क्या आपका घर पुराना पड़ने लगा है या उसमें सीलन की शिकायत है या फिर किसी और वजह से कमजोर पड़ रहा है? या आपको वजह का पता नहीं चल रहा? स्थिति चाहे जो भी हो, घर और अपनी, दोनों की बेहतरी स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने में है। छोटी-टोटी कमियों को समय से दूर करने या कराने की कोशिश करें। लीकेज की समस्या देखने में छोटी लगती है, लेकिन इससे घर की उम्र किस कदर कम होती है, आप सोच भी नहीं सकते।
ड्यूरेबिलिटी विशेषज्ञ जेजे शाह की राय में इमारतें भी इंसानों की तरह है। इसलिए अगर कहीं लीकेज की समस्या होती है तो स्थिति बिगड़ने का इंतजार किए बिना उस प्रॉब्लम को खत्म करना चाहिए। बिल्डिंग स्ट्रक्चर की तुरंत जांच कराई जानी चाहिए। लीकेज की सबसे बड़ी खामी यह है कि इस वजह से आरसीसी से बनी चीजें, जैसे कॉलम, बीम, स्लैब आदि तुरंत कमजोर पड़ने लगते हैं।
लीकेज की कुछ खास वजहों में छत पर रखी पानी की टंकियां और बरसाती पानी के निकास की व्यवस्था तो है ही, कई बार पाइप के जाम होने या टूटने से भी लीकेज की समस्या आ जाती है। इसलिए इन चीजों का खास ख्याल रखा जाना चाहिए।
शाह के मुताबिक इमारत बनाते समय ही डेंस कंक्रीट इस्तेमाल करें। सीमेंट और पानी का अनुपात 0.4 से कम होना चाहिए। टॉयलेट और नियमित रूप से पानी के संपर्क में आने वाले हिस्सों की वॉटरप्रूफिंग जरूरी है। प्लास्टर कराते वक्त भी हर प्रकार से ध्यान रखा जाना चाहिए। प्लास्टर में केमिकल मिला कर सीलन रोकी जा सकती है।
स्ट्रक्चरल ऑडिट के द्वारा इमारत में पैदा होने वाली किसी भी समस्या का जड़ से पता लगाया जा सकता है। दिल्ली में तो फिलहाल कंपल्सरी स्ट्रक्चरल ऑडिट से आप बच गए हैं, लेकिन आने वाले समय में आप इससे बच नहीं सकेंगे। महाराष्ट्र में 30 साल से पुरानी सभी इमारतों के लिए ऑडिट जरूरी है। राज्य में सभी इमारतों पर लागू होने वाले मुंबई म्युनिसिपल एक्ट के तहत पुरानी इमारतों के लिए 30 साल के बाद हर 10 साल पर ऑडिट का प्रावधान है।
वहां ऑडिट रिपोर्ट में दिए गए सुझावों पर अमल के लिए भी समय सीमा निर्धारित कर दी गई है। अगर इमारत के मालिक या कोई सोसायटी समय रहते अमल नहीं करती है तो म्युनिसिपल अफसर इसे खुद ठीक करा कर पैसे वसूलने का अधिकार रखते हैं।
ऑडिट के खर्चे को लेकर घबराने जैसी की बात नहीं है। एक सोसायटी की बात करें तो ऑडिट पर प्रति फ्लैट मामूली खर्च आता है, लेकिन मरम्मत आदि पर आने वाला खर्च ऑडिट रिपोर्ट पर निर्भर करता है। हां, अकेले एक घर का ऑडिट कराने का खर्च आपको थोड़ा ज्यादा लग सकता है, लेकिन आपने समय पर ऑडिट करा लिया तो अनहोनी से तो बचेंगे ही, समय और पैसे की भी बचत होगी।
ड्यूरेबिलिटी विशेषज्ञ जेजे शाह की राय में इमारतें भी इंसानों की तरह है। इसलिए अगर कहीं लीकेज की समस्या होती है तो स्थिति बिगड़ने का इंतजार किए बिना उस प्रॉब्लम को खत्म करना चाहिए। बिल्डिंग स्ट्रक्चर की तुरंत जांच कराई जानी चाहिए। लीकेज की सबसे बड़ी खामी यह है कि इस वजह से आरसीसी से बनी चीजें, जैसे कॉलम, बीम, स्लैब आदि तुरंत कमजोर पड़ने लगते हैं।
लीकेज की कुछ खास वजहों में छत पर रखी पानी की टंकियां और बरसाती पानी के निकास की व्यवस्था तो है ही, कई बार पाइप के जाम होने या टूटने से भी लीकेज की समस्या आ जाती है। इसलिए इन चीजों का खास ख्याल रखा जाना चाहिए।
शाह के मुताबिक इमारत बनाते समय ही डेंस कंक्रीट इस्तेमाल करें। सीमेंट और पानी का अनुपात 0.4 से कम होना चाहिए। टॉयलेट और नियमित रूप से पानी के संपर्क में आने वाले हिस्सों की वॉटरप्रूफिंग जरूरी है। प्लास्टर कराते वक्त भी हर प्रकार से ध्यान रखा जाना चाहिए। प्लास्टर में केमिकल मिला कर सीलन रोकी जा सकती है।
स्ट्रक्चरल ऑडिट के द्वारा इमारत में पैदा होने वाली किसी भी समस्या का जड़ से पता लगाया जा सकता है। दिल्ली में तो फिलहाल कंपल्सरी स्ट्रक्चरल ऑडिट से आप बच गए हैं, लेकिन आने वाले समय में आप इससे बच नहीं सकेंगे। महाराष्ट्र में 30 साल से पुरानी सभी इमारतों के लिए ऑडिट जरूरी है। राज्य में सभी इमारतों पर लागू होने वाले मुंबई म्युनिसिपल एक्ट के तहत पुरानी इमारतों के लिए 30 साल के बाद हर 10 साल पर ऑडिट का प्रावधान है।
वहां ऑडिट रिपोर्ट में दिए गए सुझावों पर अमल के लिए भी समय सीमा निर्धारित कर दी गई है। अगर इमारत के मालिक या कोई सोसायटी समय रहते अमल नहीं करती है तो म्युनिसिपल अफसर इसे खुद ठीक करा कर पैसे वसूलने का अधिकार रखते हैं।
ऑडिट के खर्चे को लेकर घबराने जैसी की बात नहीं है। एक सोसायटी की बात करें तो ऑडिट पर प्रति फ्लैट मामूली खर्च आता है, लेकिन मरम्मत आदि पर आने वाला खर्च ऑडिट रिपोर्ट पर निर्भर करता है। हां, अकेले एक घर का ऑडिट कराने का खर्च आपको थोड़ा ज्यादा लग सकता है, लेकिन आपने समय पर ऑडिट करा लिया तो अनहोनी से तो बचेंगे ही, समय और पैसे की भी बचत होगी।
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