सकीना बबवानी।।
परिवार में किसी प्रियजन का निधन होना बहुत दुखद होता है। अगर परलोक सिधारने वाला अपने पीछे कोई वसीयत नहीं छोड़ जाता है तब स्थिति और विकट हो जाती है। ऐसी स्थिति में परिजनों को उसकी संपत्ति पर अपना हक पाने के लिए अक्सर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है। कई मामलों में वह संपत्ति परिवार की तारणहार होती है। इस पर जानकारों का कहना है कि अगर मरने वाला कोई वसीयत नहीं बना गया है तो भी उत्तराधिकारी अपना हक पा सकता है। इसके लिए उसे कुछ दस्तावेजों की जरूरत होगी। एल्टामाउंट कैपिटल मैनेजमेंट में लिगैसी प्लानिंग हेड शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'कम से कम 95 फीसदी समस्याएं उत्तराधिकार प्रमाणपत्र और मृत्यु प्रमाणपत्र से दूर हो सकती हैं।'
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र
आमतौर पर उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की काफी जरूरत पड़ती है। शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'वसीयत नहीं होने की सूरत में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राथमिक दस्तावेज होगा, जिसके जरिए उत्तराधिकारी मृत व्यक्ति की संपत्ति पर अपना दावा पेश कर सकते हैं।' भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत उत्तराधिकार प्रमाणपत्र ऐसा दस्तावेज होता है जो धारक को मृतक की तरफ से (उसके नाम पर देय हो) कर्ज की रकम या प्रतिभूतियां पाने का अधिकार देता है। उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए आपको किसी मजिस्ट्रेट या हाईकोर्ट में जाना होगा। आमतौर पर अदालत में अलग सेल होता है जो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करता है। अचल संपत्ति के मामले में गिफ्ट डीड जैसे दूसरे दस्तावेज भी काम के हो सकते हैं। एसएन गुप्ता एंड कंपनी में पार्टनर राजेश नारायण गुप्ता कहते हैं, 'कुछ राज्यों में अंतरराज्यीय उत्तराधिकार के मामलों में कानूनी वारिस एक दूसरे को अचल संपत्ति या उसमें हिस्सेदारी उपहार में दे सकते हैं। इसके लिए रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस के पास गिफ्ट डीड या रिलीज डीड रजिस्टर करानी पड़ती है।'
नामांकन और मृत्यु प्रमाणपत्र
मरने वाले के बैंक खातों को एक्सेस करने की प्रक्रिया अलग है। अगर उसने नामांकन किया है तो स्वाभाविक तौर पर बैंक खाते में जमा रकम पर नामिती का हक होगा। गुप्ता के मुताबिक, 'अगर मरने वाले ने नामांकन किया हुआ है तो उसके आधार पर बैंक खाते की बचत या निवेश पर दावा कर सकता है।' शिवरामकृष्णन कहते हैं, 'आरबीआई के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, बैंकों को नामिती को भुगतान करना होगा, अगर खाताधारक का नामांकन बैंक के पास रजिस्टर्ड है। यहां रजिस्ट्रेशन का मतलब संबंधित बैंक की तरफ से मिलने वाला कन्फमेर्शन से है।' लेकिन ज्यादातर लोगों के सामने दिक्कत तब आती है, जब मरने वाले ने न नामांकन किया हुआ है और न ही कोई वसीयत बनाई है।
ऐसी सूरत में क्या किया जा सकता है? वार्मोन्ड ट्रस्टीज ऐंड एग्जेक्युटर्स के एमडी और सीईओ संदीप नरलेकर कहते हैं, 'बैंक खाता एक्सेस करने के लिए आपको मृत्यु प्रमाणपत्र की सर्टिफाइड कॉपी की जरूरत होगी। बैंक देखते हैं कि क्या मरने वाले ने खाते के लिए किसी का नामांकन किया है या नहीं। अगर कोई नामांकन नहीं है तो इस मामले में उत्तराधिकार के नियम लागू होंगे।' आमतौर पर अस्पताल, शवदाह गृह वगैरह मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करते हैं।
