Friday, April 22, 2011

अगर झुके नहीं डिवेलपर, तो खरीदे ही नहीं फ्लैट-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

अगर झुके नहीं डिवेलपर, तो खरीदे ही नहीं फ्लैट-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

रीयल एस्टेट डिवेलपर्स की शीर्ष संस्था कन्फेडरेशन ऑफ रीयल एस्टेट डिवेलपर्स एसोसिएशंस ऑफ इंडिया यानी क्रेडाई के चुनाव हाल ही में हुए। नए प्रेजिडेंट ललित कुमार जैन ने बताया कि इन दिनों क्रेडाई का सारा ध्यान इस सेक्टर में ट्रांसपेरेंसी बढ़ाने पर है। इस बारे में और पता किया अमित कुश ने :

क्रेडाई के मिशन ट्रांसपेरेंसी के बारे में बताइए। इससे क्या फायदा होगा?
दरअसल, रीयल एस्टेट सेक्टर भ्रष्टाचार या नॉन ट्रांसपेरेंसी के लिए बेवजह बदनाम है। हाल ही में जब प्रधानमंत्री ने भी कहा कि रीयल एस्टेट में चीजें पारदशीर् नहीं है, तो हमें इस मिशन का विचार आया। इसे हमने दो भागों में बांटा है - सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी और डिवेलपर्स की ओर से ट्रांसपेरेंसी। जहां तक सिस्टम की बात है, तो वहां कई कमियां हैं। एक डिवेलपर को जमीन खरीदने के बाद कंस्ट्रक्शन शुरू करने से पहले करीब 47 विभागों के चक्कर कई साल तक लगाने पड़ते हैं, जैसे - पर्यावरण से क्लीयरेंस मिलने में 9-18 महीने लग जाते हैं, डिफेंस से 2 साल, मुंबई में हाई राइज कमिटी 2 साल से बैठी ही नहीं है। इन सभी विभागों में कभी-कभी ब्लैकमेलिंग जैसी परेशानियों से भी दो-चार होना पड़ता है। एक परेशानी यह होती है कि रीयल एस्टेट सेक्टर को कोई बैंक फाइनैंस नहीं देता, तो डिवेलपर्स को सूद बाजार से ही पैसा उठाना पड़ता है और क्लीयरेंस हासिल करने तक उसके मोटे इनवेस्टमेंट पर मोटा ब्याज भी चढ़ जाता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए जरूरी है कि सिंगल विंडो सिस्टम बनाया जाए। हमने उसके लिए भी एक प्लान बनाया है कि इन सभी विभागों के लिए अलग-अलग कागजात तैयार करने की बजाय सभी विभागों को ध्यान में रखकर कंप्रेहेंसिव कॉम्पलिएंस लिस्ट तैयार की जाए।

आपने डिवेलपर की ट्रांसपेरेंसी के बारे में नहीं बताया?
सभी डिवेलपर्स से कहा गया है कि वे प्रोजेक्ट की पब्लिसिटी करते समय ब्रोशर आदि पर सुपर एरिया की बजाय कारपेट एरिया बताएं। अभी तक सुपर एरिया बताया जाता है, जिसमें फ्लैट साइज के अलावा कॉमन यूज की जगहों, जैसे - लिफ्ट, सीढ़ियां आदि का साइज भी शामिल होता है। इस बात की ज्यादातर ग्राहक अनदेखी करते हैं और बताए गए एरिया को ही फ्लैट का एक्चुअल एरिया समझ लेते हैं। इससे दोनों पक्षों में विवाद होने का डर बना रहता है। डिवेलपर्स से कहा गया है कि जिस प्रकार हर प्रॉडक्ट पर एमआरपी और उसे तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले सभी प्रॉडक्ट्स की पूरी जानकारी दी जाती है, उसी प्रकार डिवेलपर्स भी अपनी चीजों का पूरा खुलासा करें, जिससे कंस्यूमर को यह न लगे कि उससे कोई बात छिपाकर उसे धोखा देने की कोशिश की जा रही है।

फिर भी धोखा हो जाए, तो?
उसके लिए क्रेडाई ने कंस्यूमर रिड्रेसल फोरम बनाए हुए हैं। उनमें शिकायत कर सकते हैं। जो भी विवाद हो, उसे सुबूतों के साथ फोरम के सामने प्रस्तुत करें। 30 से 90 दिनों में निपटारा हो जाएगा। इस फोरम का फायदा यह है कि कंस्यूमर को कोर्ट केस करने की जरूरत नहीं पड़ती और वह सालों-साल लंबे कोर्ट केस लड़ने से बच जाता है।

इन फोरम की जानकारी कहां से मिल सकती है?
ये फोरम हर शहर की क्रेडाई शाखा में बनाए गए हैं। इसकी शुरुआत पुणे शाखा से हुई थी, जहां आज कोई भी शिकायत पेंडिंग नहीं है। फोरम से संपर्क करने का पता क्रेडाई की वेबसाइट www.credai.com से ले सकते हैं।

दिल्ली-एनसीआर फोरम में किस तरह की शिकायतें आती हैं?
क्रेडाई की दिल्ली-एनसीआर शाखा में अभी कंस्यूमर रिड्रेसल फोरम नहीं बन सका है। इसे बनाने के निर्देश दे दिए गए हैं। 3 महीने में यह फोरम काम करने लगेगा।

अगर कंस्यूमर और डिवेलपर के बीच विवाद की बात करें, तो सबसे ज्यादा परेशानी पजेशन टाइम पर नहीं देने की होती है। कंस्यूमर को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले डिवेलपर से स्पष्ट रूप से पूछें कि पजेशन कितना लेट होगा और क्यों? उससे एग्रीमेंट के अनुसार पेनल्टी चुकाने के लिए भी कहें।

पेनल्टी की रकम भी अक्सर विवाद का कारण बनती है। देखा जाता है कि अगर कंस्यूमर पजेशन लेने में देर करे, तो उसे ज्यादा पेनल्टी देनी पड़ती है, लेकिन अगर डिवेलपर टाइम पर पजेशन न दे, तो वह नाममात्र की रकम देकर छुटकारा पा जाता है?
मेरे विचार से दोनों पक्षों को एक बराबर पेनल्टी देनी चाहिए। वैसे, इसका समाधान एग्रीमेंट पर साइन करने से पहले ही निकाला जा सकता है। उसके बाद क्रेडाई के हाथ भी बंधे हुए हैं, क्योंकि कंस्यूमर एग्रीमेंट पर साइन कर चुका होता है, जिसका मतलब है कि उसे डिवेलपर की नाममात्र की रकम भी मंजूर है।

एग्रीमेंट साइन करने से पहले क्या देखना चाहिए?
अगर पेनल्टी की रकम को लेकर कोई परेशानी है, तो साइन करने से पहले ही उसे बढ़ाने के लिए कहें। अगर डिवेलपर तैयार न हो, तो फ्लैट नहीं खरीदे। इससे उस पर दबाव बढ़ेगा।

और क्या बातें ध्यान रखें?
अप्रूवल लेटर और टाइटिल पेपर्स देखें। एग्रीमेंट पढ़कर साइन करें और चूंकि यह लाइफटाइम इनवेस्टमेंट है, तो किसी धोखाधड़ी से बचने के लिए वकील की राय भी अवश्य लें।

No comments: