अगर आप लोन लेने के बारे में सोच रहे हैं, तो पहले लोन से संबंधित शब्दावली के इन शब्दों को जरुर समझें :
EMI
होम लोन के बारे में सोचते ही सबसे पहले इसकी किस्त चुकाने का ख्याल आता है। इसकी फाइनैंशियल टर्म है ईएमआई यानी इक्वेटिड मंथली इंस्टॉलमेंट। लोन की वापसी इसी किस्त के माध्यम से ली जाती है, जिसमें प्रिंसिपल और उस पर इंटरेस्ट की रकम शामिल होती है। होम लोन पर जारी इंटरेस्ट रेट और लोन की कुल अवधि के आधार पर ईएमआई की रकम तय होती है।
LTV और LCR
एलटीवी से मतलब है, लोन टू वैल्यू रेश्यो और एलसीआर का मतलब है, लोन टू कॉस्ट रेश्यो। इन शब्दों का प्रयोग बैंक या फाइनैंस कंपनी की ओर से किया जाता है। ये शब्द लोन की उस अधिकतम रकम को दर्शाते हैं, जो लोन एप्लाई करने वाले व्यक्ति को प्रॉपरेटी की कुल कीमत की तुलना में दिया जा सकता है।
IC
आईसी यानी इंसिडेंटल चार्जेस लोन देने वाले बैंक द्वारा लगाई गई पेनल्टी है, जो ईएमआई लेट होने पर उसे वसूलने के लिए बैंक के कलेक्शन एजेंट की विजिट के मद में लगाई जाती है। इस पेनल्टी का भुगतान ईएमआई देने वाले को ही करना पड़ता है।
NOC
यह बहुत कॉमन शब्द है, लेकिन होम लोन के संदर्भ में इसका प्रयोग तब किया जाता है, जब लोन एप्लाई करने वाला व्यक्ति उस जमीन का मालिक न हो, जिस पर वह कंस्ट्रक्शन करना चाहता है। उस स्थिति में फाइनैंसर संबंधित अथॉरिटी से एनओसी लाने को कहते हैं। अथॉरिटी कोई भी हो सकती है, हाउसिंग सोसाइटी, बिल्डर, डिवेलपमेंट अथॉरिटी। इनमें से जिस अथॉरिटी से प्रॉपर्टी ली गई हो, उसी से एनओसी भी लेना होगा।
PEMI
यह है प्री-ईएमआई। लोन की कुछ रकम जारी होने पर इसे चुकाना पड़ता है। वैसे भी, होम लोन की रकम आमतौर पर कंस्ट्रक्शन लेवल के अनुसार समय-समय जारी की जाती है। लोन की रकम एक बार जारी हो जाने पर ईएमआई को नहीं रोका जा सकता। जारी हुई रकम पर तय रेट से इंटरेस्ट चुकाया जाएगा, जिसे प्री-ईएमआई कहेंगे।
PF
होम लोन एप्लाई करते समय फाइनैंसर एप्लिकेशन फॉर्म भरवाते हैं और इसके लिए एक फीस भी वसूल करते हैं, जिसे पीएफ यानी प्रोसेसिंग फीस कहा जाता है। यह कंस्यूमर को फॉर्म भरते समय ही देनी पड़ती है।
PPC
प्री-पेमेंट चाजेर्स को आम भाषा में प्री-पेमेंट पेनल्टी के नाम से जाना जाता है। लोन की पूरी अवधि से पहले लोन की रकम चुकाने पर फाइनैंसर यह पेनल्टी लगाते हैं, क्योंकि उन्हें बाकी रकम पर ब्याज का नुकसान झेलना पड़ता है। पेनल्टी की दर अलग-अलग फाइनैंसर के साथ अलग-अलग हो सकती है।
PDC
पोस्ट डेटिड चेक। ये आगे की तारीख से जारी चेक होते हैं, जिन्हें उस तारीख से पहले कैश नहीं कराया जा सकता। होम लोन लेने पर फाइनैंसर आमतौर पर एक साल के पीडीसी की मांग करते हैं। कभी-कभी दो या तीन साल के पीडीसी भी लिए जा सकते हैं। लोन लेने वाला व्यक्ति अपने अकाउंट के इन चेकों को फाइनैंसर के नाम पर जारी करता है। रकम की जगह पर ईएमआई की रकम भरी जाती है। इससे हर महीने व्यक्तिगत रूप से जाकर ईएमआई भुगतान करने का झंझट नहीं रहता।
