कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले सबसे जरूरी काम यह है कि उसके टाइटिल को लेकर पूरी तसल्ली कर ली जाए। अगर इसमें ही कोई चूक हो गई, तो आप कानूनन ही उस प्रॉपर्टी से हाथ धो बैठेंगे। हां, यह सवाल जरूर हो सकता है कि आखिर टाइटिल की जांच की कैसे जाए? इसके भी हैं कई तरीके :
टाइटिल की जांच के टिप्स
- सबरजिस्ट्रार ऑफिस से चेक करें 30 साल का रिकॉर्ड
- सिविल कोर्ट से मालूम करें 12 साल का इतिहास
- म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफिस में देखें देनदारी
- प्रॉपर्टी बेचने वाले के सीए से हासिल करें नो ड्यूज सर्टिफिकेट
प्रॉपर्टी की खरीदारी लीगल है या नहीं, यह देखने का सबसे पुख्ता तरीका होता है कि प्रॉपर्टी के टाइटिल की जांच की जाए। इसे प्रॉपर्टी के मालिकाना हक की जांच करना भी कहते हैं। यह जांच कोई भी कर सकता है। आमतौर पर टाइटिल की जांच या तो प्रॉपर्टी खरीदने वाला व्यक्ति कराता है या फिर उस पर लोन देने वाला।
क्या चलेगा पता
प्रॉपर्टी के टाइटिल की जांच करने से यह पता किया जा सकता है कि प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक पूरी तरह स्पष्ट है या नहीं और इस पर कोई विवाद तो नहीं है। इससे प्रॉपर्टी खरीदने के बाद कोई झगड़ा पैदा होने का डर नहीं रहता।
क्या हैं तरीके
किसी भी प्रॉपर्टी की डील फाइनल करते समय सबसे पहले यह देखना चाहिए कि डील करने वाला व्यक्ति प्रॉपर्टी कानूनन वह प्रॉपर्टी बेच भी सकता है या नहीं। इसके बाद यह देखा जाता है कि प्रॉपर्टी का वैध टाइटिल उस व्यक्ति के ही पास है या नहीं। टाइटिल की जांच करने के कई तरीके होते हैं। आमतौर पर टाइटिल की जांच का काम वकीलों को सौंपा जाता है। जानते हैं इसके क्या-क्या हैं स्टेप्स :
- रिकॉर्ड्स की तलाश
प्रॉपर्टी जिस इलाके में स्थित है, उस इलाके के सबरजिस्ट्रार के कार्यालय में प्रॉपर्टी से जुड़े कागजों का होना जरूरी है। टाइटिल की जांच करने वाला वकील वहीं उनकी तलाश करता है। इस कड़ी में प्रॉपर्टी के सबसे पहले मालिक या पिछले 30 सालों का ब्योरा निकाला जाता है। इनमें से जो भी पहले हो, वही पर्याप्त है। इसके पीछे उद्देश्य यह जांच करना होता है कि इस समय से लेकर आज तक प्रॉपर्टी या जमीन किसी भी झगड़े और देनदारी से मुक्त है या नहीं।
साथ ही, अगर टाइटिल के संबंध में ऐसी कोई आपत्तिजनक बात भी पता चल सकती है, जिसके बारे में खुद प्रॉपर्टी बेचने वाले को भी नहीं पता। उस स्थिति में बेचने वाले व्यक्ति को इसकी जानकारी देकर उसका निपटारा किया जा सकता है। इस तरह प्रॉपर्टी के मौजूदा मालिक को पिछले 30 बरसों का हिसाब-किताब निकलवाने से फायदा हो जाता है।
पुराने समय में टाइटिल की जांच करने वाले वकील 30 की बजाय 60 बरसों का रिकॉर्ड चेक करते थे, क्योंकि लिमिटेशन एक्ट के अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि यदि कोई प्रॉपर्टी गिरवी रखी गई है, तो उसे मुक्त होने में 60 वर्ष का समय लगेगा। हालांकि लिमिटेशन एक्ट 1963 के आर्टिकल 61 के अंतर्गत अब यह समय सीमा घटाकर 30 बरस कर दी गई है। इतने समय बाद प्रॉपर्टी का पजेशन वापस मूल मालिक को मिल जाता है।