शेयर ट्रांसफर
कई बार लोगों की संपत्ति का बड़ा हिस्सा शेयरों के रूप में होता है। नरलेकर कहते हैं, 'डीमैट फॉर्म में रखे गए शेयरों के हस्तांतरण की प्रक्रिया आसान होती है, क्योंकि डीमैट खाते में जमा सभी प्रतिभूतियों के हस्तांतरण की प्रक्रिया जरूरी दस्तावेज डिपॉजिटरी पाटिर्सिपेंट (डीपी) के पास जमाकर पूरी की जा सकती है। अगर शेयर डीमैट फॉर्म में नहीं है तो मरने वाले के कानूनी वारिस/नामिती/जीवित बचे संयुक्त धारक को उन कंपनियों से अलग-अलग संपर्क करना होगा जिनके शेयर मरने वाला छोड़ गया है। अगर खाता एकल है और खाताधारक ने नामांकन किया हुआ है तो खाते में जमा प्रतिभूतियों पर दावा करने वाले को मृत्यु प्रमाणपत्र की नोटराइज्ड कॉपी के साथ संबंधित डीपी के पास ट्रांसमिशन रिक्वेस्ट फॉर्म देना होगा।'
समस्या तो इसमें भी हो सकती है। अगर खाता एकल है और खाताधारक ने नामांकन नहीं किया है तो उसकी मौत होने पर आप क्या करेंगे? नलेर्कर कहते हैं, 'ऐसी सूरत में आपको खाताधारक के मृत्यु प्रमाणपत्र की नोटराइज्ड कॉपी के अलावा इनमें से किसी एक दस्तावेज की जरूरत होगी: उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, वसीयत की सटिर्फाइड कॉपी और प्रोबेट (अगर हो), लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन की सर्टिफाइड कॉपी (अगर निवेश की वैल्यू 1 लाख रुपए से कम है।)'
नाबालिग बच्चे का अधिकार
मान लिया कि माता-पिता की अकस्मात मृत्यु हो जाती है और वह अपने नाबालिग बच्चे के नाम कोई वसीयत नहीं छोड़ जाते हैं। इस स्थिति में बच्चा क्या करेगा? गुप्ता के मुताबिक, 'नाबालिग बच्चे को अदालत में अपने अभिभावक या अदालत द्वारा नियुक्त अभिभावक के जरिए केस दाखिल करना होगा या याचिका दायर करनी होगी। चूंकि नाबालिग बच्चा कानूनी तौर पर संपत्ति की देखरेख में अक्षम माना जाता है, इसलिए उसके रिश्तेदारों में से कोई एक अभिभावक बनकर उसकी संपत्ति की देखदेख करेगा।
शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'अगर रिश्तेदारों में से कोई उसका अभिभावक नहीं बनना नहीं चाहता है, तो अदालत उसके लिए अभिभावक नियुक्त कर सकती है और बच्चे की संपत्ति की देखरेख का जिम्मा उसे दे सकती है।' अदालत बच्चे की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगी। नरलेकर कहते हैं, 'अगर बच्चे के पास मकान में हिस्सेदारी है तो आपकी पत्नी अदालत की इजाजत लिए बगैर न उसे बेच सकती है, न ही उसे किराये पर दे सकती है। यहां तक कि वह उस पर लोन भी नहीं ले सकती। इसमें अदालत का आदेश हासिल करने में काफी वक्त और पैसा लग सकता है।' जब बात ऐसी संपत्ति में निवेश की बात आती है तो अदालत उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम भी उठाती है। गुप्ता के मुताबिक, 'अदालत नाबालिगों के हितों की रक्षा के लिए इस बारे में अतिरिक्त आदेश जारी कर सकती है कि तब तक नाबालिग को मिलने वाली संपत्ति का निवेश किस तरह किया जाएगा जब तक कि वह बालिग नहीं हो जाता।'
आपसी करार
