स्टैंप ड्यूटी क्या है और कितनी दी जानी चाहिए? अगर आप इसके बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो इसकी जानकारी 'इंडियन स्टैंप एक्ट 1899' से ले सकते हैं। स्टैंप ड्यूटी के कलेक्शन और पेमेंट के सारे प्रोविजन इस एक्ट में दिए गए हैं।
- स्टैंप एक्ट के अनुसार, कुछ खास डॉक्युमेंट्स पर स्टैंप ड्यूटी देना जरूरी होता है। फाइनैंशल ईयर में जो स्टैंप ड्यूटी कलेक्ट होती है, वह संबंधित राज्य को दी जाती है। स्टैंप ड्यूटी से से इकट्ठा होने वाला रेवेन्यू भी उसी राज्य को दिया जाता है, इसलिए यह नियम बना दिया गया है कि एक राज्य में खरीदा गया स्टैंप पेपर सिर्फ उसी राज्य के लिए इस्तेमाल होगा।
- इंडियन स्टैंप एक्ट 1899 का मूल उद्देश्य है, सरकार के लिए रेवेन्यू बढ़ाना। स्टैंप ड्यूटी की दर हर राज्य में अलग होती है। कई राज्यों में यह इलाकों के आधार पर पूर्व निर्धारित होती है, तो कहीं स्टैंप ड्यूटी प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के हिसाब से दी जाती है, जो स्टैंप ऑफिस तय करता है।
- जब एक एग्रीमेंट को स्टैंप कराना होता है, तो उसे बिना साइन और बिना डेट का होना चाहिए। उस पर स्टैंप लगने के बाद ही उस पर आगे का काम हो पाता है। अलग-अलग राज्यों में ली जाने वाली स्टैंप ड्यूटी की गणना स्टैंप ड्यूटी कैलकुलेटर से की जाती है।
- संसद में स्टैंप ड्यूटी से संबंधित कोई भी नियम तय किया जा सकता है। यहां तक कि स्टैंप ड्यूटी के रेट्स भी वहां तय किए जा सकते हैं। एक्सचेंज बिल, चेक, शेयर ट्रांसफर आदि के लिए स्टैंप ड्यूटी का निर्धारण संसद में किया गया है, तो वे पूरे देश में लागू होंगे। बाकी सभी साधारण कागजातों पर स्टैंप ड्यूटी तय करने का अधिकार राज्य सरकारों के पास है। राज्य सरकार द्वारा तय किए गए रेट सिर्फ उसी राज्य में लागू होंगे, किसी दूसरे राज्य में नहीं।
- स्टैंप एक्ट के अनुसार, कुछ खास डॉक्युमेंट्स पर स्टैंप ड्यूटी देना जरूरी होता है। फाइनैंशल ईयर में जो स्टैंप ड्यूटी कलेक्ट होती है, वह संबंधित राज्य को दी जाती है। स्टैंप ड्यूटी से से इकट्ठा होने वाला रेवेन्यू भी उसी राज्य को दिया जाता है, इसलिए यह नियम बना दिया गया है कि एक राज्य में खरीदा गया स्टैंप पेपर सिर्फ उसी राज्य के लिए इस्तेमाल होगा।
- इंडियन स्टैंप एक्ट 1899 का मूल उद्देश्य है, सरकार के लिए रेवेन्यू बढ़ाना। स्टैंप ड्यूटी की दर हर राज्य में अलग होती है। कई राज्यों में यह इलाकों के आधार पर पूर्व निर्धारित होती है, तो कहीं स्टैंप ड्यूटी प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के हिसाब से दी जाती है, जो स्टैंप ऑफिस तय करता है।
- जब एक एग्रीमेंट को स्टैंप कराना होता है, तो उसे बिना साइन और बिना डेट का होना चाहिए। उस पर स्टैंप लगने के बाद ही उस पर आगे का काम हो पाता है। अलग-अलग राज्यों में ली जाने वाली स्टैंप ड्यूटी की गणना स्टैंप ड्यूटी कैलकुलेटर से की जाती है।
- संसद में स्टैंप ड्यूटी से संबंधित कोई भी नियम तय किया जा सकता है। यहां तक कि स्टैंप ड्यूटी के रेट्स भी वहां तय किए जा सकते हैं। एक्सचेंज बिल, चेक, शेयर ट्रांसफर आदि के लिए स्टैंप ड्यूटी का निर्धारण संसद में किया गया है, तो वे पूरे देश में लागू होंगे। बाकी सभी साधारण कागजातों पर स्टैंप ड्यूटी तय करने का अधिकार राज्य सरकारों के पास है। राज्य सरकार द्वारा तय किए गए रेट सिर्फ उसी राज्य में लागू होंगे, किसी दूसरे राज्य में नहीं।
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