पिछले कुछ सालों में होम लोन पर ब्याज दरें इतनी जल्दी-जल्दी ऊपर-नीचे हो रही हैं कि होम लोन एप्लिकेंट न तो ईएमआई का पूर्वानुमान लगा पा रहे हैं और न ही इस बारे में कोई पुख्ता फैसला कर पा रहे हैं कि होम लोन का समय कितना रखा जाए। क्या-क्या हो सकते हैं विकल्प, डालते हैं इस पर एक नजर :
जब आप होम लोन के बारे में सोचते हैं, तो जरूरी हो जाता है कि उससे जुड़ी उन बातों पर भी ध्यान दें, जो आपके इस बोझ को उतारने का आसान रास्ता तैयार करें। आज होम लोन का सही विकल्प चुनना थोड़ा मुश्किल हो गया है, इसलिए काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। होम लोन के मामले में अतिरिक्त सावधानी इसलिए रखनी चाहिए, क्योंकि इस मामले में परिस्थितियां हमेशा वैसी नहीं रहेंगी, जैसी लोन लेते समय हैं। ब्याज की दरों के बारे में भी कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता।
जब इंटरेस्ट रेट ज्यादा हों
होम लोन पर ब्याज दर बढ़ने का सीधा मतलब है, लोन लेने वाले व्यक्ति पर ज्यादा भार। उस समय इस भार को हल्का करने के लिए 2 तरीके सामने होते हैं। पहला, ईएमआई ज्यादा चुकाई जाए और दूसरा, होम लोन की अवधि बढ़वा ली जाए। दूसरे शब्दों में कहें, तो या तो पहले से ही तय समय तक ज्यादा ईएमआई चुकाएं या फिर वही ईएमआई पहले से तय समय से ज्यादा समय तक चुकाएं। समय वही रखकर ईएमआई ज्यादा करने का मतलब है कि हर महीने होम लोन चुकाने के लिए ज्यादा रकम देना, जबकि ईएमआई वही रखकर लोन की समय सीमा आगे खिसकाने का मतलब है कि ज्यादा लंबे समय तक लोन चुकाना होगा, लेकिन ईएमआई के तुरंत बोझ से बचा जा सकेगा।
अगर इंटरेस्ट रेट ज्यादा हो, तो शॉर्ट टर्म लोन यानी कम समय का लोन लेना सही रहता है। हालांकि तब ईएमआई की रकम बढ़ जाएगी। अगर आप कम अवधि का ऋण नहीं लेना चाहते, तो लंबे समय का लोन लेना सही रहेगा। यह फ्लोटिंग ब्याज दरों पर लेना अच्छा रहेगा, क्योंकि ऊंची दरें लंबे समय के लिए नहीं रहेंगी।
वैसे, ऋण चुकाने की समय-सीमा का फैसला करने से पहले यह तय करें कि आप हर महीने ज्यादा से ज्यादा कितनी किस्त चुका सकते हैं? इसके आधार पर ही यह तय होगा कि आप कम से कम कितने सालों के लिए लोन लेंगे? ऊंची ब्याज दरों की स्थिति में कम अवधि का लोन लेने से यह फायदा होगा कि ईएमआई में प्रिंसिपल अमाउंट ज्यादा होगा और इंटरेस्ट कम, लेकिन ईएमआई की रकम सामान्य से ज्यादा होगी।
जब कम हों रेट
होम लोन की ब्याज दरों में कमी होने पर सबसे ज्यादा खुशी होम लोन लेने वालों को ही होती है, फिर चाहे वे नए ग्राहक हों या पुराने। अगर पुराने ग्राहकों ने फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लिया है, तो उनकी ईएमआई खुद-ब-खुद कम हो जाती है। दूसरा विकल्प यहां भी सामने होता है कि ईएमआई वही रखकर लोन चुकाने की समय सीमा कम की जा सकती है। ऐसा करने पर जल्दी ही होम लोन से छुटकारा पाया जा सकेगा।
जब स्विच करें