असल दिक्कत तब होती है जब एक ही संपत्ति के कई दावेदार होते हैं। ऐसा होने के पूरे आसार होते हैं जब मरने वाला अपने पीछे पत्नी, बच्चों और नजदीकी रिश्तेदार छोड़ जाता है। नरलेकर कहते हैं, 'हो सकता है कि सभी कानूनी वारिस किसी एक शहर में नहीं रहते हों या इस बात पर राजी नहीं हो पाएं कि मरने वाले की संपत्ति के साथ क्या किया जाए। संपत्ति के जितने ज्यादा कानूनी वारिस होंगे, मामले के निपटारे के लिए संगठित होने में उतनी ही ज्यादा रकम और कोशिश लगेगी।'
जानकारों को लगता है कि ऐसी स्थिति में संपत्ति के बंटवारे के लिए रिश्तेदारों को आपस में समझौता करना होगा। शिवरामकृष्णन कहते हैं, 'इसके बाद वे दस्तावेज बनाकर उस पर गवाहों के सामने दस्तखत करने के बाद उत्तराधिकार अदालत में आवेदन कर सकते हैं। इस तरह का करार व्यापक होना चाहिए और उसमें सभी ज्ञात रिश्तेदारों के हितों की बात होनी चाहिए। इससे उत्तराधिकार प्रमाणपत्र लेने में आसानी होगी।' लेकिन इसमें करार को रेकॉर्ड कराना काफी जरूरी है।
गुप्ता कहते हैं, 'इस तरह के करार को पार्टिशन डीड के जरिए सब रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस के पास पंजीकरण या अदालत द्वारा डिक्री के जरिए रेकॉर्ड कराया जा सकता है न्यायिक कार्यवाही के तहत इसका अदालत में सेटलमेंट कराया जा सकता है।' लेकिन आपसी समझौता ही सबकुछ नहीं होता। शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'आपसी करार अपने आप में संपूर्ण नहीं होता। आपको उत्तराधिकार प्रमाणपत्र भी लेना होगा।'
मरने वाले के वसीयत नहीं छोड़े जाने से जो दिक्कतें होती हैं, उसका समाधान है। लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि बेहतर तो यही होगा कि सबको वसीयत बनानी चाहिए जिससे आपके परिवार को आपके गुजर जाने के बाद परिवार के लोगों को कोई दिक्कत नहीं आए।
परिवार में किसी प्रियजन का निधन होना बहुत दुखद होता है। अगर परलोक सिधारने वाला अपने पीछे कोई वसीयत नहीं छोड़ जाता है तब स्थिति और विकट हो जाती है। ऐसी स्थिति में परिजनों को उसकी संपत्ति पर अपना हक पाने के लिए अक्सर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है। कई मामलों में वह संपत्ति परिवार की तारणहार होती है। इस पर जानकारों का कहना है कि अगर मरने वाला कोई वसीयत नहीं बना गया है तो भी उत्तराधिकारी अपना हक पा सकता है। इसके लिए उसे कुछ दस्तावेजों की जरूरत होगी। एल्टामाउंट कैपिटल मैनेजमेंट में लिगैसी प्लानिंग हेड शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'कम से कम 95 फीसदी समस्याएं उत्तराधिकार प्रमाणपत्र और मृत्यु प्रमाणपत्र से दूर हो सकती हैं।'
उत्तराधिकार प्रमाणपत्र
आमतौर पर उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की काफी जरूरत पड़ती है। शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'वसीयत नहीं होने की सूरत में उत्तराधिकार प्रमाणपत्र प्राथमिक दस्तावेज होगा, जिसके जरिए उत्तराधिकारी मृत व्यक्ति की संपत्ति पर अपना दावा पेश कर सकते हैं।' भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत उत्तराधिकार प्रमाणपत्र ऐसा दस्तावेज होता है जो धारक को मृतक की तरफ से (उसके नाम पर देय हो) कर्ज की रकम या प्रतिभूतियां पाने का अधिकार देता है। उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के लिए आपको किसी मजिस्ट्रेट या हाईकोर्ट में जाना होगा। आमतौर पर अदालत में अलग सेल होता है जो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करता