वैसे, आजकल तैयार की जाने वाली मॉर्गेज डीड में प्रॉपर्टी गिरवी रखने का समय आमतौर पर दो से पांच बरस का होता है, इसलिए वकील 30-40 बरस का रिकॉर्ड चेक करने को पर्याप्त मानते हैं।
विज्ञापनों पर नजर
आपने कभी-कभी अखबारों में ऐसे विज्ञापन भी देखे होंगे, जिनमें प्रॉपर्टी खरीदने वाले पक्ष का वकील खरीदार के प्रतिनिधि के रूप में यह कहता है कि उसके क्लाइंट ए प्रॉपर्टी को बी पक्ष से खरीदने जा रहे हैं। इस प्रॉपर्टी के संबंध में किसी किस्म की देनदारी, गिरवी होना, लीज, लीन एग्रीमेंट, गिफ्ट या किसी भी प्रकार के दावा 15 से 30 दिन के अंदर किया जा सकता है। इसके बाद किसी दावे पर विचार नहीं किया जाएगा।
यह समझा जा सकता है कि जरूरी नहीं कि वास्तविक दावेदारों की नजर इस विज्ञापन पर पढ़े, लेकिन वकील ऐसा विज्ञापन इसलिए प्रकाशित कराते हैं, जिससे बाद में कोई झगड़ा होने पर यह उनका पक्ष मजबूत करे।
प्रॉपर्टी टैक्स की देनदारी
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले उस इलाके के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के ऑफिस जाकर इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि प्रॉपर्टी पर किसी किस्म का कोई टैक्स तो बकाया नहीं है। इनमें हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स आदि हो सकते हैं। यह जांच इसलिए जरूरी है, क्योंकि प्रॉपर्टी का कंस्ट्रक्शन पूरा होने के बाद इन टैक्सों का बंटवारा दोनों पक्षों के बीच किया जाता है। उसका अनुपात कॉरपोरेशन ऑफिस से देनदारी का पता लगाने के बाद ही किया जा सकता है, जैसे- प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री की तारीख वाले दिन तक प्रॉपर्टी बेचने वाला और उसके बाद खरीदने वाला पक्ष प्रॉपर्टी के सभी टैक्स चुकाएगा।
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले टैक्स की देनदारी की जांच नहीं करने का नुकसान आगे चलकर प्रॉपर्टी खरीदने वाले व्यक्ति को उठाना पड़ सकता है। लंबे समय की देनदारी होने पर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन अपना पूरा बकाया वसूल करेगी, जिसे नहीं चुकाने पर उसके पास प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार भी होता है।
कोर्ट केस की जांच
टाइटिल की जांच करने वाले वकील इस बात की भी जांच करते हैं कि पिछले 12 बरसों में सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट में किसी व्यक्ति ने उस प्रॉपर्टी को लेकर कोई कोर्ट केस तो दायर नहीं किया है। आम भाषा में इसे '12 साला' भी कहते हैं।
इनकम टैक्स क्लियरेंस
' इनकम टैक्स एक्ट 1961' के सेक्शन 230 ए के अनुसार, अब किसी भी प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से क्लियरेंस लेने की जरूरत नहीं है। फिर भी इस बात की सावधानी रखनी जरूरी है कि कहीं उस प्रॉपर्टी पर इनकम टैक्स या सरकार के प्रति कोई बड़ी रकम देय न हो। इसके लिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से न सही, लेकिन प्रॉपर्टी बेचने वाले व्यक्ति के चार्टर्ड अकाउंटेंट से क्लियरेंस सटिर्फिकेट जरूर ले लेना चाहिए।
जमीन का आरक्षण
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले संबंधित वॉर्ड के वॉर्ड ऑफिसर से यह पता कर लेना चाहिए कि संबंधित जमीन, प्रॉपर्टी या उसके किसी हिस्से को लैंड एक्विजिशन एक्ट के अंतर्गत आरक्षित तो नहीं कर दिया गया है या फिर प्रॉपर्टी को लेकर कोई अन्य नोटिस, नोटिफिकेशन, एक्शन या क्लेम तो पेंडिंग नहीं है।