स्विच करने से मतलब यह है कि जब होम लोन पर फ्लोटिंग की बजाय फिक्स्ड रेट से इंटरेस्ट चुकाया जाए या फिक्स्ड से फ्लोटिंग रेट पर आया जाए। इसके लिए बैंक या हाउसिंग फाइनैंस कंपनी को पहले से तय कनवर्जन फीस चुकानी पड़ती है। यह जानना जरूरी है कि हर महीने चुकाई जाने वाली ईएमआई और लोन वापसी की समय सीमा का सीधा संबंध लोन के प्रिंसिपल अमाउंट से होता है। साथ ही, कनर्वजन फीस चुकाने के बाद नया इंटरेस्ट रेट भी लोन का अमाउंट तय करता है। आप अपनी सुविधा के अनुसार यह तय कर सकते हैं कि ईएमआई एडजस्ट करें या लोन की समय सीमा।
आखिर चुनें कौन-सा
यह भी अहम सवाल है कि ब्याज दरों का कौन-सा विकल्प चुना जाए? फिक्सड, फ्लोटिंग या हायब्रिड। फिक्सड रेट इंटरेस्ट में ब्याज दर लोन खत्म होने तक एक ही रहती है। भले ही माकेर्ट में रेट कितने भी ऊपर-नीचे क्यों न हों? फ्लोटिंग रेट में माकेर्ट रेट के अनुसार ब्याज देना पड़ता है, जबकि हायब्रिड लोन में फिक्सड और फ्लोटिंग दोनों तरह के लोन की कुछ फीचर्स शामिल होती हैं। इसमें लोन की कुछ रकम पर (3-5 साल तक) फिक्सड इंटरेस्ट रेट लगता है और बाकी पर फ्लोटिंग।
इस उम्मीद के साथ कि इंटरेस्ट रेट्स नहीं बढ़ेंगे, अमूमन लोग फिक्स्ड रेट्स पर होम लोन लेना पसंद करते हैं। फिक्स्ड रेट्स हमेशा फ्लोटिंग रेट्स से कुछ ज्यादा रहते हैं। फिक्सड रेट पर लोन लेने वाले तमाम लोगों की लोन रेट रिवाइज किए जाने की शिकायत रहती है। इससे कई बार फिक्स्ड रेट फ्लोटिंग रेट के बराबर या ज्यादा हो जाते हैं, इसलिए लोन अग्रीमेंट करते वक्त इस बात का ख्याल रखें कि बैंक फिक्स्ड रेट को रिवाइज किए जाने जैसी शर्तें तो नहीं रख रहा है।
जब आप होम लोन के बारे में सोचते हैं, तो जरूरी हो जाता है कि उससे जुड़ी उन बातों पर भी ध्यान दें, जो आपके इस बोझ को उतारने का आसान रास्ता तैयार करें। आज होम लोन का सही विकल्प चुनना थोड़ा मुश्किल हो गया है, इसलिए काफी सावधानी बरतने की जरूरत है। होम लोन के मामले में अतिरिक्त सावधानी इसलिए रखनी चाहिए, क्योंकि इस मामले में परिस्थितियां हमेशा वैसी नहीं रहेंगी, जैसी लोन लेते समय हैं। ब्याज की दरों के बारे में भी कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता।
जब इंटरेस्ट रेट ज्यादा हों
होम लोन पर ब्याज दर बढ़ने का सीधा मतलब है, लोन लेने वाले व्यक्ति पर ज्यादा भार। उस समय इस भार को हल्का करने के लिए 2 तरीके सामने होते हैं। पहला, ईएमआई ज्यादा चुकाई जाए और दूसरा, होम लोन की अवधि बढ़वा ली जाए। दूसरे शब्दों में कहें, तो या तो पहले से ही तय समय तक ज्यादा ईएमआई चुकाएं या फिर वही ईएमआई पहले से तय समय से ज्यादा समय तक चुकाएं। समय वही रखकर ईएमआई ज्यादा करने का मतलब है कि हर महीने होम लोन चुकाने के लिए ज्यादा रकम देना, जबकि ईएमआई वही रखकर लोन की समय सीमा आगे खिसकाने का मतलब है कि ज्यादा लंबे समय तक लोन चुकाना होगा, लेकिन ईएमआई के तुरंत बोझ से बचा जा सकेगा।
