Friday, April 1, 2011

प्रॉपर्टी: लीज होल्ड या फ्री होल्ड-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

प्रॉपर्टी: लीज होल्ड या फ्री होल्ड-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times
डीडीए ने लीज होल्ड से फ्री होल्ड करने की समयसीमा घटा दी है। अब लीज होल्ड से फ्री होल्ड करवाने में 45 दिन का समय लगेगा। पहले यह समय सीमा 90 दिन की थी। कई रीडर्स को अभी भी लीज होल्ड और फ्री होल्ड के बारे में कुछ कन्फ्यूजन हो सकता है। इनके बारे में विस्तार से बता रहे हैं अमित कुश:

रीयल एस्टेट में लीज होल्ड और फ्री होल्ड शब्द काफी अहम होते हैं। ये प्रॉपर्टी के टाइटल से संबंधित होते हैं, यानी प्रॉपर्टी के मालिकाना हक की स्थिति को दर्शाते हैं। लीज होल्ड और फ्री होल्ड टाइटल सभी तरह की प्रॉपर्टी पर लागू होते हैं, जैसे- प्लॉट, उस पर बनी बिल्डिंग, डीडीए या अन्य अथॉरिटी के फ्लैट, ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी फ्लैट, इंडिपेंडेंट फ्लोर आदि।

लीज होल्ड प्रॉपर्टी
मतलब: लीज होल्ड प्रॉपर्टी से मतलब है कि प्रॉपर्टी का मालिकाना हक कुछ समय के लिए ही खरीदार को ट्रांसफर किया जाता है। यह समय कुछ हफ्तों या महीनों का न होकर, कई दशक या सैकड़ों साल का होता है। आमतौर पर 99 साल की लीज की जाती है। यह समय सीमा पूरी होने के बाद मालिकाना हक दोबारा पहले पक्ष के पास चला जाता है। इस तरह की प्रॉपर्टी का टाइटल कभी भी क्लियर नहीं कहा जा सकता।

रजिस्ट्रेशन: इस तरह की प्रॉपर्टी की डील लीज डीड के माध्यम से की जाती है। डीड का रजिस्ट्रेशन खरीदार के नाम से ही होता है, लेकिन लीज का टाइम पूरा होने के बाद इसका रिन्यूअल कराना पड़ता है। कह सकते हैं कि इस तरह की प्रॉपर्टी बेची नहीं जाती, बल्कि लीज डीड के माध्यम से उपयोग करने के लिए दी जाती है।

रीसेल: लीज होल्ड प्रॉपर्टी को किसी तीसरे पक्ष को सीधे नहीं बेचा जा सकता। इसके लिए पहले पक्ष (जैसे डीडीए) की अनुमति लेनी जरूरी है। इसके लिए कुछ फीस भी चुकानी पड़ती है। लीज होल्ड प्रॉपर्टी की डील सेल डीड के माध्यम से नहीं की जा सकती, इसलिए अधिकारों के ट्रांसफर के लिए जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी, स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी, एग्रीमेंट टू सेल, वसीयत आदि का प्रयोग किया जाता है। इनमें से कुछ को रजिस्टर्ड कराना जरूरी है, तो कई बिना रजिस्ट्रेशन के भी मान्य होते हैं।

ध्यान दें :
- पावर ऑफ अटॉर्नी से डील करने से पहले वकील से इसके फायदे-नुकसान की पूरी जानकारी ले लें। कई पावर ऑफ अटॉर्नी प्रॉपर्टी बेचने वाले व्यक्ति की मौत के बाद खुद खत्म हो जाती हैं। ऐसे में स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाना ठीक रहता है।

- लीज होल्ड प्रॉपर्टी के इस्तेमाल पर मूल मालिक की ओर से कई तरह की बंदिशें लगाई जा सकती हैं, जो डीड में लिखी होती हैं। इनमें से किसी भी शर्त को तोड़ने पर लीज खत्म भी हो सकती है।

- लीज होल्ड प्रॉपर्टी के लिए होम लोन मिलना मुश्किल होता है। अगर मिला, तो फाइनैंसर उस पर फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के मुकाबले ज्यादा ब्याज वसूल सकता है।