टाइटिल की जांच के टिप्स
- सबरजिस्ट्रार ऑफिस से चेक करें 30 साल का रिकॉर्ड
- सिविल कोर्ट से मालूम करें 12 साल का इतिहास
- म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफिस में देखें देनदारी
- प्रॉपर्टी बेचने वाले के सीए से हासिल करें नो ड्यूज सर्टिफिकेट
प्रॉपर्टी की खरीदारी लीगल है या नहीं, यह देखने का सबसे पुख्ता तरीका होता है कि प्रॉपर्टी के टाइटिल की जांच की जाए। इसे प्रॉपर्टी के मालिकाना हक की जांच करना भी कहते हैं। यह जांच कोई भी कर सकता है। आमतौर पर टाइटिल की जांच या तो प्रॉपर्टी खरीदने वाला व्यक्ति कराता है या फिर उस पर लोन देने वाला।
क्या चलेगा पता
प्रॉपर्टी के टाइटिल की जांच करने से यह पता किया जा सकता है कि प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक पूरी तरह स्पष्ट है या नहीं और इस पर कोई विवाद तो नहीं है। इससे प्रॉपर्टी खरीदने के बाद कोई झगड़ा पैदा होने का डर नहीं रहता।
क्या हैं तरीके
किसी भी प्रॉपर्टी की डील फाइनल करते समय सबसे पहले यह देखना चाहिए कि डील करने वाला व्यक्ति प्रॉपर्टी कानूनन वह प्रॉपर्टी बेच भी सकता है या नहीं। इसके बाद यह देखा जाता है कि प्रॉपर्टी का वैध टाइटिल उस व्यक्ति के ही पास है या नहीं। टाइटिल की जांच करने के कई तरीके होते हैं। आमतौर पर टाइटिल की जांच का काम वकीलों को सौंपा जाता है। जानते हैं इसके क्या-क्या हैं स्टेप्स :
- रिकॉर्ड्स की तलाश
प्रॉपर्टी जिस इलाके में स्थित है, उस इलाके के सबरजिस्ट्रार के कार्यालय में प्रॉपर्टी से जुड़े कागजों का होना जरूरी है। टाइटिल की जांच करने वाला वकील वहीं उनकी तलाश करता है। इस कड़ी में प्रॉपर्टी के सबसे पहले मालिक या पिछले 30 सालों का ब्योरा निकाला जाता है। इनमें से जो भी पहले हो, वही पर्याप्त है। इसके पीछे उद्देश्य यह जांच करना होता है कि इस समय से लेकर आज तक प्रॉपर्टी या जमीन किसी भी झगड़े और देनदारी से मुक्त है या नहीं।
साथ ही, अगर टाइटिल के संबंध में ऐसी कोई आपत्तिजनक बात भी पता चल सकती है, जिसके बारे में खुद प्रॉपर्टी बेचने वाले को भी नहीं पता। उस स्थिति में बेचने वाले व्यक्ति को इसकी जानकारी देकर उसका निपटारा किया जा सकता है। इस तरह प्रॉपर्टी के मौजूदा मालिक को पिछले 30 बरसों का हिसाब-किताब निकलवाने से फायदा हो जाता है।
पुराने समय में टाइटिल की जांच करने वाले वकील 30 की बजाय 60 बरसों का रिकॉर्ड चेक करते थे, क्योंकि लिमिटेशन एक्ट के अंतर्गत यह व्यवस्था थी कि यदि कोई प्रॉपर्टी गिरवी रखी गई है, तो उसे मुक्त होने में 60 वर्ष का समय लगेगा। हालांकि लिमिटेशन एक्ट 1963 के आर्टिकल 61 के अंतर्गत अब यह समय सीमा घटाकर 30 बरस कर दी गई है। इतने समय बाद प्रॉपर्टी का पजेशन वापस मूल मालिक को मिल जाता है।
वैसे, आजकल तैयार की जाने वाली मॉर्गेज डीड में प्रॉपर्टी गिरवी रखने का समय आमतौर पर दो से पांच बरस का होता है, इसलिए वकील 30-40 बरस का रिकॉर्ड चेक करने को पर्याप्त मानते हैं।
विज्ञापनों पर नजर
