अगर आपने लोन लेने के लिए कोई प्रॉपर्टी गिरवी रखी है , तो खुद को बोझ तले दबा हुआ महसूस मत कीजिए। प्रॉपर्टी गिरवी रखवाने वाले पर भी उसकी देखभाल की जिम्मेदारी है , जिसे वह नहीं निभा सका , तो वह इसके बदले आपको कुछ रकम का भुगतान करेगा।
प्रॉपर्टी को गिरवी रखने से पहले इससे जुड़े तमाम नियम-कानूनों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। प्रॉपर्टी को गिरवी रखने के बदले आप रकम तो हासिल कर लेते हैं , लेकिन आपको गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी की देखभाल के बारे में भी सोचना चाहिए। प्रॉपर्टी गिरवी रखवाने का उद्देश्य सिर्फ इतना होता है कि लोन के रूप में दी गई रकम सुरक्षित रहे। ऐसे में गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी भगवान भरोसे ही न रह जाए , इसका इंतजाम कानून ने कर दिया है।
अगर गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी का कब्जा मॉगेर्जी को ट्रांसफर कर दिया गया है , तो इस ट्रांसफर के साथ ही प्रॉपर्टी से जुड़े तमाम अधिकार और जिम्मेदारियां भी ट्रांसफर हो जाती हैं। इस आशय के बारे में ' ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी ऐक्ट , 1882 'में साफतौर पर बताया गया है। इस कानून के मुताबिक , प्रॉपर्टी को किसी नुकसान , जुर्माने या बिक्री से बचाने के लिए मॉगेर्जी इस पर रकम खर्च कर सकता है , भले ही वह इसका मालिक नहीं है। मॉगेर्जर का टाइटल बचाने या लीज के रिन्युअल के लिए भी रकम खर्च करने का अधिकार उसके पास होता है। मॉगेजी इस रकम को मॉगेर्जर से वापस हासिल कर सकता है। इस बारे में शर्तें पहले से तय कर ली जाती हैं। वह इस रकम को लोन की प्रिंसिपल मनी में जोड़ सकता है और उस पर पहले से जारी ब्याज दर से ब्याज भी ले सकता है।
यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि ऐसा सिर्फ तभी किया जा सकता है , जब यह खर्च बेहद जरूरी हों। दरअसल , प्रॉपर्टी ट्रांसफर करते वक्त मोगेर्जी को साफ निदेर्श दिए जाते हैं कि वह प्रॉपर्टी की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए। अगर प्रॉपर्टी का इंश्योरेंस नहीं हुआ है , तो मोगेर्जी आग और दूसरी विपदाओं से बचाव के लिए इसका इंश्योरेंस करा सकता है। किसी भी तरह के इंश्योरेंस के लिए अदा किए गए प्रीमियम को लोन की प्रिंसिपल मनी में जोड़कर उस पर ब्याज भी वसूला जा सकता है। हालांकि , प्रीमियम में दी गई रकम से मॉगेर्ज डीड में लिखी या प्रॉपर्टी रीट्रांसफर के लिए दी गई रकम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह भी गौरतलब है कि पहले से ही इंश्योर्ड प्रॉपर्टी का दोबारा इंश्योरेंस नहीं कराया जा सकता।
अगर मॉगेर्जर निर्धारित तारीख पर मॉगेर्जी को इंस्टॉलमेंट दे देता है , तो उसे उसी तारीख की रिसीविंग रसीद भी देनी होगी। मॉगेर्जी को यह अधिकार नहीं है कि वह उस अमाउंट में से अपने कोई खर्च काटकर बची हुई रकम की रसीद दे ,क्योंकि कुछ रकम का भुगतान करने से मॉगेर्जर पर ब्याज का दायित्व भी कम हो जाता है। कम रकम की रसीद होने से मॉगेर्जर पर ज्यादा ब्याज की देनदारी रहेगी। अगर मॉगेर्जी ने उस प्रॉपर्टी में रहता है , तो उसे मॉगेर्जर का किराया अदा करना चाहिए। इस रकम को ब्याज की रकम में से कम करना होगा। इसके बाद भी किराये की रकम ज्यादा बैठती है , तो उसे मॉगेर्जी को वापस कर दिया जाना चाहिए।