फ्री होल्ड प्रॉपर्टी
मतलब: फ्री होल्ड प्रॉपर्टी से मतलब है कि प्रॉपर्टी का मालिकाना हक अनिश्चितकाल या हमेशा के लिए खरीदार को ट्रांसफर कर दिया जाता है। भारत में ज्यादातर प्रॉपर्टी का टाइटल फ्री होल्ड है, लेकिन दिल्ली में चूंकि ज्यादातर जमीन सरकार के पास है, इसलिए यहां लीज होल्ड प्रॉपर्टी का चलन ज्यादा है। इस तरह की प्रॉपर्टी का टाइटल क्लियर कहा जाता है।

रजिस्ट्रेशन: इस तरह की डील कन्वेंस या सेल डीड के जरिए पूरी की जाती है। इसके लिए संबंधित राज्य में लागू स्टाम्प ड्यूटी चुकाकर डीड को सब रजिस्ट्रार के ऑफिस में रजिस्टर्ड कराया जाता है। इसके बाद प्रॉपर्टी बेचने वाले का उस पर किसी तरह का कोई अधिकार बाकी नहीं रह जाता।

रीसेल: फ्री होल्ड प्रॉपर्टी को कभी भी तीसरे पक्ष को बेचा जा सकता है। इस पर कोई रोक नहीं होती। इसके लिए नए खरीदार के साथ सेल डीड साइन करके उसे सब रजिस्ट्रार के पास रजिस्टर्ड कराना होगा।

ध्यान दें:
- जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी से डील की जाए या कन्वेंस या सेल डीड के जरिए प्रॉपर्टी का ट्रांसेक्शन, सभी पर लगभग एक जैसी ही स्टैंप ड्यूटी चुकानी पड़ती है।

- ज्यादातर बैंक और हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां लीज होल्ड की तुलना में फ्री होल्ड प्रॉपर्टी पर लोन देना ज्यादा पसंद करते हैं।

- प्रॉपर्टी खरीदने से पहले डीलर या बिल्डर से टाइटल के कागज जरूर मांगे। देख लें कि प्रॉपर्टी लीज होल्ड है या फ्री होल्ड। फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के लिए रजिस्टर्ड कन्वेंस या सेल डीड होना जरूरी है, जबकि लीज होल्ड प्रॉपर्टी के मामले में लीज डीड, जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी जैसे कागज दिखाए जाएंगे।

लीज होल्ड से फ्री-होल्ड कराना
अगर आप लीज होल्ड प्रॉपर्टी का उपयोग कर रहे हैं, तो उसे फ्री-होल्ड भी कराया जा सकता है। इसके बाद उस पर पूरी तरह आपका मालिकाना हक होगा। जानते हैं इससे जुड़ी जरूरी बातें :

प्रक्रिया
- संबंधित अथॉरिटी (जैसे डीडीए) के ऑफिस से टाइटल कन्वर्जन फॉर्म खरीदें। उसे भरकर फीस के साथ जमा कराएं।
- ऐप्लिकेशन स्वीकार होने की अथॉरिटी की सूचना का इंतजार करें। अगर फॉर्म में कोई गलती होगी, तो उसकी भी सूचना दी जाएगी। इसके बाद आगे की औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी।

- डीडीए से कन्वेंस डीड की कॉपी लेकर उस पर खाली जगह भरें। स्टैंप ड्यूटी चुकाएं और रजिस्ट्रेशन के बाद कन्वेंस डीड की कॉपी ले लें।

खर्च
- फॉर्म की कीमत
- उस तारीख तक ग्राउंड रेंट, ब्याज और पेनल्टी का भुगतान
- कनवर्जन चार्ज
- कन्वेंस डीड पर स्टैंप ड्यूटी
- रजिस्ट्रेशन चार्ज
- पेपर वर्क का खर्च
- अगर वकील की सहायता ली गई है, तो उसकी फीस

फायदे
- क्लियर टाइटल, यानी मालिकाना हक। प्रॉपर्टी को कभी भी बेचने की आजादी।
- प्रॉपर्टी के इस्तेमाल पर किसी तरह की कोई बंदिश नहीं।
- होम लोन, रिनोवेशन लोन आदि लेने में आसानी।
- जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी के मामले में मूल लीज होल्डर की मौत के बाद पीओए खत्म होने का डर नहीं।
- प्रॉपर्टी के मार्केट रेट में इजाफा, जिसका काफी फायदा रीसेल में मिल सकता है।

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