अगर इंटरेस्ट रेट ज्यादा हो, तो शॉर्ट टर्म लोन यानी कम समय का लोन लेना सही रहता है। हालांकि तब ईएमआई की रकम बढ़ जाएगी। अगर आप कम अवधि का ऋण नहीं लेना चाहते, तो लंबे समय का लोन लेना सही रहेगा। यह फ्लोटिंग ब्याज दरों पर लेना अच्छा रहेगा, क्योंकि ऊंची दरें लंबे समय के लिए नहीं रहेंगी।
वैसे, ऋण चुकाने की समय-सीमा का फैसला करने से पहले यह तय करें कि आप हर महीने ज्यादा से ज्यादा कितनी किस्त चुका सकते हैं? इसके आधार पर ही यह तय होगा कि आप कम से कम कितने सालों के लिए लोन लेंगे? ऊंची ब्याज दरों की स्थिति में कम अवधि का लोन लेने से यह फायदा होगा कि ईएमआई में प्रिंसिपल अमाउंट ज्यादा होगा और इंटरेस्ट कम, लेकिन ईएमआई की रकम सामान्य से ज्यादा होगी।
जब कम हों रेट
होम लोन की ब्याज दरों में कमी होने पर सबसे ज्यादा खुशी होम लोन लेने वालों को ही होती है, फिर चाहे वे नए ग्राहक हों या पुराने। अगर पुराने ग्राहकों ने फ्लोटिंग रेट पर होम लोन लिया है, तो उनकी ईएमआई खुद-ब-खुद कम हो जाती है। दूसरा विकल्प यहां भी सामने होता है कि ईएमआई वही रखकर लोन चुकाने की समय सीमा कम की जा सकती है। ऐसा करने पर जल्दी ही होम लोन से छुटकारा पाया जा सकेगा।
जब स्विच करें
स्विच करने से मतलब यह है कि जब होम लोन पर फ्लोटिंग की बजाय फिक्स्ड रेट से इंटरेस्ट चुकाया जाए या फिक्स्ड से फ्लोटिंग रेट पर आया जाए। इसके लिए बैंक या हाउसिंग फाइनैंस कंपनी को पहले से तय कनवर्जन फीस चुकानी पड़ती है। यह जानना जरूरी है कि हर महीने चुकाई जाने वाली ईएमआई और लोन वापसी की समय सीमा का सीधा संबंध लोन के प्रिंसिपल अमाउंट से होता है। साथ ही, कनर्वजन फीस चुकाने के बाद नया इंटरेस्ट रेट भी लोन का अमाउंट तय करता है। आप अपनी सुविधा के अनुसार यह तय कर सकते हैं कि ईएमआई एडजस्ट करें या लोन की समय सीमा।
आखिर चुनें कौन-सा
यह भी अहम सवाल है कि ब्याज दरों का कौन-सा विकल्प चुना जाए? फिक्सड, फ्लोटिंग या हायब्रिड। फिक्सड रेट इंटरेस्ट में ब्याज दर लोन खत्म होने तक एक ही रहती है। भले ही माकेर्ट में रेट कितने भी ऊपर-नीचे क्यों न हों? फ्लोटिंग रेट में माकेर्ट रेट के अनुसार ब्याज देना पड़ता है, जबकि हायब्रिड लोन में फिक्सड और फ्लोटिंग दोनों तरह के लोन की कुछ फीचर्स शामिल होती हैं। इसमें लोन की कुछ रकम पर (3-5 साल तक) फिक्सड इंटरेस्ट रेट लगता है और बाकी पर फ्लोटिंग।
इस उम्मीद के साथ कि इंटरेस्ट रेट्स नहीं बढ़ेंगे, अमूमन लोग फिक्स्ड रेट्स पर होम लोन लेना पसंद करते हैं। फिक्स्ड रेट्स हमेशा फ्लोटिंग रेट्स से कुछ ज्यादा रहते हैं। फिक्सड रेट पर लोन लेने वाले तमाम लोगों की लोन रेट रिवाइज किए जाने की शिकायत रहती है। इससे कई बार फिक्स्ड रेट फ्लोटिंग रेट के बराबर या ज्यादा हो जाते हैं, इसलिए लोन अग्रीमेंट करते वक्त इस बात का ख्याल रखें कि बैंक फिक्स्ड रेट को रिवाइज किए जाने जैसी शर्तें तो नहीं रख रहा है।
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