प्रॉपर्टी पर कब्जा लेने के बाद मॉगेर्जी के कंधे पर कुछ उत्तरदायित्व भी आ जाते हैं। गिरवी प्रॉपर्टी का कब्जा लेने के बाद मॉगेर्जी को प्रॉपर्टी की देखभाल उसी तरह करनी होगी , जैसे कोई मालिक अपनी प्रॉपर्टी की देखभाल करता है। वह कोई ऐसा काम नहीं करेगा , जिससे प्रॉपर्टी को नुकसान हो या फिर उस पर कोई जुर्माना वगैरह लगे। उसे इस दौरान उस प्रॉपर्टी पर लगने वाले सभी टैक्स भी चुकाने होंगे। अगर आग या किसी और नुकसान को कवर करने के लिए प्रॉपर्टी को इंश्योर्ड कराया गया है और किसी हादसे में प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचता है , तो इंश्योरेंस की रकम को प्रॉपर्टी की देखभाल के लिए ही खर्च करना होगा। मॉगेर्जी के लिए ऐसा करना कानूनन जरूरी है।
प्रॉपर्टी के गिरवी रहने के दौरान उस पर हुए सभी खर्च और इनकम का पूरा रिकॉर्ड रखना पड़ता है। यह मॉगेर्जी की जिम्मेदारी है कि वह मॉगेर्जर को सभी खर्च और आमदनी का सही हिसाब-किताब दे। साथ ही उससे जुड़े बिल वगैरह भी पेश करे। इस दौरान प्रॉपर्टी में टूट-फूट होने पर मॉगेर्जी को ही उसकी रिपेयर भी करानी होगी। उसे प्रॉपर्टी पर ड्यू रेंट और प्रॉफिट को कलेक्ट करने के लिए भी कोशिश करनी होगी।
रोचक यह है कि अगर मॉगेर्जी अपनी इन जिम्मेदारियों को निभाने में सफल नहीं हो पाता है , तो उसे मॉगेर्जर को इसके बदले भुगतान करना पड़ता है।
प्रॉपर्टी को गिरवी रखने से पहले इससे जुड़े तमाम नियम-कानूनों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए। प्रॉपर्टी को गिरवी रखने के बदले आप रकम तो हासिल कर लेते हैं , लेकिन आपको गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी की देखभाल के बारे में भी सोचना चाहिए। प्रॉपर्टी गिरवी रखवाने का उद्देश्य सिर्फ इतना होता है कि लोन के रूप में दी गई रकम सुरक्षित रहे। ऐसे में गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी भगवान भरोसे ही न रह जाए , इसका इंतजाम कानून ने कर दिया है।
अगर गिरवी रखी गई प्रॉपर्टी का कब्जा मॉगेर्जी को ट्रांसफर कर दिया गया है , तो इस ट्रांसफर के साथ ही प्रॉपर्टी से जुड़े तमाम अधिकार और जिम्मेदारियां भी ट्रांसफर हो जाती हैं। इस आशय के बारे में ' ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी ऐक्ट , 1882 'में साफतौर पर बताया गया है। इस कानून के मुताबिक , प्रॉपर्टी को किसी नुकसान , जुर्माने या बिक्री से बचाने के लिए मॉगेर्जी इस पर रकम खर्च कर सकता है , भले ही वह इसका मालिक नहीं है। मॉगेर्जर का टाइटल बचाने या लीज के रिन्युअल के लिए भी रकम खर्च करने का अधिकार उसके पास होता है। मॉगेजी इस रकम को मॉगेर्जर से वापस हासिल कर सकता है। इस बारे में शर्तें पहले से तय कर ली जाती हैं। वह इस रकम को लोन की प्रिंसिपल मनी में जोड़ सकता है और उस पर पहले से जारी ब्याज दर से ब्याज भी ले सकता है।
यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि ऐसा सिर्फ तभी किया जा सकता है , जब यह खर्च बेहद जरूरी हों। दरअसल , प्रॉपर्टी ट्रांसफर करते वक्त मोगेर्जी को साफ निदेर्श दिए जाते हैं कि वह प्रॉपर्टी की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए। अगर प्रॉपर्टी का इंश्योरेंस नहीं हुआ है , तो मोगेर्जी आग और दूसरी विपदाओं से बचाव के लिए इसका इंश्योरेंस करा सकता है। किसी भी तरह के इंश्योरेंस के लिए अदा किए गए प्रीमियम को लोन की प्रिंसिपल मनी में जोड़कर उस पर ब्याज भी वसूला जा सकता है। हालांकि , प्रीमियम में दी गई रकम से मॉगेर्ज डीड में लिखी या प्रॉपर्टी रीट्रांसफर के लिए दी गई रकम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह भी गौरतलब है कि पहले से ही इंश्योर्ड प्रॉपर्टी का दोबारा इंश्योरेंस नहीं कराया जा सकता।
अगर मॉगेर्जर निर्धारित तारीख पर मॉगेर्जी को इंस्टॉलमेंट दे देता है , तो उसे उसी तारीख की रिसीविंग रसीद भी देनी होगी। मॉगेर्जी को यह अधिकार नहीं है कि वह उस अमाउंट में से अपने कोई खर्च काटकर बची हुई रकम की रसीद दे ,क्योंकि कुछ रकम का भुगतान करने से मॉगेर्जर पर ब्याज का दायित्व भी कम हो जाता है। कम रकम की रसीद होने से मॉगेर्जर पर ज्यादा ब्याज की देनदारी रहेगी। अगर मॉगेर्जी ने उस प्रॉपर्टी में रहता है , तो उसे मॉगेर्जर का किराया अदा करना चाहिए। इस रकम को ब्याज की रकम में से कम करना होगा। इसके बाद भी किराये की रकम ज्यादा बैठती है , तो उसे मॉगेर्जी को वापस कर दिया जाना चाहिए।
प्रॉपर्टी पर कब्जा लेने के बाद मॉगेर्जी के कंधे पर कुछ उत्तरदायित्व भी आ जाते हैं। गिरवी प्रॉपर्टी का कब्जा लेने के बाद मॉगेर्जी को प्रॉपर्टी की देखभाल उसी तरह करनी होगी , जैसे कोई मालिक अपनी प्रॉपर्टी की देखभाल करता है। वह कोई ऐसा काम नहीं करेगा , जिससे प्रॉपर्टी को नुकसान हो या फिर उस पर कोई जुर्माना वगैरह लगे। उसे इस दौरान उस प्रॉपर्टी पर लगने वाले सभी टैक्स भी चुकाने होंगे। अगर आग या किसी और नुकसान को कवर करने के लिए प्रॉपर्टी को इंश्योर्ड कराया गया है और किसी हादसे में प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचता है , तो इंश्योरेंस की रकम को प्रॉपर्टी की देखभाल के लिए ही खर्च करना होगा। मॉगेर्जी के लिए ऐसा करना कानूनन जरूरी है।
प्रॉपर्टी के गिरवी रहने के दौरान उस पर हुए सभी खर्च और इनकम का पूरा रिकॉर्ड रखना पड़ता है। यह मॉगेर्जी की जिम्मेदारी है कि वह मॉगेर्जर को सभी खर्च और आमदनी का सही हिसाब-किताब दे। साथ ही उससे जुड़े बिल वगैरह भी पेश करे। इस दौरान प्रॉपर्टी में टूट-फूट होने पर मॉगेर्जी को ही उसकी रिपेयर भी करानी होगी। उसे प्रॉपर्टी पर ड्यू रेंट और प्रॉफिट को कलेक्ट करने के लिए भी कोशिश करनी होगी।
रोचक यह है कि अगर मॉगेर्जी अपनी इन जिम्मेदारियों को निभाने में सफल नहीं हो पाता है , तो उसे मॉगेर्जर को इसके बदले भुगतान करना पड़ता है।
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