है। अचल संपत्ति के मामले में गिफ्ट डीड जैसे दूसरे दस्तावेज भी काम के हो सकते हैं। एसएन गुप्ता एंड कंपनी में पार्टनर राजेश नारायण गुप्ता कहते हैं, 'कुछ राज्यों में अंतरराज्यीय उत्तराधिकार के मामलों में कानूनी वारिस एक दूसरे को अचल संपत्ति या उसमें हिस्सेदारी उपहार में दे सकते हैं। इसके लिए रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस के पास गिफ्ट डीड या रिलीज डीड रजिस्टर करानी पड़ती है।'
नामांकन और मृत्यु प्रमाणपत्र
मरने वाले के बैंक खातों को एक्सेस करने की प्रक्रिया अलग है। अगर उसने नामांकन किया है तो स्वाभाविक तौर पर बैंक खाते में जमा रकम पर नामिती का हक होगा। गुप्ता के मुताबिक, 'अगर मरने वाले ने नामांकन किया हुआ है तो उसके आधार पर बैंक खाते की बचत या निवेश पर दावा कर सकता है।' शिवरामकृष्णन कहते हैं, 'आरबीआई के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, बैंकों को नामिती को भुगतान करना होगा, अगर खाताधारक का नामांकन बैंक के पास रजिस्टर्ड है। यहां रजिस्ट्रेशन का मतलब संबंधित बैंक की तरफ से मिलने वाला कन्फमेर्शन से है।' लेकिन ज्यादातर लोगों के सामने दिक्कत तब आती है, जब मरने वाले ने न नामांकन किया हुआ है और न ही कोई वसीयत बनाई है।
ऐसी सूरत में क्या किया जा सकता है? वार्मोन्ड ट्रस्टीज ऐंड एग्जेक्युटर्स के एमडी और सीईओ संदीप नरलेकर कहते हैं, 'बैंक खाता एक्सेस करने के लिए आपको मृत्यु प्रमाणपत्र की सर्टिफाइड कॉपी की जरूरत होगी। बैंक देखते हैं कि क्या मरने वाले ने खाते के लिए किसी का नामांकन किया है या नहीं। अगर कोई नामांकन नहीं है तो इस मामले में उत्तराधिकार के नियम लागू होंगे।' आमतौर पर अस्पताल, शवदाह गृह वगैरह मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करते हैं।
शेयर ट्रांसफर
कई बार लोगों की संपत्ति का बड़ा हिस्सा शेयरों के रूप में होता है। नरलेकर कहते हैं, 'डीमैट फॉर्म में रखे गए शेयरों के हस्तांतरण की प्रक्रिया आसान होती है, क्योंकि डीमैट खाते में जमा सभी प्रतिभूतियों के हस्तांतरण की प्रक्रिया जरूरी दस्तावेज डिपॉजिटरी पाटिर्सिपेंट (डीपी) के पास जमाकर पूरी की जा सकती है। अगर शेयर डीमैट फॉर्म में नहीं है तो मरने वाले के कानूनी वारिस/नामिती/जीवित बचे संयुक्त धारक को उन कंपनियों से अलग-अलग संपर्क करना होगा जिनके शेयर मरने वाला छोड़ गया है। अगर खाता एकल है और खाताधारक ने नामांकन किया हुआ है तो खाते में जमा प्रतिभूतियों पर दावा करने वाले को मृत्यु प्रमाणपत्र की नोटराइज्ड कॉपी के साथ संबंधित डीपी के पास ट्रांसमिशन रिक्वेस्ट फॉर्म देना होगा।'
समस्या तो इसमें भी हो सकती है। अगर खाता एकल है और खाताधारक ने नामांकन नहीं किया है तो उसकी मौत होने पर आप क्या करेंगे? नलेर्कर कहते हैं, 'ऐसी सूरत में आपको खाताधारक के मृत्यु प्रमाणपत्र की नोटराइज्ड कॉपी के अलावा इनमें से किसी एक दस्तावेज की जरूरत होगी: उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, वसीयत की सटिर्फाइड कॉपी और प्रोबेट (अगर हो), लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन की सर्टिफाइड कॉपी (अगर निवेश की वैल्यू 1 लाख रुपए से कम है।)'
नाबालिग बच्चे का अधिकार
