Saturday, May 7, 2011

जब लेनी हो 'इनकम प्रॉपर्टी'-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

जब लेनी हो 'इनकम प्रॉपर्टी'-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times


इनकम प्रॉपर्टी की खरीदारी भले ही आप अपने रहने के लिए नहीं करते, लेकिन आखिर कोई तो उसका उपयोग करेगा ही। यही बात प्रॉपर्टी से इनकम भी तय करेगी, क्योंकि जो जैसी चीज लेगा, वैसे ही दाम भी चुकाएगा। ऐसे में इनकम प्रॉपर्टी लेते समय भी अगर थोड़ी सावधानी बरतेंगे, तो ही अच्छा रिटर्न भी पा सकेंगे।

क्या है इनकम प्रॉपर्टी
इनकम प्रॉपर्टी से मतलब ऐसी प्रॉपर्टी से है, जिसे आप अपने इस्तेमाल के लिए न लेकर इनवेस्टमेंट के लिए खरीदते हैं। ऐसी प्रॉपर्टी खरीदना अपने लिए घर खरीदने से थोड़ा अलग होता है। घर लेते समय आप कई बातों का ध्यान रखते हैं, जैसे - किस फ्लोर पर फ्लैट लें, आपका पड़ोस कैसा है, बच्चों के स्कूल और आपके ऑफिस से कितनी दूरी है, नजदीक कोई माकेर्ट और हॉस्पिटल आदि हैं या नहीं। यहां तक कि लोग नजदीक रेलवे स्टेशन से भी दूरी पर ध्यान देना नहीं भूलते। 'इनकम प्रॉपर्टी' खरीदने का मामला कुछ अलग है। इस खरीदारी को इनवेस्टमेंट के तौर पर किया जाता है, न कि पर्सनल यूज के लिए। लिहाजा, इस इनवेस्टमेंट से अच्छे-खासे रिटर्न की उम्मीद भी रखी जाती है। रिटर्न की गणना उस प्रॉपर्टी के नजदीक भविष्य की संभावनाओं के आधार पर की जाती है, जिससे उस प्रॉपर्टी की कीमत में बढ़ोतरी भी होगी।

कैसे मिलता है रिटर्न
' इनकम प्रॉपर्टी' से रिटर्न दो तरह से मिलता है। पहला, किराये की आमदनी के रूप में और दूसरा, प्रॉपर्टी की बिक्री से मिलने वाली एकमुश्त रकम से। 'इनकम प्रॉपर्टी' रेजिडेंशल भी हो सकती है और कमर्शल भी। इस पर आप कर लाभ भी ले सकते हैं। इस तरह के निवेश से रिटर्न की गणना करने का कोई तय फार्मूला नहीं है। इसके लिए आपको कई बातों पर गौर करना होगा, फिर चाहे आप रेजिडेंशल इनकम प्रॉपर्टी खरीदें या कमर्शल। कमर्शल प्रॉपर्टी के मामले में भी आप किराये और भविष्य में प्रॉपर्टी की बिक्री से होने वाले लाभ का अनुमान लगाकर इनवेस्टमेंट कर सकते हैं।

खरीदारी से पहले रखें ध्यान
पिछला रेकॉर्ड देखें
आप संबंधित प्रॉपर्टी की बिक्री का पिछला रिकॉर्ड चेक करके काफी लाभ उठा सकते हैं। इस काम में प्रॉपर्टी डीलर आपकी मदद करेगा। यह पता करें कि पिछली बार वह प्रॉपर्टी किस कीमत पर बेची गई थी। यदि प्रॉपर्टी मालिक ने उसमें बदलाव किए हैं या रीयल एस्टेट मार्केट में उछाल आया है, तो प्रॉपर्टी की मौजूदा मार्केट वैल्यू भी पहले से ज्यादा होगी। अगर यह प्रॉपर्टी लंबे समय से डीलर या वेबसाइट पर लिस्टेड है और अभी तक किसी खरीदार ने उसमें रुचि नहीं दिखाई, तो संभव है कि वह ओवरप्राइज्ड हो यानी उसकी कीमत तर्कसंगत दाम से बहुत ज्यादा बताई जा रही हो। अगर उस प्रॉपर्टी पर किसी फाइनैंसर ने लोन देने से कभी भी मना किया हो, तो भी उस प्रॉपर्टी के ओवरप्राइज्ड या विवादित होने की आशंका है।

बिक्री किसलिए
यह भी जानने की कोशिश करें कि प्रॉपर्टी किसलिए बेची जा रही है? इसका जवाब आपको दो तरह से मिल सकता है। पहला, या तो मालिक को प्रॉपर्टी बेचने से काफी फायदा हो रहा है या वह पहले ही उस पर काफी खर्च कर चुका है और अब प्रॉपर्टी से पीछा छुड़ाना चाहता है। दूसरा, प्रॉपर्टी मालिक ने उसे बेचने के लिए प्रॉपर्टी में काफी सुधार किए हैं या फिर रीयल एस्टेट मार्केट में गिरावट आई है। ध्यान रखें कि अगर रीयल एस्टेट मार्केट में गिरावट है, तो उस प्रॉपर्टी की कीमत भी कम होनी चाहिए।

