डीडीए में कई रेकॉर्ड्स के साथ छेड़छाड़, कई गायब-मेट्रो न्यूज़-देश-दुनिया-Economic Times Hindi
नई दिल्ली।। डीडीए हाउसिंग डिपार्टमेंट के सारे रेकॉर्ड दुरुस्त नहीं हैं। कई ओरिजनल रेकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ हुई तो कई रेकॉर्ड गायब हैं। यह बात खुद डीडीए ने स्वीकार की है। डीडीए की बोर्ड मीटिंग में लोक अदालत को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी न मिल पाने का मसला भी अजेंडा में शामिल था। अजेंडा में डीडीए ऑफिस ने माना है कि हाउसिंग डिपार्टमेंट के रेकॉर्ड ठीक नहीं हैं और ओरिजनल रेकॉर्ड को सही सलामत रखने की सख्त जरूरत है।
हाउसिंग डिपार्टमेंट के पास डीडीए की सारे हाउसिंग स्कीम के रेकॉर्ड रहते हैं कि किस स्कीम में किसे फ्लैट अलॉट हुआ और फिर अगर उसने बेचा तो वह किसको बेचा। डीडीए की हाउसिंग स्कीम में अगर एक बार किसी को फ्लैट अलॉट हो जाए तो वह या उसका पति/ पत्नी फिर दूसरी हाउसिंग स्कीम में अप्लाई नहीं कर सकते। इस बार की सबसे बड़ी हाउसिंग स्कीम में भी यह नियम है। डीडीए का साफ नियम है कि अगर किसी ने गलत तरीके से अप्लाई किया और उसके नाम पर फ्लैट निकल भी गया तो अगर जांच में पता चला कि यह गलत तरीके से मिला है या नियमों के खिलाफ है तो किसी भी स्टेज में वह अलॉटमेंट रद्द हो सकता है। इस नियम की वजह से कई लोग इस बार की हाउसिंग स्कीम में अप्लाई ही नहीं कर पाए।
हालांकि प्रॉपर्टी डीलर जो जोड़तोड़ कर फ्लैट लेने और बेचने का काम करते हैं उन्हें पहले ही साफ कर दिया था कि डीडीए के पास इतने रेकॉर्ड ही नहीं है कि वह अच्छी तरह से जांच कर सके। अब यह बात साफ होने लगी है।
डीडीए के अधिकृत दस्तावेज से भी यह साफ होता है। पिछले हफ्ते हुई डीडीए की बोर्ड मीटिंग में अल्टरनेट डिस्प्यूट रेजॉल्यूशन नाम से जो विषय अजेंडा में शामिल था उसमें यह साफ लिखा है। जिसकी एक कॉपी एनबीटी के पास मौजूद है।
दरअसल, मुद्दा लोक अदालत का है। डीडीए में जन सुनवाई का प्रावधान है। डीडीए से किसी को कोई शिकायत हो और उस मसले पर कोर्ट में केस चल रहा हो तो कोर्ट से बाहर मामले को सुलझाने का काम लोक अदालत में किया जाता है। डीडीए ने माना है कि लोक अदालत में सेटेलमेंट रेट बेहद ही कम है। अब तक सेटलमेंट कमिटी के पास 109 केस आए जिसमें से 51 सुलझा लिए गए जबकि 53 केस बिना सुलझाए वापस कर दिए गए और 5 केस अभी भी कमिटी के पास पड़े हैं। सेटेलमेंट रेट कम होने के लिए कई वजहें गिनाई गई हैं जैसे प्रशासन प्रोएक्टिव एक्शन नहीं लेता और इन्फ्रास्ट्रक्चर और काम करने वालों की भी कमी है।
इन्हीं दिक्कतों में से एक दिक्कत यह भी गिनाई गई है कि बहुत सारे मामलों में खासकर हाउसिंग डिपार्टमेंट के, यह देखा गया है कि या तो ओरिजनल रेकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की गई है या वह गायब हैं। कई दूसरे सुझावों के साथ यह सुझाव भी दिया गया है कि ओरिजनल रेकॉर्ड को सुरक्षित रखने की जरूरत है।
हाउसिंग डिपार्टमेंट के पास डीडीए की सारे हाउसिंग स्कीम के रेकॉर्ड रहते हैं कि किस स्कीम में किसे फ्लैट अलॉट हुआ और फिर अगर उसने बेचा तो वह किसको बेचा। डीडीए की हाउसिंग स्कीम में अगर एक बार किसी को फ्लैट अलॉट हो जाए तो वह या उसका पति/ पत्नी फिर दूसरी हाउसिंग स्कीम में अप्लाई नहीं कर सकते। इस बार की सबसे बड़ी हाउसिंग स्कीम में भी यह नियम है। डीडीए का साफ नियम है कि अगर किसी ने गलत तरीके से अप्लाई किया और उसके नाम पर फ्लैट निकल भी गया तो अगर जांच में पता चला कि यह गलत तरीके से मिला है या नियमों के खिलाफ है तो किसी भी स्टेज में वह अलॉटमेंट रद्द हो सकता है। इस नियम की वजह से कई लोग इस बार की हाउसिंग स्कीम में अप्लाई ही नहीं कर पाए।
हालांकि प्रॉपर्टी डीलर जो जोड़तोड़ कर फ्लैट लेने और बेचने का काम करते हैं उन्हें पहले ही साफ कर दिया था कि डीडीए के पास इतने रेकॉर्ड ही नहीं है कि वह अच्छी तरह से जांच कर सके। अब यह बात साफ होने लगी है।
डीडीए के अधिकृत दस्तावेज से भी यह साफ होता है। पिछले हफ्ते हुई डीडीए की बोर्ड मीटिंग में अल्टरनेट डिस्प्यूट रेजॉल्यूशन नाम से जो विषय अजेंडा में शामिल था उसमें यह साफ लिखा है। जिसकी एक कॉपी एनबीटी के पास मौजूद है।
दरअसल, मुद्दा लोक अदालत का है। डीडीए में जन सुनवाई का प्रावधान है। डीडीए से किसी को कोई शिकायत हो और उस मसले पर कोर्ट में केस चल रहा हो तो कोर्ट से बाहर मामले को सुलझाने का काम लोक अदालत में किया जाता है। डीडीए ने माना है कि लोक अदालत में सेटेलमेंट रेट बेहद ही कम है। अब तक सेटलमेंट कमिटी के पास 109 केस आए जिसमें से 51 सुलझा लिए गए जबकि 53 केस बिना सुलझाए वापस कर दिए गए और 5 केस अभी भी कमिटी के पास पड़े हैं। सेटेलमेंट रेट कम होने के लिए कई वजहें गिनाई गई हैं जैसे प्रशासन प्रोएक्टिव एक्शन नहीं लेता और इन्फ्रास्ट्रक्चर और काम करने वालों की भी कमी है।
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