मान लिया कि माता-पिता की अकस्मात मृत्यु हो जाती है और वह अपने नाबालिग बच्चे के नाम कोई वसीयत नहीं छोड़ जाते हैं। इस स्थिति में बच्चा क्या करेगा? गुप्ता के मुताबिक, 'नाबालिग बच्चे को अदालत में अपने अभिभावक या अदालत द्वारा नियुक्त अभिभावक के जरिए केस दाखिल करना होगा या याचिका दायर करनी होगी। चूंकि नाबालिग बच्चा कानूनी तौर पर संपत्ति की देखरेख में अक्षम माना जाता है, इसलिए उसके रिश्तेदारों में से कोई एक अभिभावक बनकर उसकी संपत्ति की देखदेख करेगा।
शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'अगर रिश्तेदारों में से कोई उसका अभिभावक नहीं बनना नहीं चाहता है, तो अदालत उसके लिए अभिभावक नियुक्त कर सकती है और बच्चे की संपत्ति की देखरेख का जिम्मा उसे दे सकती है।' अदालत बच्चे की सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगी। नरलेकर कहते हैं, 'अगर बच्चे के पास मकान में हिस्सेदारी है तो आपकी पत्नी अदालत की इजाजत लिए बगैर न उसे बेच सकती है, न ही उसे किराये पर दे सकती है। यहां तक कि वह उस पर लोन भी नहीं ले सकती। इसमें अदालत का आदेश हासिल करने में काफी वक्त और पैसा लग सकता है।' जब बात ऐसी संपत्ति में निवेश की बात आती है तो अदालत उनकी सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम भी उठाती है। गुप्ता के मुताबिक, 'अदालत नाबालिगों के हितों की रक्षा के लिए इस बारे में अतिरिक्त आदेश जारी कर सकती है कि तब तक नाबालिग को मिलने वाली संपत्ति का निवेश किस तरह किया जाएगा जब तक कि वह बालिग नहीं हो जाता।'
आपसी करार
असल दिक्कत तब होती है जब एक ही संपत्ति के कई दावेदार होते हैं। ऐसा होने के पूरे आसार होते हैं जब मरने वाला अपने पीछे पत्नी, बच्चों और नजदीकी रिश्तेदार छोड़ जाता है। नरलेकर कहते हैं, 'हो सकता है कि सभी कानूनी वारिस किसी एक शहर में नहीं रहते हों या इस बात पर राजी नहीं हो पाएं कि मरने वाले की संपत्ति के साथ क्या किया जाए। संपत्ति के जितने ज्यादा कानूनी वारिस होंगे, मामले के निपटारे के लिए संगठित होने में उतनी ही ज्यादा रकम और कोशिश लगेगी।'
जानकारों को लगता है कि ऐसी स्थिति में संपत्ति के बंटवारे के लिए रिश्तेदारों को आपस में समझौता करना होगा। शिवरामकृष्णन कहते हैं, 'इसके बाद वे दस्तावेज बनाकर उस पर गवाहों के सामने दस्तखत करने के बाद उत्तराधिकार अदालत में आवेदन कर सकते हैं। इस तरह का करार व्यापक होना चाहिए और उसमें सभी ज्ञात रिश्तेदारों के हितों की बात होनी चाहिए। इससे उत्तराधिकार प्रमाणपत्र लेने में आसानी होगी।' लेकिन इसमें करार को रेकॉर्ड कराना काफी जरूरी है।
गुप्ता कहते हैं, 'इस तरह के करार को पार्टिशन डीड के जरिए सब रजिस्ट्रार ऑफ एश्योरेंस के पास पंजीकरण या अदालत द्वारा डिक्री के जरिए रेकॉर्ड कराया जा सकता है न्यायिक कार्यवाही के तहत इसका अदालत में सेटलमेंट कराया जा सकता है।' लेकिन आपसी समझौता ही सबकुछ नहीं होता। शिवरामकृष्णन के मुताबिक, 'आपसी करार अपने आप में संपूर्ण नहीं होता। आपको उत्तराधिकार प्रमाणपत्र भी लेना होगा।'
मरने वाले के वसीयत नहीं छोड़े जाने से जो दिक्कतें होती हैं, उसका समाधान है। लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि बेहतर तो यही होगा कि सबको वसीयत बनानी चाहिए जिससे आपके परिवार को आपके गुजर जाने के बाद परिवार के लोगों को कोई दिक्कत नहीं आए।
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