किराए की स्थिति
अगर आप 'इनकम प्रॉपर्टी' की खरीदारी किराए पर देने के लिए कर रहे हैं, तो आपको उस लोकेशन और विशेष रूप से उस प्रॉपर्टी में किराएदार की स्थिति पर भी गौर करना होगा। आपको अंदाजा लगा लेना चाहिए कि उस प्रॉपर्टी से आपको कितना किराया मिलेगा? माना जाता है कि पूरी तरह भरी हुई सोसाइटी या अन्य बिल्डिंग में किराये खाली पड़ी बिल्डिंग से ज्यादा मिलता है। ऐसे में अगर आपकी होने वाली 'इनकम प्रॉपर्टी' लंबे समय से खाली पड़ी हुई है, तो आपके दिमाग में कुछ सवाल कौंधने चाहिए, जैसे - उसमें किराएदार क्यों नहीं हैं? पिछले किराएदार ने प्रॉपर्टी क्यों छोड़ी? क्या उसका रखरखाव सही नहीं है? क्या किराया बहुत ज्यादा है? क्या प्रॉपर्टी की हालत खराब है? इत्यादि। आपको यह भी सोचना होगा कि नया किराएदार रखने के लिए आपको प्रॉपर्टी में क्या सुधार करने होंगे और नई स्थिति में अधिकतम कितना किराया मिल सकेगा?

बाजार में उतार-चढ़ाव
रीयल एस्टेट मार्केट में संतुलन कभी-कभी ही आता है, क्योंकि डिमांड और सप्लाई बराबर नहीं हो पाते। कभी तो ओवरसप्लाई की स्थिति होती है और कभी अंडरसप्लाई। ओवरसप्लाई होने पर इसे बायर्स मार्केट कहते हैं, क्योंकि प्रॉपर्टी की कीमत आदि पर बार्गेन की जा सकती है; जबकि अंडरसप्लाई को सेलर्स मार्केट कहते हैं, क्योंकि इस समय उसका पलड़ा भारी होता है। देखा गया है कि रीयल एस्टेट मार्केट में भी शेयर बाजार की तरह उतार-चढ़ाव बारी-बारी से आते हैं। स्वाभाविक है कि हर व्यक्ति शेयरों की तरह ही प्रॉपर्टी को भी मार्केट में गिरावट के दौर में खरीदकर उसे उछाल के समय में बेचना चाहेगा। एक्सपर्ट्स की राय में, किसी भी बाजार के अधिकतम उतार-चढ़ाव की भविष्यवाणी करना लगभग असंभव होता है। इसके बजाय मार्केट की मौजूदा स्थितियों और चलन का निरीक्षण करना ज्यादा आसान होता है। उदाहरण के लिए, ओवरसप्लाई होने पर प्रॉपर्टी की कीमतें कम होती हैं, जबकि अंडरसप्लाई होने पर कीमतें बढ़ती हैं।

एक सवाल यह भी उठता है कि ओवरसप्लाई और अंडरसप्लाई की स्थितियों के बारे में किस तरह पता किया जाए? यदि कोई प्रॉपर्टी लंबे समय से बिक्री के लिए उपलब्ध है, लेकिन कोई खरीदार नहीं मिला और ऐसी प्रॉपर्टीज की संख्या काफी ज्यादा है, तो यह ओवरसप्लाई की स्थिति होगी। इसके एकदम उलट, हाथों-हाथ बिकने वाली प्रॉपर्टीज की संख्या बढ़ने से अंडरसप्लाई का संकेत मिलता है। प्रॉपर्टी डीलर और एक्सपर्ट्स आपको इन स्थितियों की जानकारी दे सकते हैं। वैसे, ओवरसप्लाई और अंडरसप्लाई की स्थितियां रेजिडेंशल सेक्टर में ज्यादा प्रभावी रहती हैं।

स्पेशल मार्केट
अगर आप 'इनकम प्रॉपर्टी' के रूप में रेजिडेंशल या कमर्शल प्रॉपर्टी की बजाय खास तरह की प्रॉपर्टी जैसे - फॉर्म हाउस, मोटल, गोल्फ कोर्स या रिजॉर्ट खरीदने की योजना बना रहे हैं, तो आपको अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। इनकी कीमतें स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड से निर्धारित हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, अगर आप कोई फॉर्म हाउस खरीदना चाहते हैं, तो उसी डीलर से खरीदें, जिसे इस प्रॉपर्टी की सेल का अनुभव हो। वही व्यक्ति आपको सही ट्रेंड के बारे में बता सकता है।

लोकेशन
अपना घर खरीदते समय लोकेशन पर सबसे पहली निगाह जाती है। इस बात का उतना ही महत्व 'इनकम प्रॉपर्टी' खरीदते समय भी होता है। अगर प्रॉपर्टी के नजदीक का कमर्शल एरिया दिन-प्रतिदिन बेहतर हो रहा है, प्रॉपर्टी की कीमत बढ़ेगी और बेकार हो रहा है, तो घटेगी। इस बात का महत्व कमर्शल इनकम प्रॉपर्टी के संबंध में और भी बढ़ जाता है।

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