आपने कभी-कभी अखबारों में ऐसे विज्ञापन भी देखे होंगे, जिनमें प्रॉपर्टी खरीदने वाले पक्ष का वकील खरीदार के प्रतिनिधि के रूप में यह कहता है कि उसके क्लाइंट ए प्रॉपर्टी को बी पक्ष से खरीदने जा रहे हैं। इस प्रॉपर्टी के संबंध में किसी किस्म की देनदारी, गिरवी होना, लीज, लीन एग्रीमेंट, गिफ्ट या किसी भी प्रकार के दावा 15 से 30 दिन के अंदर किया जा सकता है। इसके बाद किसी दावे पर विचार नहीं किया जाएगा।
यह समझा जा सकता है कि जरूरी नहीं कि वास्तविक दावेदारों की नजर इस विज्ञापन पर पढ़े, लेकिन वकील ऐसा विज्ञापन इसलिए प्रकाशित कराते हैं, जिससे बाद में कोई झगड़ा होने पर यह उनका पक्ष मजबूत करे।
प्रॉपर्टी टैक्स की देनदारी
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले उस इलाके के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के ऑफिस जाकर इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि प्रॉपर्टी पर किसी किस्म का कोई टैक्स तो बकाया नहीं है। इनमें हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स आदि हो सकते हैं। यह जांच इसलिए जरूरी है, क्योंकि प्रॉपर्टी का कंस्ट्रक्शन पूरा होने के बाद इन टैक्सों का बंटवारा दोनों पक्षों के बीच किया जाता है। उसका अनुपात कॉरपोरेशन ऑफिस से देनदारी का पता लगाने के बाद ही किया जा सकता है, जैसे- प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री की तारीख वाले दिन तक प्रॉपर्टी बेचने वाला और उसके बाद खरीदने वाला पक्ष प्रॉपर्टी के सभी टैक्स चुकाएगा।
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले टैक्स की देनदारी की जांच नहीं करने का नुकसान आगे चलकर प्रॉपर्टी खरीदने वाले व्यक्ति को उठाना पड़ सकता है। लंबे समय की देनदारी होने पर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन अपना पूरा बकाया वसूल करेगी, जिसे नहीं चुकाने पर उसके पास प्रॉपर्टी बेचने का अधिकार भी होता है।
कोर्ट केस की जांच
टाइटिल की जांच करने वाले वकील इस बात की भी जांच करते हैं कि पिछले 12 बरसों में सिविल कोर्ट या हाई कोर्ट में किसी व्यक्ति ने उस प्रॉपर्टी को लेकर कोई कोर्ट केस तो दायर नहीं किया है। आम भाषा में इसे '12 साला' भी कहते हैं।
इनकम टैक्स क्लियरेंस
' इनकम टैक्स एक्ट 1961' के सेक्शन 230 ए के अनुसार, अब किसी भी प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त से पहले इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से क्लियरेंस लेने की जरूरत नहीं है। फिर भी इस बात की सावधानी रखनी जरूरी है कि कहीं उस प्रॉपर्टी पर इनकम टैक्स या सरकार के प्रति कोई बड़ी रकम देय न हो। इसके लिए इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से न सही, लेकिन प्रॉपर्टी बेचने वाले व्यक्ति के चार्टर्ड अकाउंटेंट से क्लियरेंस सटिर्फिकेट जरूर ले लेना चाहिए।
जमीन का आरक्षण
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले संबंधित वॉर्ड के वॉर्ड ऑफिसर से यह पता कर लेना चाहिए कि संबंधित जमीन, प्रॉपर्टी या उसके किसी हिस्से को लैंड एक्विजिशन एक्ट के अंतर्गत आरक्षित तो नहीं कर दिया गया है या फिर प्रॉपर्टी को लेकर कोई अन्य नोटिस, नोटिफिकेशन, एक्शन या क्लेम तो पेंडिंग नहीं है।
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