EMI
होम लोन के बारे में सोचते ही सबसे पहले इसकी किस्त चुकाने का ख्याल आता है। इसकी फाइनैंशियल टर्म है ईएमआई यानी इक्वेटिड मंथली इंस्टॉलमेंट। लोन की वापसी इसी किस्त के माध्यम से ली जाती है, जिसमें प्रिंसिपल और उस पर इंटरेस्ट की रकम शामिल होती है। होम लोन पर जारी इंटरेस्ट रेट और लोन की कुल अवधि के आधार पर ईएमआई की रकम तय होती है।
LTV और LCR
एलटीवी से मतलब है, लोन टू वैल्यू रेश्यो और एलसीआर का मतलब है, लोन टू कॉस्ट रेश्यो। इन शब्दों का प्रयोग बैंक या फाइनैंस कंपनी की ओर से किया जाता है। ये शब्द लोन की उस अधिकतम रकम को दर्शाते हैं, जो लोन एप्लाई करने वाले व्यक्ति को प्रॉपरेटी की कुल कीमत की तुलना में दिया जा सकता है।
IC
आईसी यानी इंसिडेंटल चार्जेस लोन देने वाले बैंक द्वारा लगाई गई पेनल्टी है, जो ईएमआई लेट होने पर उसे वसूलने के लिए बैंक के कलेक्शन एजेंट की विजिट के मद में लगाई जाती है। इस पेनल्टी का भुगतान ईएमआई देने वाले को ही करना पड़ता है।
NOC
यह बहुत कॉमन शब्द है, लेकिन होम लोन के संदर्भ में इसका प्रयोग तब किया जाता है, जब लोन एप्लाई करने वाला व्यक्ति उस जमीन का मालिक न हो, जिस पर वह कंस्ट्रक्शन करना चाहता है। उस स्थिति में फाइनैंसर संबंधित अथॉरिटी से एनओसी लाने को कहते हैं। अथॉरिटी कोई भी हो सकती है, हाउसिंग सोसाइटी, बिल्डर, डिवेलपमेंट अथॉरिटी। इनमें से जिस अथॉरिटी से प्रॉपर्टी ली गई हो, उसी से एनओसी भी लेना होगा।
PEMI
यह है प्री-ईएमआई। लोन की कुछ रकम जारी होने पर इसे चुकाना पड़ता है। वैसे भी, होम लोन की रकम आमतौर पर कंस्ट्रक्शन लेवल के अनुसार समय-समय जारी की जाती है। लोन की रकम एक बार जारी हो जाने पर ईएमआई को नहीं रोका जा सकता। जारी हुई रकम पर तय रेट से इंटरेस्ट चुकाया जाएगा, जिसे प्री-ईएमआई कहेंगे।
PF
होम लोन एप्लाई करते समय फाइनैंसर एप्लिकेशन फॉर्म भरवाते हैं और इसके लिए एक फीस भी वसूल करते हैं, जिसे पीएफ यानी प्रोसेसिंग फीस कहा जाता है। यह कंस्यूमर को फॉर्म भरते समय ही देनी पड़ती है।
PPC
प्री-पेमेंट चाजेर्स को आम भाषा में प्री-पेमेंट पेनल्टी के नाम से जाना जाता है। लोन की पूरी अवधि से पहले लोन की रकम चुकाने पर फाइनैंसर यह पेनल्टी लगाते हैं, क्योंकि उन्हें बाकी रकम पर ब्याज का नुकसान झेलना पड़ता है। पेनल्टी की दर अलग-अलग फाइनैंसर के साथ अलग-अलग हो सकती है।
PDC
पोस्ट डेटिड चेक। ये आगे की तारीख से जारी चेक होते हैं, जिन्हें उस तारीख से पहले कैश नहीं कराया जा सकता। होम लोन लेने पर फाइनैंसर आमतौर पर एक साल के पीडीसी की मांग करते हैं। कभी-कभी दो या तीन साल के पीडीसी भी लिए जा सकते हैं। लोन लेने वाला व्यक्ति अपने अकाउंट के इन चेकों को फाइनैंसर के नाम पर जारी करता है। रकम की जगह पर ईएमआई की रकम भरी जाती है। इससे हर महीने व्यक्तिगत रूप से जाकर ईएमआई भुगतान करने का झंझट नहीं रहता।
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