्सर अपनी गाड़ी इन साहब के घर के बाहर पार्क कर जाते हैं। इन्हें बहुत गुस्सा आता है। सोचा कि टायर पंक्चर कर दूं या स्क्रेच डाल दूं लेकिन जमीर ने गवारा नहीं किया। अब इन साहब ने लोगों से सलाह मांगी है कि मैं क्या करूं? जवाब भी दिलचस्प हैं।


कोई कह रहा है कि पड़ोसी से ही मदद मांगो तो कोई कह रहा है कि आपके घर के बाहर की जगह आपकी पार्किंग के लिए रिजर्व कैसे हो गई। वह तो पब्लिक लैंड है और उस पर कोई भी अपनी गाड़ी खड़ी कर सकता है। किसी ने पार्किंग स्पेस सुनिश्चित रखने के लिए गार्ड की नियुक्ति का सुझाव दिया है। यह समस्या केवल इन साहब की ही नहीं बल्कि घर-घर की कहानी है। यह समस्या रोजाना और गंभीर होती जा रही है लेकिन सचाई यह है कि अब तक इस पर गंभीरता से सोचा ही नहीं गया।


दिल्ली में इस समय करीब 20 लाख कारें हैं और हर साल 80 से 90 हजार कारें इस गिनती को और आगे बढ़ा देती हैं। पहले एक घर में एक गाड़ी हो तो उसे गौरव समझा जाता था लेकिन अब हर घर में 3-4 गाड़ियां होना भी बड़ी बात नहीं है। यही वजह है कि संकरी गली हो, बड़ी सड़क हो, बाजार हो, ऑफिस कॉम्पलेक्स हो, पॉश कॉलोनी हो, हाउसिंग सोसायटी हो, नई कॉलोनी हो, पुरानी आबादी हो या फिर वैध-अवैध बस्ती-हर जगह पार्किंग एक बड़ी समस्या के रूप में बनकर सामने आ रही है। हैरानी की बात यह है कि इस बारे में जिससे भी बात करो, वह चिंतित भी दिखाई देगा और कुछ उपाय भी सुझाएगा लेकिन इस दिशा में अब तक कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया गया। यहां तक कि कोर्ट ने दिल्ली की पार्किंग पॉलिसी बनाने का भी निर्देश दिया लेकिन नतीजा सिफर ही है।


गाड़ियों की संख्या पर नियंत्रण लगाने का सुझाव भी कई बार आया है। सीएम शीला दीक्षित खुद सुझाव दे चुकी हैं कि जिनके नाम एक से ज्यादा गाड़ियां हों, उनसे ज्यादा टैक्स वसूला जाए। राजधानी में कारों की कुल संख्या पर भी नियंत्रण लगाने की बात की जा चुकी है लेकिन ऐसे अलोकप्रिय कदम उठाने की हिम्मत किसी में नहीं है। गाड़ियों की संख्या पर अंकुश तभी लग सकता है जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट इतना भरोसेमंद हो कि लोगों को अपनी कार की जरूरत ही महसूस नहीं हो। मेट्रो करीब 16 लाख यात्रियों को रोजाना ढोल रही है लेकिन दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा अभी इससे वंचित है।


फीडर सर्विस के अभाव में भी लोग मेट्रो तक पहुंच नहीं बना पाते। यों भी मेट्रो की भीड़ से भी कुछ लोग बचना चाहते हैं। डीटीसी अभी तक विश्वसनीय सेवा नहीं दे पाई। ब्लूलाइन से तो तौबा कर ली गई है लेकिन क्लस्टर बसें अभी आई ही हैं। लोग कारों से मेट्रो स्टेशन तक आएं तो वहां भी पार्किंग नहीं मिल पाती। लिहाजा कारों की तादाद और पार्किंग की समस्या लगातार गंभीर हो रही है। मास्टर प्लान के निर्देशों के बाद एमसीडी ने पार्किंग साइट बनाने के वादे तो बहुत किए और कन्वर्जन चार्जेस के रूप में लोगों से टैक्स भी खूब वसूला लेकिन स्थिति यह है कि राजधानी में कुल मिलाकर 5 फीसदी गाड़ियों को भी पार्किंग मुहैया नहीं कराई जा सकी। कमर्शल वाहन भी अक्सर सड़कों पर ही खड़े नजर आते हैं।


सरकार ने पार्किंग शुल्क बढ़ाकर इस समस्या पर काबू पाने की भी कोशिश की लेकिन लोग दिन भर की पार्किंग के लिए सौ रुपये तक खर्च करने को तैयार हैं क्योंकि उन्हें घर से कामकाज तक आने और वापस जाने की सुविधा चाहिए जो और किसी विकल्प से उपलब्ध नहीं है। लंदन में पार्किंग शुल्क बढ़ाकर कुछ हद तक लोगों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तरफ मोड़ा गया लेकिन यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट की असफलता ने इस कदम को भी बेअसर कर दिया है।


इस समस्या से कुछ हद तक निपटने के लिए सुझाव हैं- कार पूल को बढ़ावा दिया जाए, मेट्रो लाइनों के नीचे की स्पेस पर पार्किंग उपलब्ध कराई जाए, गलत पार्किंग करने वालों पर मोटा जुर्माना लगाया जाए, लोगों में पार्किंग की तमीज लाने के अभियान चलाए जाएं तथा कमर्शल वाहनों पर और पाबंदियां लगाई जाएं। बातें बहुत हो सकती हैं लेकिन कदम तो सख्त ही चाहिए। शायद सरकार ऐसे कदम उठाने में हिचके, कोर्ट से कोई सख्त फैसला आए तो बात बनेI

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