Friday, April 22, 2011

कोर्ट केसों से जानिए कैपिटल गेन बचाने के टिप्स-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times

कोर्ट केसों से जानिए कैपिटल गेन बचाने के टिप्स-प्रॉपर्टी-बिज़नस-Navbharat Times


सुभाष लखोटिया
किसी भी प्रॉपर्टी को बेचने के बाद हर व्यक्ति उस पर लगने वाले कैपिटल गेन टैक्स को बचाने के बारे में सोचता है। आज कुछ कोर्ट केसों के माध्यम से जानते हैं कि अदालतों की ओर से आम आदमी को इस बारे में क्या सहायता दी गई है।


1. खेती की जमीन बेचना
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सीआईटी बनाम गुरनाम सिंह 327 आईटीआर 278 केस में कहा है कि जब कभी खेती की जमीन बेचकर नियत समय के अंदर दूसरी जमीन खरीद ली जाए, लेकिन नई जमीन की रजिस्ट्री के कागजों में पुरानी जमीन बेचने वाले व्यक्ति (टैक्स एसेसी) के अलावा उसके बेटों के नाम भी को-ऑनर्स के रूप में शामिल किए गए हों, तो भी उस व्यक्ति को इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 54 बी के अंतर्गत कटौती का लाभ मिलेगा।
सलाह : नई रजिस्ट्री में मालिकों के नाम बदलने पर भी मूल व्यक्ति को कैपिटल गेन और टैक्स में छूट की कैलकुलेशन करते समय उसका लाभ मिलेगा।

2.
8 किमी से दूर की जमीन
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सीआईटी बनाम लाल सिंह व अन्य 325 आईटीआर 588 के मामले में कहा कि अगर जमीन मालिक (टैक्स एसेसी) तहसीलदार का यह सर्टिफिकेट पेश कर देता है कि एसेसी द्वारा बेची गई जमीन गुड़गांव म्युनिसिपल अथॉरिटी की सीमा से 8 किलोमीटर से दूर स्थित है, तो इस प्रकार की एग्रीकल्चरल लैंड की बिक्री पर किसी प्रकार का कैपिटल गेन नहीं बनेगा और इस डील पर कोई कैपिटल गेन टैक्स नहीं चुकाना पड़ेगा। इस केस में एसेसी ने पटवारी की रिपोर्ट पेश की, जिस पर तहसीलदार के भी साइन थे कि यह जमीन म्यूनिसिपल लिमिट से 8 किलोमीटर दूर है। हालांकि इनकम टैक्स इंस्पेक्टर ने भी यह रिपोर्ट भी दी कि न तो जमीन की खसरा संख्या दी गई और न ही यह बताया गया कि 8 किलोमीटर की दूरी किस प्रकार नापी गई? हालांकि कोर्ट ने इनकम टैक्स इंस्पेक्टर की रिपोर्ट को महत्व न देते हुए तहसीलदार की रिपोर्ट के आधार पर केस का फैसला सुनाया।
सलाह : अगर बेची गई खेती की जमीन नगर निगम या अन्य अथॉरिटी की सीमा से 8 किलोमीटर दूर है, तो ट्रांसफर से होने वाले लाभ (कैपिटल गेन) में पूरी छूट दी जाती है।

3.
होम लोन का ब्याज भी शामिल
कर्नाटक हाई कोर्ट ने सीआईटी बनाम श्री हरिराम होटल्स प्राइवेट लिमिटेड 325 आईटीआर 136 केस में फैसला सुनाया कि कोई प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लिए गए होम लोन पर लगने वाले ब्याज की रकम को भी संपत्ति की खरीदारी पर आई लागत तय करते समय कुल रकम में शामिल किया जाना चाहिए।

सलाह : होम लोन की ब्याज वापसी भी आपकी जेब से ही जाती है, इसलिए बेझिझक इस रकम को भी प्रॉपर्टी की लागत में ही शामिल करें।

4.
कीमत और स्टांप ड्यूटी
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने सीआईटी बनाम चांदनी भोछर 323 आईटीआर 510 केस में बताया कि सेल डीड में बताई गई प्रॉपर्टी खरीदने की रकम को स्टांप ड्यूटी तय करते समय मानी जा रही प्रॉपर्टी की कीमत के बदले स्वीकार नहीं किया जा सकता। स्टांप ड्यूटी तय करते समय सर्कल रेट के अनुसार ही प्रॉपर्टी की कीमत निर्धारित की जाती है।

सलाह : सेल डीड में कम से कम सर्कल रेट के अनुसार तय कीमत जरूर लिखनी चाहिए। इससे कम कीमत का उल्लेख करने पर भी ज्यादा स्टांप ड्यूटी चुकानी पड़ सकती है। साथ ही, आप इनकम टैक्स चोरी के निशाने पर भी आ सकते हैं।

5.
पत्नी के नाम पर जमीन
कर्नाटक हाई कोर्ट ने सीआईटी बनाम पीआर शेषाद्रि 329 आईटीआर 376 के मामले में व्यवस्था दी कि कोई रेजिडेंशियल हाउस खरीदने पर, अगर उसकी जमीन टैक्स पेयर की पत्नी के नाम पर है, तो इस खरीदारी को इनवेस्टमेंट माना जाएगा। तब, इस खरीदारी पर इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 54 एफ के प्रावधानों के अनुसार कैपिटल गेन टैक्स में छूट दी जाएगी।
सलाह : अगर कोई जमीन लेकर घर बनवा रहे हैं, तो कैपिटल गेन टैक्स बचाने के लिए जमीन की रजिस्ट्री पत्नी के नाम पर करवानी चाहिए।

6.
रिटर्न में जब न हो इनकम
मुंबई हाई कोर्ट ने सीआईटी बनाम श्रीमती डेबी एलेमो 331 आईटीआर 59 में बताया कि अगर प्रॉपर्टी खरीदने वाले व्यक्ति ने बेची गई खेती की जमीन से कोई आमदनी नहीं होना अपनी इनकम टैक्स रिटर्न में दर्शाया है, लेकिन रेवेन्यू रेकॉर्ड्स में यह जमीन खेती की जमीन के रूप में दर्ज है, तो इस जमीन की बिक्री पर कैपिटल गेन लागू नहीं होगा। हालांकि इस केस में इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी ने तर्क दिया कि इस जमीन की माकेर्ट वैल्यू नॉन-एग्रीकल्चरल लैंड के अनुसार ही काफी ज्यादा है, क्योंकि इसे खरीद के सिर्फ 2 सालों के भीतर ही लागत से 10 गुना कीमत पर बेच दिया गया, इसलिए इस पर टैक्स लिया जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने इनकम टैक्स विभाग का तर्क नहीं माना और इस डील पर कोई टैक्स लागू नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में यह जमीन अभी भी खेती की जमीन के रूप में ही दर्ज है और इसका लैंड यूज बदलने के लिए कोई आवेदन नहीं किया गया है, इसलिए इस पर कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगाया जा सकता।
सलाह : अगर खेती की जमीन से कोई आमदनी भी होती है, तो ही उसे बेचने पर कैपिटल गेन टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है।

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