लाखों लोगों को बिल्डरों के भ्रम जाल से बचाने वाले रीयल एस्टेट रेग्युलेशन बिल को भी एक अन्ना का इंतजार है। इस बिल के ड्राफ्ट को तैयार हुए एक साल से भी ऊपर हो गया है लेकिन यह कब अमली रूप लेगा, इस बारे में केन्द्र और राज्य सरकारें चुप हैं। समझा जा रहा था कि बजट सत्र में यह बिल पेश हो जाएगा, पर ऐसा नहीं हो सका। कहा जा रहा है कि बहुत सारे दबाव हैं, इसलिए ठोस कुछ भी कहने को कोई तैयार नहीं।
ड्राफ्ट पर पुनर्विचार : सूत्रों का कहना है कि इस ड्राफ्ट को लेकर राज्यों से और अन्य पक्षकारों से विचार जाने गए हैं। प्रारूप में कुछ संशोधन भी किए गए हैं। लेकिन इसे कैबिनेट में कब लाया जाएगा, इस बारे में मंत्रालय चुप है। पिछले साल तत्कालीन केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा था कि वर्ष 2010 के अंदर यह बिल संसद में लाया जाएगा और पास कराया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब नए मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में इस बिल के प्रारूप पर नए सिरे से विचार हो रहा है।
मॉडल रीयल एस्टेट (रेग्युलेशन ऑफ डिवेलपमेंट) बिल संसद में लाकर एक्ट तो बन जाएगा, लेकिन यह राज्यों के ऊपर है कि वे इसे किस रूप में और कितना स्वीकार करते हैं। केन्द्र राज्यों से अपेक्षा करेगा कि वह आदर्श रीयल एस्टेट कानून को अपनाएं।
क्या थी योजना : इसके तहत रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनेगी जो बिल्डरों के कामकाज पर नजर रखेगी। बिल्डरों को अपनी निर्माण गतिविधियों को पूरी तरह से पारदर्शी बनाना होगा। बिल्डरों की मनमर्जी पर शिकंजा कसने के लिए बिल के प्रारूप में कई सख्त प्रावधान किए गए हैं। आम लोगों को मकान का सपना दिखा कर उन्हें मंझधार में छोड़ देने जैसी हरकतों पर रोक लगेगी।
हर राज्य रीयल एस्टेट पर नजर रखने के लिए अलग से रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनाएगा। बिल्डरों को घोषित तय शर्तों के अनुरूप लोगों को मकान देने होंगे। ऐसा न करने पर उनका लाइसेंस रद्द किया जाएगा। रीयल एस्टेट से जुड़े बिल्डरों व डिवेलपरों की रेटिंग के लिए एक सिस्टम बनाने की बात है। आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा है कि रेटिंग सिस्टम से मार्केट में डिवेलपरों की ब्रैंड इमेज बढ़ेगी। वे अपने ग्राहकों के प्रति अधिक गंभीर होंगे। ग्राहकों के बीच उनकी साख बढ़ेगी। मगर पता चला है कि अब रीयल एस्टेट के लिए रेटिंग सिस्टम तैयार करने का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया है।
ड्राफ्ट पर पुनर्विचार : सूत्रों का कहना है कि इस ड्राफ्ट को लेकर राज्यों से और अन्य पक्षकारों से विचार जाने गए हैं। प्रारूप में कुछ संशोधन भी किए गए हैं। लेकिन इसे कैबिनेट में कब लाया जाएगा, इस बारे में मंत्रालय चुप है। पिछले साल तत्कालीन केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी ने कहा था कि वर्ष 2010 के अंदर यह बिल संसद में लाया जाएगा और पास कराया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब नए मंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में इस बिल के प्रारूप पर नए सिरे से विचार हो रहा है।
मॉडल रीयल एस्टेट (रेग्युलेशन ऑफ डिवेलपमेंट) बिल संसद में लाकर एक्ट तो बन जाएगा, लेकिन यह राज्यों के ऊपर है कि वे इसे किस रूप में और कितना स्वीकार करते हैं। केन्द्र राज्यों से अपेक्षा करेगा कि वह आदर्श रीयल एस्टेट कानून को अपनाएं।
क्या थी योजना : इसके तहत रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनेगी जो बिल्डरों के कामकाज पर नजर रखेगी। बिल्डरों को अपनी निर्माण गतिविधियों को पूरी तरह से पारदर्शी बनाना होगा। बिल्डरों की मनमर्जी पर शिकंजा कसने के लिए बिल के प्रारूप में कई सख्त प्रावधान किए गए हैं। आम लोगों को मकान का सपना दिखा कर उन्हें मंझधार में छोड़ देने जैसी हरकतों पर रोक लगेगी।
हर राज्य रीयल एस्टेट पर नजर रखने के लिए अलग से रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनाएगा। बिल्डरों को घोषित तय शर्तों के अनुरूप लोगों को मकान देने होंगे। ऐसा न करने पर उनका लाइसेंस रद्द किया जाएगा। रीयल एस्टेट से जुड़े बिल्डरों व डिवेलपरों की रेटिंग के लिए एक सिस्टम बनाने की बात है। आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा है कि रेटिंग सिस्टम से मार्केट में डिवेलपरों की ब्रैंड इमेज बढ़ेगी। वे अपने ग्राहकों के प्रति अधिक गंभीर होंगे। ग्राहकों के बीच उनकी साख बढ़ेगी। मगर पता चला है कि अब रीयल एस्टेट के लिए रेटिंग सिस्टम तैयार करने का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया है।
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