Friday, May 13, 2011

प्रॉपर्टी के मामले में धोखेबाजों से बचें-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

प्रॉपर्टी के मामले में धोखेबाजों से बचें-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

कई बार धोखेबाज फर्जी कागजात के सहारे प्रॉपर्टी हड़प लेते हैं। मामलों में कहां रहे झोल और क्या बरती जा सकती हैं सावधानियां? बता रहे हैं अमित कुश :

फर्जी कागजात से कोई हड़प न ले घर
केस स्टडी-1
मिर्जापुर निवासी महेंद्र ने खुर्जा के रहने वाले रफीक को रहने के लिए करीब डेढ़ बीघा जमीन रहने के लिए दी थी। महेंद्र ने रफीक से कहा था कि जब तक मर्जी हो, वह इस जमीन पर रह सकता है। अब यहां जमीनों के रेट आसमान छूने लगे हैं। जमीन के पास से ही यमुना एक्सप्रेस-वे गुजर रहा है। इस कारण रफीक के मन में लालच आ गया। वह महेंद्र के अहसान भूल गया। आरोप है कि रफीक ने जमीन को अपना बताना शुरू कर दिया और फर्जी डॉक्युमेंट बनवा लिया। इसके बाद उसने जमीन को मिर्जापुर के ही रहने वाले रणपाल व उसके भाई किरणपाल को लगभग 9 लाख रुपये में बेच दी। इस फजीर्वाड़े में कई अन्य लोग भी शामिल थे। रफीक की इस कारगुजारी का महेंद्र को पता चला, तो कासना कोतवाली में 6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया।

केस स्टडी-2
कर्नाटक के गुलबर्ग निवासी एम.एस. राव (71) केंद और यूपी सरकार में कई शीर्ष पदों पर रह चुके हैं। इंदिरापुरम थाने में दी गई शिकायत में उन्होंने बताया कि जीडीए की 1986 में वैशाली में आवासीय योजना के अंतर्गत उन्हें वैशाली रचना के फ्लैट नंबर थर्डए/169 में मकान आवंटित किया गया था। फ्लैट की पूरी पेमेंट करने के बाद 2003 में उन्होंने जीडीए से रजिस्ट्री भी करवा ली थी, लेकिन वह कर्नाटक में ही रहते थे। वैशाली में उनके फ्लैट के आसपास रहने वाले लोगों से उन्हें सूचना मिली कि सुभाष पार्क, नवीन नगर में रहने वाले इंद्र सिंह ने फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बनाकर उनका फ्लैट अपने नाम करवा लिया है। यही नहीं, उसने फ्लैट को मुरादाबाद के चंद्रपाल सिंह को भी फर्जी तरीके से बेच दिया है। दोनों ने मिलीभगत कर उनके फ्लैट का जीडीए से मुटेशन (सरकारी रेकॉर्ड में नाम दर्ज) भी करा लिया है। पुलिस ने उक्त दोनों आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।

ये दोनों मामले साफ तौर पर धारा 420 के मुकदमे हैं। यह धारा धोखाधड़ी के मामलों में लगाई जाती है। दूसरे मामले में धारा 471 और धारा 468 भी लगाई जानी चाहिए। यह स्पष्ट कर दें कि नकली कागजात के आधार पर की जाने वाली डील को कानूनी मान्यता नहीं होगी, इसलिए धोखाधड़ी साबित हो जाने पर बाद की चेन का कोई भी खरीदार प्रॉपर्टी पर अपना दावा नहीं कर सकता, जैसा दूसरे मामले में चंद्रपाल सिंह। बहरहाल, बात करते हैं कुछ और सावधानियों की।

फर्जी साइन
- फर्जी डॉक्युमेंट बनाने का सबसे आसान तरीका है, मूल व्यक्ति के जाली साइन करना। निश्चित रूप से फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बनाने वाले व्यक्ति ने कर्नाटक निवासी एम.एस. राव के फर्जी साइन तैयार किए होंगे।

- डॉक्यूमेंट्स असली हैं या नकली, यह जांच उस स्थिति में ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है, जब प्रॉपर्टी किसी को हो और आपके साथ डील कोई तीसरा व्यक्ति कर रहा हो, जैसा दूसरे मामले में हुआ। ऐसे में साइन के भी असली या नकली होने की जांच करनी चाहिए। इसके लिए आपको किसी हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की मदद लेनी होगी।

रजिस्ट्रेशन
- रजिस्ट्रेशन ऐक्ट के अनुसार किसी भी तरह की पावर ऑफ अटॉर्नी, वसीयत और डीड की रजिस्ट्री कराना आवश्यक कर दिया गया है। अगर पावर ऑफ अटॉर्नी रजिस्टर्ड नहीं कराई गई है, तो उसकी कानूनी मान्यता नहीं होगी। वह राइट टू ट्रांसफर नहीं देती।

- नकली पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करने वाला व्यक्ति आमतौर पर उसकी रजिस्ट्री कराने से बचता है। यह एक बड़ा क्लू हो सकता है।

- अनरजिस्टर्ड पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर कोई भी डील करने से बचना चाहिए।

क्या है पावर ऑफ अटॉर्नी
' पावर ऑफ अटॉर्नी' किसी अचल संपत्ति के मालिकाना हक को ट्रांसफर करने के लिए तैयार की जा सकती है। रजिस्ट्री के बदले पीओए का इस्तेमाल आमतौर पर उन हालात में किया जाता है, जब प्रॉपर्टी का मालिक बीमारी या अन्य कारणों से कोर्ट जाने की प्रक्रिया से बचना चाहता हो या अहम फैसले लेने में सक्षम न हो, लेकिन मानसिक रूप से स्वस्थ हो।

मुटेशन
दूसरे मामले में हमने देखा कि गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के कार्यालय में सरकारी दस्तावेजों में नाम भी फर्जी तरीके से बदलवा दिया गया। इस केस में केवल फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करने वाला ही अपराधी नहीं हो सकता, बल्कि उसके साथ कई और भी अपराधी हो सकते हैं, जिनकी मिलीभगत सरकारी कागजों में भी नाम बदलवाने में रही हो। बता दें कि मुटेशन कराने के लिए प्रॉपर्टी के सेल डॉक्युमेंट, अलॉटमेंट लेटर, पजेशन लेटर दिखाना जरूरी है।

सावधानियां
- पावर ऑफ अटॉर्नी ऐग्जेक्यूट करने वाले व्यक्ति का पूरा नाम, पता इत्यादि उस पर लिखा जाता है, कोई भी शक होने पर उस जगह जाकर वास्तविकता मालूम कर सकते हैं।

- अनरजिस्टर्ड पावर ऑफ अटॉर्नी से बचना चाहिए और अगर यह रजिस्टर्ड है, तो संबंधित रजिस्ट्रार ऑफिस में जाकर उसके असली या नकली होने की जांच करनी चाहिए।

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